अविरल, अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर कोरोना का अल्प विराम
अब पूरे सावन माह तक कायम भी रहेगा। यहां से आगे खिजुरिया तक पैदल कांवरिया पथ जो बीते साल तक गुलजार रहता था अब अंधेरे में लिपटा है। देवघर शहर भी सावन से इतर सामान्य दिन की तरह है। शहर में माइक से एलान की आवाज कान में सुनाई देती है- इस बार मन के घर को देवघर बनाएं। घर से बाहर निकलने के बजाए घर में ही शिव की आराधना कर सावन मनाएं..।
बुधवार को दिन के 11 बजे हैं। सुल्तानगंज के अजगैबीनाथ घाट पर उत्तरवाहिनी गंगा बिल्कुल शांत है। ठीक उसी तरह से जिस तरह की सुल्तानगंज से बैद्यनाथ के दरबार तक जाने वाला कांवरिया पथ सूना है। शिव की प्रिय गंगा की अकुलाहट भले ही उनके असंख्य भक्तों के कंधे पर सवार होकर देवघर जाने की है, लेकिन इस राह में इस वर्ष कोरोना ने रोड़ा अटका दिया है। तकरीबन 200 साल से अधिक पुरानी अविरल, अद्भुत, अविस्मरणीय कांवर यात्रा पर लगी पाबंदी भले ही मानव जीवन की सुरक्षा के लिए मुकम्मल हो लेकिन इस पाबंदी की वजह से सुल्तानगंज से देवघर के बीच 105 किलोमीटर कांवरिया पथ पर शून्य की स्थिति पैदा हो गई है।
शिव का प्रिय सावन में 105 किलोमीटर की कांवर यात्रा में देश ही नहीं विदेशों के कई हिस्सों से शिवभक्तों व कर सेवकों का सैलाब यहां दिन और रात का फर्क मिटा देते हैं। लेकिन इस वर्ष सड़कों पर सन्नाटा और शिवभक्त से लेकर आमजनों के चेहरे पर मायूसी है। शांत गंगा को निहारने के क्रम में अचानक से प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी का एहसास होता है। देखा कि सुल्तानगंज थाना के प्रभारी रामप्रीत कुमार दल-बल के साथ गंगा तट के किनारे बंद पड़े दुकानों को मुआयना करने पहुंचे हैं। यहां कुछेक कर्मकांड कराते लोगों से कहा कि भीड़ नहीं लगाएं यहां। बिहार सरकार का सख्त आदेश है कि घाट पर एक भी कांवरिया नहीं आएं। बैद्यनाथधाम मंदिर का पट इस वर्ष कांवरियों के लिए बंद है। इसे ध्यान में रखकर बिहार सरकार ने भी लॉकडाउन का निर्णय लिया है। अजगैबीनाथ के मंदिर में भी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक है।
मंदिर के महंत प्रेमानंद गिरि कहते हैं कि लॉकडाउन का पालन सबको करना है। इसलिए सरकार का निर्णय सर्वोपरि है। अभी थानेदार रामप्रीत यहां से निकले भी नहीं थे कि सुल्तानगंज के सीओ शशिकांत कुमार घाट पर पहुंच गए। पूरी स्थिति का मुआयना करते हुए सबको फटाफट जगह खाली करने को कहा। पूछने पर कहा कि सीढ़ी घाट में एक कोरोना पॉजिटिव मिला है इसलिए अब 500 मीटर के दायरे में इस इलाके को कंटेंटमेंट जोन में घोषित कर दिया गया है। फिर देखते ही देखते घाट के प्रवेश मार्ग को सील कर दिया गया। सुल्तानगंज भागलपुर जिले में पड़ता है। यहां से निकलने के बाद असरगंज से संग्रामपुर तक मुंगेर जिले का दायरा है। इसके आगे बांका और फिर सबसे अंत में झारखंड सीमा पर देवघर।
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कांवरिया पथ पर न घुंघरुओं की आवाज, न बोल बोल का उद्घोष
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दिन के तकरीबन 12 बजे असरगंज से संग्रामपुर मुख्य पथ पर कोई खास चहल-पहल नहीं। मुख्य पथ के समानांतर ही पैदल कांवरिया पथ पर बिल्कुल सन्नाटा। घुंघरुओं की आवाज न बोलबम का कोई उच्चारण। कारण एक भी श्रद्धालु मार्ग पर नहीं दिखे। संग्रामपुर से आगे बढ़ने पर यह उम्मीद थी कि शायद श्रद्धालुओं से दर्शन हो लेकिन हरपुर, रामपुर, बेलहर, कटोरिया तक न तो मुख्य पथ पर सवारी गाड़ियां और न कांवरिया पथ पर किसी का दर्शन। नए टेंट, तंबू और शिविर की बात कौन पूछे, बीते वर्ष लगाए गए टेंट व शिविरों की बांस-बल्लियां भी ध्वस्त होकर नीचे गिरी पड़ी हैं। धर्मशालाओं में सन्नाटा