80 डिग्री सेंटीग्रेड पर केले के पत्ते के साथ पकी दाल बन जाती है कारगर दवा
इसरो के पूर्व वैज्ञानिक और प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रह चुके प्रो. ओमप्रकाश पांडेय ने अपने एक शोध में केले के पत्ते की स्वास्थ्यवर्द्धक गुणवत्ता को साबित किया है।
धनबाद, आशीष सिंह। दाल पकाते समय बर्तन में केले का पत्ता भी रख दें। 80 डिग्री तापमान पर जब दाल पकने लगेगी तब केले के पत्ते से विशेष रसायन निकलेगा, जो आपको निरोगी रखेगा। चौंकिए नहीं, गहन शोध में निकले निष्कर्ष यही बता रहे हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक और प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार रह चुके प्रो. ओमप्रकाश पांडेय ने अपने एक शोध में केले के पत्ते की स्वास्थ्यवर्द्धक गुणवत्ता को साबित किया है। एक समारोह के सिलसिले में धनबाद आए प्रो. पांडेय ने बताया कि आज फसलों में रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों का खूब इस्तेमाल होता है। इससे उत्पन्न अनाज में कई विषाक्त तत्व भी होते हैं, जो इस अनाज से बने भोजन के साथ शरीर में पहुंच जाते हैं। इनके दुष्प्रभावों से बचने में केले का पत्ता बेहद कारगर साबित होता है।
पॉली फेनॉल का एंटी ऑक्सीडेंट गुण करता है असर : दरअसल केले के पत्ते में पॉली फेनॉल नामक कार्बनिक रसायन होता है। केले के पत्ते को जब हम 80 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में रखते हैं तब उससे यह रसायन निकलने लगता है। इस रसायन में एंटी ऑक्सीडेंट का गुण है। केले के पत्ते के साथ बनी दाल में यह रसायन पहुंच जाता है। यदि ऐसी दाल या सब्जी का सेवन करें तो एक सप्ताह तक रसायन का असर रहता है।
इस दाल का सेवन शरीर में मौजूद विषाक्त तत्वों को समाप्त करता है और शरीर में मौजूद खतरनाक जीवाणुओं को भी निष्प्रभावी करता है। एंटी ऑक्सीडेंट बुढ़ापे की दस्तक को भी रोकने में मदद करता है। केले के पत्तों पर वाष्पोत्सर्जन (ऐसी प्रक्रिया जिसमें पौधों की पत्तियों के माध्यम से जल वाष्पित होता है) की दर कम करने के लिए वैक्स का आवरण रहता है। यह दाल में मिलकर उसको स्वादिष्ट बनाता है। केले के पत्ते के साथ बनी दाल पूरी तरह से निरोग रखने में कारगर है। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। सप्ताह में एक दिन भी केले के पत्ते से बनी दाल खाने पर पूरे सप्ताह आपको सुरक्षा कवच मिल जाएगा।
- प्रो. ओमप्रकाश पांडेय, पूर्व वैज्ञानिक, इसरो