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चार बेटियों ने निभाया फर्ज, टीका-टिप्पणी पर बोलीं- हम मर नहीं गए, कंधे पे ले जाएंगे पिता को श्मशान

लोगों ने कहा कि बेटा तो है नहीं पहले कंधा कौन देगा? मुखाग्नि कौन देगा? ये काम तो बेटा की करता है। अब तक तो यही रिवाज चलता आया है। तब चारों बेटियों ने कहा कि हम मर नहीं गए हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Wed, 18 Dec 2019 07:34 AM (IST)Updated: Wed, 18 Dec 2019 01:56 PM (IST)
चार बेटियों ने निभाया फर्ज, टीका-टिप्पणी पर बोलीं- हम मर नहीं गए, कंधे पे ले जाएंगे पिता को श्मशान
चार बेटियों ने निभाया फर्ज, टीका-टिप्पणी पर बोलीं- हम मर नहीं गए, कंधे पे ले जाएंगे पिता को श्मशान

गिरिडीह [प्रकाश कुमार]। गिरिडीह की चार बेटियां मंगलवार को उस समय समाज के लिए प्रेरणास्रोत बन गईं जब उन्होंने पिता की मौत के बाद बेटे की तरह फर्ज निभाया। जता दिया कि बेटियां किसी भी सूरत में बेटों से कम नहीं होतीं। इन बेटियों के कोई भाई नहीं है। पिता की मौत के बाद अंतिम संस्कार कैसे होगा, श्मशान कौन ले जाएगा जैसे प्रश्न उठ रहे थे। चारों बेटियां आगे बढ़ीं। बोलीं हम इन्हें कंधा देंगे, इसके बाद एक किमी दूर श्मशान तक लेकर गईं।

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दरअसल धनवार प्रखंड के डोरंडा बस स्टैंड के पास रहने वाले बद्री साव (85) की सोमवार की रात मौत हो गई। वे काफी समय से बीमार चल रहे थे। उनका उपचार देवरी के बेलाटांड़ स्थित मिशन अस्पताल में हो रहा था। बद्री के कोई लड़का नहीं था। उनके चार बेटियां कमली देवी, गीता देवी, पुष्पा देवी व रीना देवी हैं। अपने जीवनकाल में उन्होंने चारों बेटियों की शादी कर दी थी। इस बीच बेटियों ने देखा कि उनके माता-पिता को बहुत परेशानी हो रही है। दोनों बुजुर्ग हो गए हैं। तब बेटियों ने निर्णय लिया कि समय-समय पर सभी आती रहेेंगे। इधर बद्री बीमार हो गए। तब छोटी बेटी रीना उनके पास ही आकर रहने लगी। उनकी सेवा में वह जुटी रहती।

लोगों ने किया विरोध तो डटकर खड़ी हो गईं बेटियां

मंगलवार सुबह अर्थी तैयार हो रही थी। इसी समय कुछ लोगों ने कहा कि कोई बेटा तो है नहीं, पहले कंधा कौन देगा। मुखाग्नि कौन देगा। ये काम तो बेटा की करता है। अब तक तो यही रिवाज चलता आया है। तब चारों बेटियों ने कहा कि हम मर नहीं गए हैं। अपने पिता को श्मशान तक हम ले जाएंगे। किस शास्त्र में लिखा है कि बेटियां पिता की अर्थी को कंधा नहीं दे सकतीं। उनकी बात सुन कई ग्रामीणों ने उन्हें सराहा। वे बोले कि चिंता मत करो हम सब भी साथ चलेंगे। इसके बाद चारों ने पिता की अर्थी उठाई और एक किमी दूर स्थित सार्वजनिक श्मशान तक ले गईं। बद्री को मुखाग्नि उनके सबसे छोटे दामाद ने दी।


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