जानें-साै साल पुराने रहस्यमय मंदिर की कहानी, साधु की हत्या के बाद न पूजा हुई न प्रभु विराजे
गांव वालों के अनुसार दुमा गांव में एक साधु रहते थे जिनका नाम था बाउल। उन्होंने ही मंदिर निर्माण कराया था। इसके लिए जमींदार और दूर-दूर के गांव तक जाकर भिक्षाटन भी किया।
धनबाद [तापस बनर्जी]। वैसे तो धनबाद में मंदिरों की कोई कमी नहीं। मुहल्ले और चौक-चौराहे पर छोटे-छोटे मंदिरों के साथ-साथ निरसा का पांडवेश्वर मंदिर महाभारत काल की याद दिलाता है। पर आपको यह जानकर हैरत होगी कि जिले में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पिछले सौ साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी कभी पूजा नहीं हुई। इस मंदिर का दीदार करने के लिए आपको पूर्वी टुंडी के मैरानवाटांड़ पंचायत के दुमा गांव तक आना होगा। गांव में प्रवेश करते ही आपको मंदिर का चूड़ा दिख जाएगा।
[फोटो-मंदिर का मुख्य द्वार]
अतीत की कहानी, गांव वालों की जुबानीः गांव वालों के अनुसार, दुमा गांव में एक साधु रहते थे जिनका नाम था बाउल। उन्होंने ही मंदिर निर्माण कराया था। इसके लिए जमींदार और दूर-दूर के गांव तक जाकर भिक्षाटन भी किया। महीनों तक भिक्षाटन के बाद मंदिर बनकर तैयार हुआ। इसके बाद उन्होंने राधा-माधव की मूर्ति, आरती की थाली समेत पूजा-पाठ के अन्य सारे सामान भी एकत्रित कर लिया था। सारी तैयारियां चल रही थी। इसी बीच रात में मौका पाते ही लुटेरों ने उनकी हत्या कर दी और मूर्ति वगैरह सबकुछ लूट कर चले गये। सौ साल से ज्यादा पहले हुई घटना के बाद से मंदिर उसी हालत में है। न तो कभी यहां मूर्ति स्थापित हुई और न ही कभी पूजा-पाठ का आयोजन हुआ।
साधु के वंशज इसी गांव में कर रहे निवासः मंदिर निर्माण कराने वाले जिस साधु की लुटेरों ने हत्या कर दी थी, उनके वंशज आज भी इसी गांव में हैं। उनका कहना है कि कई पीढिय़ों से वे दुमा में रह रहे हैं। दशकों पहले मंदिर को जिस हालत में देखा था। आज भी जस की तस है।
क्या कहते हैं साधु के वंशज
सौ साल से ज्यादा पुराना मंदिर है। हमारे पूर्वजों ने ही इसका निर्माण कराया था। पर उनकी हत्या हो जाने से न प्रतिमा स्थापित हो सका और न ही कभी इस मंदिर में पूजा हुई।
-सुनील दां, स्थानीय ग्रामीण
मंदिर की मरम्मत करा सकते हैं। पर राधा-माधव के मंदिर में रोज पूजा-पाठ जरूरी है। हमारे गांव में कोई पुजारी नहीं है। इसलिए मंदिर को उसी हालत में छोड़ दिया है।
-सत्यवान दां, स्थानीय ग्रामीण