बाबा मंदिर से जुड़े दुकानदारों का छलका दर्द
बाबा नगरी में बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका बाबा मंदिर की आय पर जुड़ा हुआ है। 157 दिन मंदिर बंद रहने के बाद 27 अगस्त से मंदिर खोला गया। लेकिन सरकार के निर्देश
कंचन सौरभ मिश्रा, देवघर : बाबा नगरी में बड़ी संख्या में लोगों की आजीविका बाबा मंदिर की आय पर जुड़ा हुआ है। 157 दिन मंदिर बंद रहने के बाद 27 अगस्त से मंदिर खोला गया। लेकिन सरकार के निर्देश के तहत फिलहाल सिर्फ झारखंड के 200 लोग ही एक दिन में दर्शन कर सकते हैं। उन्हें अरघा के माध्यम से बाबा का दर्शन सुबह सात बजे से दस बजे तक कराया जा रहा है। लोग पंजीयन तो करा रहें लेकिन उस अनुपात में दर्शन नहीं हो रहे है। मंदिर खोलने की घोषणा से जिन लोगों के चेहरे पर खुशी लौटी थी वह फिर से मुराझा गई हैं। क्योंकि मंदिर में काफी कम लोग बाहर से आ रहे हैं। बाहर से आने वालों पर ही मंदिर के अंदर व आसपास कारोबार करने वालों की आय टिकी हुई है। ऐसे में जब तक मंदिर में बाहर से आने वालों की संख्या नहीं बढ़ेगी, दूसरे प्रदेश से लोग नहीं आएंगे इन व्यवसायी को ज्यादा लाभ नहीं होने वाला।
दुकानदारों का छलका दर्द : आसपास करीब 150 छोटे बड़े प्रसाद, श्रृंगार, खिलौना, भोजन, बर्तन, चाय-नाश्ता के दुकान हैं। ये पूरी तरह से मंदिर पर आश्रित हैं। इसके अलावा मंदिर के अंदर करीब 35 माली फूल बेचने का काम करते हैं, वहीं धूप, अगरबत्ती बेचने वालों की संख्या करीब 70 है। इसके अलावा करीब 200 लोगों की आय मंदिर में श्रद्धालुओं के फोटोग्राफी पर निर्भर है। मंदिर के बाहर कुछ ही दुकान फिलहाल खुल रही है। आम दिनों में बड़े दुकानदार एक दिन में 20 से 25 हजार बेच लेते थे। श्रावण व अन्य खास दिनों में आमदनी कहीं अधिक होती थी। छोटे दुकानदार भी करीब दस हजार की ब्रिकी कर लेते थे। वहीं मंदिर के अंदर फूल बेचने वाले माली हर दिन करीब 500 से 800, धूप, अगरबत्ती बेचने वाले माह में करीब 20 हजार तो कैमरा वाले हर व्यक्ति को दस से 15 हजार की आय हो जाती थी।
जब इन लोगों से जागरण की टीम ने बात की तो उनका दर्द झलक आया।
क्या कहते है लोग
करीब छह माह से मंदिर बंद है। अब मंदिर खुला भी है तो सीमित संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। जिससे आमदनी न बराबर हो रही है। ऐसे में गुजरा होना संभव नहीं है।
शिवशंकर खवाड़े, धूप अगरबत्ती विक्रेता
प्रतिदिन मंहगाई बढ़ रही है। आमदनी का श्रोत कम हो गया है। ऐसे में परिवार का भरन-पोषण करना मुश्किल हो गया है। किसी प्रकार की सरकारी सुविधा अब तक नहीं मिली है।
विक्रम श्रृंगारी, धूप अगरबत्ती विक्रेता
फूल माला बेचकर वर्षो से हमारा पूरा परिवार इसी मंदिर से गुजारा करता आ रहा है। मगर जब से मंदिर बंद हुआ जब तक आमदनी बंद है और जीना दूभर हो गया है। मंदिर में श्रद्धालु बढ़ेंगे तभी राहत मिलेगी।
रमेश माली, फूल विक्रेता
हम लोगों के पास मंदिर के अलावा आय का और कोई साधन नहीं है। पूरा परिवार मिलकर दूसरे के बागान से फूल तोड़कर गुजारा करते थे जब से मंदिर बंद हुआ है दूसरे के घर में काम करके गुजार करना पड़ रहा है।
सोनू माली, फूल विक्रेता
मंदिर में कैमरा चलाकर घर गृहस्थी के साथ पढ़ाई का भी खर्च चलाते थे। कुछ घंटों काम कर इतना कमा लेते थे कि गुजारा चल जाता था। लेकिन अब श्रद्धालु नहीं आ रहे तो फोटो कौन खिचवाएगा। आमदनी नहीं होने से काफी परेशानी हो रही है।
राजीव कुमार, फोटोग्राफर
सरकार के आदेश से मंदिर अगर बंद हो सकता है तो हम गरीबों के जरूरत के सरकार को आगे आकर मदद करनी चाहिए। ताकि हमारा गुजार हो सके। मंदिर जल्द नहीं खुला तो स्थिति और भी दयनीय हो जाएगी।
सोनी कुमार, फोटोग्राफर
मंदिर के बाहर काफी दिनों से सन्नाटा छाया हुआ है। जिन गलियों में कभी दिन रात का फर्क महसूस नहीं होता था वहां आज विरानी छाए गई है। दुकान में शायद ही कोई सामान लेने अब आता है। हालत बहुत खराब है साहब।
शिव कुमार, खिलौना दुकानदार
बाबाधाम का पेड़ा प्रसिद्ध है। इसलिए मंदिर के आसपास काफी संख्या में इसकी दुकान है। पेड़ा का कच्चा समान कुछ ही दिन टिकता है। उसका उपयोग नहीं करने से नुकसान तय है। बंदी के दौरान सबसे ज्यादा नुकसान पेड़ा कारोबारियों को हुआ है। अब सरकार ही कोई रास्ता निकाले।
रोहित कुमार, पेड़ा दुकानदार