है। कांवरिया पथ का हाल-बेहाल है। अभी अगर इस पर कोई पैदल चले तो तुरंत जख्मी हो जाए। दिन के एक बजे लोहटनिया में साथी लाइन होटल में चाय की चुस्कियों के बीच होटल के मालिक को छेड़ा तो सुरेश यादव ने मायूस भाव में कहा कि सबकुछ तबाह कर दिया इस महामारी ने। नहीं तो सावन में पूछिए मत, सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता है। अबरखिया में स्व. फूलझारो देवी की स्मृति में बनाया गया सिवान धर्मशाला। अभी यहां राजमिस्त्री काम कर रहे हैं। धर्मशाला बनवाने वाले उमेश तिवारी के नेतृत्व में शैलेंद्र मिश्र, पंचानंद मिश्र, राजू पांडेय समेत कई लोग सिवान से जुटे हैं। पूछने पर शैलेंद्र कहते हैं कि मेला से ज्यादा सबको जिदा बचना ज्यादा जरूरी है। यहां से पैदल कांवरिया पथ पर बढ़ते ही दिव्यांग कार्तिक कुमार से मुलाकात हो जाती है। पूछने पर कहा कि मेला नहीं लगने से काफी परेशानी में है। मेला लगता था तो एक छोटा से दुकान लगाकर अच्छी कमाई कर लेता था लेकिन इस बार तो सबकुछ चौपट हो गया है। इनारावरण पहुंचते-पहुंचते शाम के तीन बज चुके हैं।
छपरहिया धर्मशाला बिल्कुल वीरान है। सतलेटवा में बिहार पयर्टन केंद्र के भवन में कोई नहीं है। इनारावरण बाजार में इक्का-दुक्का लाइन होटल खुला है। भूल-भूलैया, सुईया और जिलेबिया को जिक्र भी जरूरी है क्योंकि पैदल कांविरयों को इस सड़क पर गुजरना अविस्मरणीय होता है लेकिन इस बार तो इन पथों पर बिल्कुल सन्नाटा है।
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दो हजार करोड़ का कारोबार चौपट होने की टीस
तिलैया में कांवरिया पथ से सटे सत्यानारायण जायसवाल टूटे-फूटे होटल में बैठे मिलते हैं। पूछने पर कहा कि सालभर से सावन का इंतजार करते हैं क्योकि इस माह की आमदनी से शेष महीनों की तंगी दूर हो जाती है। कोरोना सबको ले डूबा। खाने को लाले पड़े हैं। देखिए उस डिब्बा में मकई का सत्तू लाएं हैं खाने के लिए। दरअसल सत्यानारायण जायसवाल ही नहीं बल्कि इस 105 किलोमीटर के दायरे आने वाले एक-एक व्यवसायी और ग्रामीणों को सावन का इंतजार होता है। श्रावणी मेले का अर्थशास्त्र यह कि अगर एक कांवरिया तीन-चार दिनों की पैदल यात्रा में औसतन 600-800 रुपये भी खर्च करता है तो एक माह में तकरीबन दो हजार करोड़ से भी अधिक का कारोबार तय है। बीते वर्ष सावन में 30 लाख कांवरिया देवघर पहुंचे थे। इस लिहाज से 105 किलोमीटर में फैली वीरानगी की एक बड़ी त्रासदी यह भी है।
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झारखंड सीमा पर है चाक-चौबंद व्यवस्था
गोधूलि बेला आते-आते दर्दमारा और पैदल पथ दुम्मा पहुंचने पर पुलिस की तैनातगी से एहसास होता है कि यह बिहार और झारखंड की सीमा है। यहां से बैद्यनाथ धाम की दूरी मात्र 10 किलोमीटर है। यहां पहुंचते ही कांवरियों की थकान मिट जाती है। उनकी स्फूर्ति और चेहरे पर शीघ्र ही शिव दर्शन का भाव तैरने लगता है। लेकिन इस वर्ष यहां वाहनों की सघन जांच का दृश्य कायम है। अगर कोई भूला-भटका शिवभक्त यहां तक आ भी जाए तो उन्हें आदर पूर्वक वापस लौटाने की कार्रवाई हो रही है। दर्दमारा में तैनात दंडाधिकारी लक्ष्मीनारायण राउत ने कहा कि आज एक भी कांवरिया यहां तक नहीं आएं हैं। दुम्मा में भी यही हाल रहा। मतलब सुल्तानगंज टु देवघर की कांवर यात्रा पर कोरोना ने इस वर्ष अल्प विराम लगा दिया है और शायद ऐसा ही नजारा अब पूरे सावन माह तक कायम भी रहेगा। यहां से आगे खिजुरिया तक पैदल कांवरिया पथ जो बीते साल तक गुलजार रहता था अब अंधेरे में लिपटा है। देवघर शहर भी सावन से इतर सामान्य दिन की तरह है। शहर में माइक से एलान की आवाज कान में सुनाई देती है- इस बार मन के घर को देवघर बनाएं। घर से बाहर निकलने के बजाए घर में ही शिव की आराधना कर सावन मनाएं।