राजकिशोर के बाद बिनोद बाबू के राजनीतिक वारिस बनने तेज होगी लड़ाई, खुद को साबित करने में जुटे इंद्रजीत
झामुमो के संस्थापक रहे बिनोद बाबू के निधन के बाद उनके पुत्र राजकिशोर महतो राजनीतिक वारिस थे। सांसद और विधायक बने। राजकिशोर महतो के निधन के बाद धनबाद कोयलांचल और झारखंड की राजनीति में बड़ा सवाल यह है कि अब बिनोद बाबू का राजनीतिक वारिस काैन होगा ?
धनबाद, जेएनएन। झारखंड की राजनीति में दिवंगत बिनोद बिहारी महतो का अपना अलग ही नाम और सम्मान है। बिनोद बाबू को लेकर कुर्मी जाति गाैरवान्वित महसूस करती है। उनके जैसा राजनीतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा का मुकाम आज तक कोई भी झारखंड का कुर्मी नेता हासिल नहीं कर सका है। अलग राज्य आंदोलन के अगुवा और झामुमो के संस्थापक रहे बिनोद बाबू के निधन के बाद उनके पुत्र राजकिशोर महतो राजनीतिक वारिस थे। सांसद और विधायक बने। राजकिशोर महतो के निधन के बाद धनबाद कोयलांचल और झारखंड की राजनीति में बड़ा सवाल यह है कि अब बिनोद बाबू का राजनीतिक वारिस काैन होगा ? इस दाैड़ में सिंदरी के भाजपा विधायक इंद्रजीत महतो और टुंडी के झामुमो विधायक मथुरा प्रसाद महतो के नाम लिए जा रहे हैं।
पुत्र की तरह खटते रहे इंद्रजीत महतो
राजकिशोर महतो के निधन के बाद से ही सिंदरी के भाजपा विधायक इंद्रजीत महतो उनके पुत्र की तरह खटते रहे। बीबीएम कॉलेज में अंत्येष्टि की पूरी व्यवस्था उन्होंने ही संभाल रखी थी। वहां पंडाल बनाने, अतिथियों की आवभगत से लेकर आगंतुकों के लिए चाय, पानी व अल्पाहार की भी व्यवस्था उन्होंने करवाई थी। राजकिशोर महतो को नटुआ नृत्य बहुत पसंद था। लिहाजा उनके अंतिम संस्कार के दौरान नटुआ नाच भी करवाया गया।
अभिभावक की भूमिका में दिखे जलेश्वर
राजकिशोर महतो ने झारखंड कोलियरी श्रमिक का गठन किया तो जलेश्वर महतो को महामंत्री बनाया। अध्यक्ष-महामंत्री की यह जोड़ी अंतिम समय तक बनी रही। दल भले ही दोनों के अलग-अलग रहे पर आपसी संबंध हमेशा बना रहा। यही वजह रही कि उनके निधन के बाद जलेश्वर महतो पूरे परिवार के अभिभावक के रूप में आए। उन्होंने शुक्रवार सुबह राजकिशोर के आवास पहुंचते ही उनके पार्थिव शरीर को कंधा दिया और शव वाहन में रखा। चिता पर पार्थिव शरीर रखने के दौरान भी उन्होंने कंधा दिया। उनके निर्देशन में ही सभी कार्य संपन्न हुए।