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जानें- क्यों पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था धनबाद विधानसभा उपचुनाव-1958 का परिणाम Dhanbad News

1957 के विधानसभा चुनाव में धनबाद विधायक के रूप में पुरुषोत्तम चौहान चुने गए थे। लेकिन 1958 में उनकी मृत्यु हो गई। इससे यह सीट खाली हो गई। इसलिए यहां उपचुनाव कराया गया।

By Sagar SinghEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 12:19 PM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 12:19 PM (IST)
जानें- क्यों पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था धनबाद विधानसभा उपचुनाव-1958 का परिणाम Dhanbad News

धनबाद [बनखंडी मिश्र ]। देश में दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ। इसी वर्ष विधानसभा के लिए भी एकीकृत बिहार का भी चुनाव हुआ था। पूरे राज्य की 264 सीटों पर हुए चुनाव में 196 सामान्य की थीं। धनबाद में भी कुल पांच धनबाद, टुंडी, तोपचांची, निरसा और चास की सीट पर चुनाव हुआ था। इसमें धनबाद सीट पर पुरुषोत्तम चौहान विधायक चुने गए थे। लेकिन, 1958 में उनके निधन से, सीट रिक्त हो गई थी। इस कारण यहां उपचुनाव हुआ और उसमें एक ऐसा मामला हो गया कि बात पटना हाईकोर्ट तक जा पहुंची।   

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1958 में हुआ था धनबाद विधानसभा क्षेत्र का उपचुनावः 1957 के विधानसभा चुनाव में धनबाद विधायक के रूप में पुरुषोत्तम चौहान चुने गए थे। लेकिन, 1958 में उनकी मृत्यु हो गई। इससे यह सीट खाली हो गई। इसलिए यहां उपचुनाव कराया गया। 22 दिसंबर, 1958 को हुए उपचुनाव में धनबाद विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने अपना नया विधायक चुनने के लिए मतदान किया। इससे पूर्व आठ नवंबर, 1958 को धनबाद से कुल सात उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र दाखिल किया था। रंगलाल चौधरी, महेश देसाई, बिनोद बिहारी महतो, रूपन प्रसाद, हरबंश सिंह, धीरेन्द्र चंद्र मल्लिक (जिला कांग्रेस के अध्यक्ष एवं बाद में धनबाद के सांसद भी बने), दाहो साव ने पर्चा भरा था। दाहो साव एवं रूपन प्रसाद का नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर ने खारिज कर दिया था। वहीं, नाम वापसी के तीन दिनों बाद ही डीसी मल्लिक एवं हरवंश सिंह ने अपना नाम वापस ले लिया। इस तरह चुनाव मैदान में तीन प्रत्याशी रह गए थे। रंगलाल चौधरी, महेश देसाई व बिनोद बिहारी महतो। इन तीनों का चुनाव चिह्न था क्रमश: हलयुक्त जोड़ा बैल, हल और चक्का, और हंसिया-जौ की बाली।

रंगलाल चौधरी ने जीता था चुनावः 1958 के इस उपचुनाव में कांग्रेसी एवं उस जाने के चर्चित वकील रंगलाल चौधरी ने चुनाव जीता था। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के महेश देसाई और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापकों में से एक बिनोद बिहारी महतो को हराया था। उन्होंने पांच फरवरी 1959 को विधानसभा में विधायक के तौर पर शपथ ली। 

रंगलाल चौधरी की जीत को खारिज करवाने हाईकोर्ट पहुंचे थे दाहो सावः उपचुनाव के एक प्रत्याशी दाहो साव ने पटना स्थित उच्च न्यायालय में केस ठोक दिया। यह मुकदमा उन्होंने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 116ए के तहत दायर किया था। इस केस में दाहो साव ने रंगलाल चौधरी, महेश देसाई एवं बिनोद बिहारी महतो को पार्टी बनाया था। केस में दो बातों को आधार बनाया गया था। पहला यह कि उनका (दाहो साव का) और रूपन प्रसाद का नामांकन पत्र गलत तरीके से खारिज किया गया। दूसरा यह कि रंगलाल चौधरी के पक्ष में परिणाम लाने के लिए उनके चुनावी एजेंट ने या अन्य लोगों ने भ्रष्ट उपायों का सहारा लिया। 

सहाय और उंटवालिया के कोर्ट में चला था मुकदमाः रंगलाल चौधरी, महेश देसाई और बिनोद बिहारी महतो के खिलाफ यह केस पटना हाईकोर्ट के जस्टिस के सहाय और एन उंटवालिया (बाद में पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी बने थे) के कोर्ट में चला। परिवादी के तौर पर रंगलाल चौधरी मुकदमा लड़े। वहीं, महेश देसाई केस से बिल्कुल अलग रहे। बिनोद बिहारी महतो ने अपना जवाब दाखिल किया था। दाहो साव की ओर से कोर्ट में दिग्गज अधिवक्ता कन्हैया प्रसाद वर्मा ने पैरवी की थी।

छोटी सी चूक की वजह से हुआ था दाहो साव का पर्चा खारिजः केस के दौरान यह बात खुलकर सामने आई कि दाहो साव का पर्चा रिटर्निंग ऑफिसर ने इसलिए खारिज कर दिया था, क्योंकि निर्वाचन फॉर्म में एक स्थान पर धनबाद की जगह उन्होंने बिहार लिख दिया था। दाहो साव के खिलाफ यह तर्क दिया गया था कि नामांकन फॉर्म में लिखी एक पंक्ति में खाली स्थान में धनबाद भरना चाहिए था, लेकिन उन्होंने बिहार लिख दिया। इसलिए नामाकंन पत्र रिजेक्ट कर दिया गया। वहीं, दाहो साव का कहना था कि फॉर्म में, ऊपर में ही धनबाद निर्वाचन क्षेत्र स्पष्ट तौर पर का उल्लेखित था। नीचे किसी पंक्ति में धनबाद की जगह बिहार लिखना एक छोटी-सी भूल है। इसके लिए नामांकन पत्र खारिज करना कतई जायज नहीं है।

खारिज कर दिया गया रंगलाल चौधरी का निर्वाचनः लंबी बहस एवं कई पुराने केसों उद्धहरण देकर, परस्पर तर्क-वितर्क के बाद दाहो साव के इस केस का फैसला 25 मार्च, 1960 को आया। जस्टिस उंटवाला एवं सहाय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दाहो साव का नामांकन पत्र गलत आधार पर खारिज किया गया। इसलिए उन्हें न्याय के तौर पर रंगलाल चौधरी का निर्वाचन खारिज किया जाता है और दाहो साव को केस लडऩे के खर्च के रूप में 250 रुपए देने का आदेश दिया जाता है।


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