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झरिया फायर एरिया में ये सब तो चलते रहता है... बड़ा हादसा होगा तो खुलेगी जेआरडीए की नींद

बीसीसीएल प्रबंधन और झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार की नींद अभी नहीं खुली है। शायद वह किसी और भू-धंसान की घटना के इंतजार में हैं शायद। इधर बारिश का मौसम भी आ चुका है जो भू-धंसान के लिए सर्वाधिक खतरनाक समय है।

By MritunjayEdited By: Published: Tue, 18 May 2021 10:13 AM (IST)Updated: Tue, 18 May 2021 10:13 AM (IST)
झरिया फायर एरिया का यह दृश्य आम है ( फाइल फोटो)।

धनबाद [ रोहित कर्ण ]। सुबह भयानक विस्फोट से नींद खुलती है दोबारी बस्ती के लोगों की। जब तक विस्फोट से निकले धूल-धुएं का गुबार साफ होता है ऊपर झुलसाती गर्मी से पाला पड़ता है इनका। यह भयानक विस्फोट उस इलाके में किया जा रहा जिसे भू-धंसान वाला इलाका घोषित कर पिछले ही वर्ष लोगों को अन्यत्र बसाने की घोषणा हो चुकी है। दहकती आग के ऊपर बसे इस इलाके के लोग खुशी-खुशी यहां से जाने को भी तैयार हैं पर बीसीसीएल प्रबंधन और झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार की नींद अभी नहीं खुली है। शायद वह किसी और भू-धंसान की घटना के इंतजार में हैं शायद। इधर बारिश का मौसम भी आ चुका है जो भू-धंसान के लिए सर्वाधिक खतरनाक समय है। ग्रामीणों की जान सांसत में है। सो प्रबंधन के खिलाफ उन्होंने अब पुलिस महकमे को सूचना दी है। देखें इनकी नींद कब जगती है। 

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सेवानिवृत्ति की उम्र तक नहीं हुई नियुक्ति

बस्ताकोला क्षेत्र की रजवार बस्ती। तब बीसीसीएल के एरिया आठ में आती थी। अब यह एरिया नौ के तहत है। पर परेशानी यथावत है। बस्ती के लोगों की जमीन खनन कार्य के लिए कंपनी ने अधिग्रहित किया तो स्वाभाविक है कि ग्रामीणों ने विरोध दर्ज कराया। आखिरकार समझौता हुआ कि जितनी जमीन ली गई उसके मुताबिक नौ लोगों को नौकरी दी जाएगी। मुआवजा अलग से। बात 1996 की है। फिलवक्त 2021 चल रहा है। जाहिर सी बात है कि जिनकी नियुक्ति की बात हो रही थी अब 25 वर्ष बाद उनकी सेवानिवृत्ति के वर्ष गिने जाते। पर बीसीसीएल ऐसे ही तो मिनी रत्न थोड़े ही है। कंपनी के अधिकारी अभी तक कागजात की सत्यता जानने में ही लगे हैं। ग्रामीणों ने भी हिम्मत नहीं छोड़ा। हाल ही में फिर मांग की तो अब वंशावली की कॉपी मांग ली गई है। देखें मामला कब सलटता है। 

संघ बनाम संघ

जी नहीं यह वो नहीं जो आप समझ रहे। बात जनता मजदूर संघ की हो रही है। इनका एक गुट फिलहाल बीसीसीएल का नंबर वन यूनियन है, सदस्यता के मामले में। कभी इस संगठन के सदस्यों का दखल यह था कि 10 वर्ष भी एक पद पर काबिज रहें तो किसी साहब की हिम्मत नहीं कि इधर से उधर वाली सूची में उनका नाम भी डाल दें। गलती से किसी ने डाल दी तो वे खुद इधर से उधर हो जाते थे। अब यह संघ दो गुटों में बंट चुका है। दोनों ही गुट के लोग उतने ही बली। सो एक गुट के विद्या बाबू ने दूसरे का ख्याल रखे बिना गुल खिलाना शुरू कर दिया। परिणाम कि रंगे हाथ पकड़ लिए गए। कहते थे, कौन है जो बोलेगा। अभी बोलती बंद हो चुकी है। दबंगई के इस जंग में दोनों गुटों के संरक्षक घराने भी शामिल हो गए हैं। 

पुलिसवालों की पौ बारह

फोर्स की कमी की वजह से खनन विभाग के लोग छापेमारी बंद किए हुए हैं। लेकिन फोर्स तो सड़क पर ही खड़ी है। भले कोरोना ड्यूटी के नाम पर ही सही। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के पुलिसकर्मियों की इन दिनों चांदी कट रही। पहले भी उनकी इजाजत के बगैर कोई बालू गाड़ी गुजर जाए यह संभव नहीं था। बालू लोड होने से पहले वाट्सअप पर उसका नंबर साहब को चला जाता था। अब तो मैदान में वे अकेले बचे हैं। सो पिछले एक सप्ताह से खाकी वर्दी की कृपा से गाड़ियां बिना चालान चल रही हैं। विभाग कोई दबाव भी नहीं बना सकता। सीधा सा जवाब होता है कि लॉकडाउन में काम मंदा चल रहा है। लिहाजा बालू की आपूर्ति भी कम है। उधर चालान न होने से वाहनों से रेट भी अच्छा मिल रहा है। यह अलग बात है कि शहर के पुलिसकर्मी इतने खुशनसीब नहीं।


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