17 जुलाई से शुरू हो रहा सावन, जानें क्यों अपने सिर काट कर अग्नि में डालने लगा था रावण
देवघर के द्वादश ज्योर्तिलिंग बैद्यनाथ हर मनोकामना पूरी करते हैं। बाबा बैद्यनाथ को बैजनाथ के नाम से पुकारा जाता है। बताते हैं कि चरवाहा बैजू के नाम पर ही शिव को नाम बैद्यनाथ पड़ा।
अमित सोनी, देवघर: देवघर के द्वादश ज्योर्तिलिंग बैद्यनाथ सभी की मनोकामना पूरी करते हैं। बाबा बैद्यनाथ को बैजनाथ के नाम से पुकारा जाता है। बताते हैं कि चरवाहा बैजू के नाम पर ही शिव को नाम बैद्यनाथ पड़ा।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक ब्रह्मा के पौत्र एवं पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की तीन पत्नियां थी। पहली पत्नी के गर्भ से धनपति कुबेर, दूसरी पत्नी से रावण तथा कुंभकरण, जबकि तीसरी पत्नी से हरि भक्त विभीषण का जन्म हुआ। चारों पुत्रों में से रावण अत्यंत बलवान और बुद्धिमान था। एक बार रावण कैलाश पर्वत पर जाकर शिवजी की तपस्या करने लगा। लेकिन बहुत समय बीत जाने के बाद भी शिवजी प्रसन्न नहीं हुए। अब रावण यहां से हटकर हिमालय पर्वत पर पुन: उग्र तपस्या करने लगा, फिर भी उसे भगवान के दर्शन नहीं हो सका। यह देख रावण अत्यंत चिंतित हो गया और अपने अपार बल तथा शरीर को धिक्कारने लगा। जब हवन से भी शिवजी प्रसन्न नहीं हुए तो उसने अपने शरीर को अग्नि में भेंट करने की ठानी। उसने दस मस्तकों में से एक-एक को काटकर अग्नि में डालने लगा। रावण जब अपना नौ मस्तक अग्नि में सर्मिपत कर दसवें को काटने के लिए तैयार हुआ तो शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए। शिवजी ने रावण का हाथ पकड़कर वर मांगने को कहा। शिव की कृपा से उसके सभी मस्तक अपने अपने स्थान से जुड़ गए। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए रावण ने वर मांगा :'हे प्रभो! मैं अत्यंत पराक्रमी होना चाहता हूं। आप मेरे नगर में चल कर निवास करें।
यह सुन कर शिवजी बोले: 'हे रावण! तुम मेरे लिंग को उठा कर ले जाओ और इसका पूजन करना, ध्यान रहे मार्ग में कहीं भी इसे रखा तो वहीं स्थापित हो जाएगा।' रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद उसे लघुशंका की इच्छा हुई। उसने वहां एक चरवाहा को देखकर कुछ देर के लिए लिंग को हाथ में रखने की गुहार लगाई। चरवाहे ने उत्तर दिया कि यदि वह जल्दी लौटकर नहीं आएगा तो शिवलिंग को वहीं पर रख देगा। इतना सुनकर रावण उसे शिवलिंग देकर लघुशंका करने गया। रावण के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान वरुण ने उसका मूत्र इतना अधिक बढ़ा दिया वह काफी देर तक निवृत नहीं हो सका। इधर चरवाहे ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। पृथ्वी पर रखते ही शिवलिंग उसी स्थान पर दृढ़ता पूर्वक जम गया। लघुशंका से लौटने के बाद रावण ने शिवलिंग को उठाने का अथक प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सका। आखिर में वह निराश होकर घर लौट गया। रावण के चले जाने पर सभी देवताओं ने वहां आकर शिवलिंग की पूजा की। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। देवताओं ने प्रार्थना करते हुए उनसे कहा :'हे स्वामी! आप हमें अपनी भक्ति प्रदान करें और सदैव यहीं स्थित रहें।'
वहीं वह चरवाहा, जिसने रावण के कहने पर शिवलिंग उठाकर रखा था, नित्य उसकी पूजा करने लगा। उसका नाम बैजू था। वह जब तक शिवलिंग की पूजा नहीं कर लेता भोजन नहीं करता था। अनेक प्रकार के विघ्न आने पर भी उसने कभी भी अपना नियम नहीं तोड़ा। उसकी दृढ़ भक्ति को देख एक दिन शिवजी ने उसे दर्शन दिया और वर मांगने को कहा। बैजू ने उनसे मांगा कि आपके चरणों में मेरा प्रेम बढ़ता रहे और आप मेरे नाम से प्रसिद्ध हों। शिवजी वरदान स्वीकार कर शिवलिंग में प्रवेश कर गए। उस समय से बाबा बैद्यनाथ को 'बैजनाथ' के नाम से भी जाना जाने लगा। रावण और बैजू के विपरीत चरित्र के बावजूद शिवजी ने यह साबित कर दिया कि वे सिर्फ भक्ति को देखते हैं। उनकी नजर में देवता और दानव सभी समान हैं।
बाबा के भक्तों के लिए सज गया बाजार: सावन का महीने शुरु होते ही शिवभक्त शिव की नगरी जाने के लिए उत्सुक दिखते हैं। धनबाद का बाजार भी तरह-तरह के कपड़ों, कांवर आदि से सज चुका है। इस वर्ष 17 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो रहा है। सावन का पहला सोमवार 22 जुलाई और अंतिम दिन 15 अगस्त को होगा।
सावन शुरू होने में चंद दिन शेष है, लेकिन पुराना बाजार, हीरापुर और सरायढेला का मार्केट शिवभक्तों का स्वागत करने के लिए तैयार है। अभी से बोलबम के बाजार में रौनक दिखने लगी है। लोग खरीदारी के लिए पहुंचने लगे हैं। थोक बाजार में मौसमी कारोबारियों की भीड़ खरीदारी के लिए बढ़ गई है। थोक व खुदरा दुकानों में दिल्ली व कोलकाता से आए कपड़े भर चुके हैं। रेडीमेड कपड़ों के कीमत की बात करें तो पिछले वर्ष की तुलना में पांच से सात फीसद इजाफा है। कांवरियों के लिए बोलबम वस्त्र बाजार में रंगीन टी शर्ट, पैंट, बैग, मोबाइल, कैमरा रखने के लिए पर्स, महिलाओं के लिए बैग, गमछा, गोला, पट्टी के साथ दर्जनों कई आइटम उपलब्ध हैं।
250 से पांच हजार तक का कांवर: सावन से पहले कांवर का बाजार सज चुका है। कांवर के कारोबार से जुड़े पुराना बाजार के रोहित कुमार ने बताया कि कांवर निर्माण में उपयोग आने वाला बांस पूर्णिया का बेहतर होता है। उत्तर बिहार के वैशाली, छपरा समेत अन्य जगहों से आए बांस का भी उपयोग होता है। कांवर सजावट की सामग्री शिवङ्क्षलग, त्रिशूल, घुंघरू, कृत्रिम फूल, अगरबत्ती स्टैंड समेत अन्य सजावट की आइटम ज्यादातर कोलकाता, दिल्ली, मुरादाबाद व मुंबई से आती है। साधारण कांवर 250 से 600 रुपये प्रति पीस की दर पर उपलब्ध है। सजावटी कांवर की बात करें तो यह 500 से लेकर 5000 रुपये के बीच प्रति पीस मिल जाएगा।