मुगल काल से तालझारी मां दुर्गा मंदिर का संबंध
संवाद सहयोगी चितरा वर्ष 1627 में महाराष्ट्र से तुलम सिंह आए और यहीं बस गए। उन्होंने मां दुग
संवाद सहयोगी, चितरा: वर्ष 1627 में महाराष्ट्र से तुलम सिंह आए और यहीं बस गए। उन्होंने मां दुर्गा की स्थापना की। कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ। दो वर्ष पूर्व दक्षिण भारतीय वास्तुकला पर आधारित इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इस कार्य को तेलंग बंधुओं ने अंजाम देकर भव्य मंदिर का रूप दिया। ठाकुर घराने के संजीव शंकर सिंह व सुनील कुमार सिंह कहते हैं कि परिवार के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई और उनके पूर्वज 22 गांव में बस गए। तालझारी, सहरजोरी, अंबाकनाली, बंदरीसोल, सारवां प्रखंड के नकटी, मनीगढ़ी, ढांगा, नागरा समेत 22 गांव में बसे उनके पूर्वजों के वंशजों की कुलदेवी मां दुर्गा है।
विध्याचल से कुकराहा दुर्गा मंदिर का नाता
ठाकुर विक्रम सिंह कहते हैं कि उनके पूर्वज लखन सिंह आषाढ़ सावन महीने में अजय नदी के किनारे खेत घूमने निकले थे। नदी में बाढ़ आई थी। एक कन्या नदी के जल में गर्दन तक डूबी हुई थी। उन्होंने पुकार कर वस्त्र मांगा। लखन सिंह ने कंधे से अपना गमछा उतार कर उन्हें दे दिया। कन्या अंग वस्त्र पहन कर नदी के जल से बाहर आई। वह डंगाल तक साथ आकर घर ले जाने की जिद करने लगी। सिंह ने कन्या को डंगाल में ही तत्काल रुकने के लिए कहा और वह गांव चले गए। सबों को वस्तुस्थिति से अवगत कराया। वे वापस उस स्थान पर आए। कन्या अपने स्थान से गायब हो चुकी थी। कन्या ने उन्हें स्वप्न में कहा कि वह विध्याचल की देवी दुर्गा हैं। उस का प्रतीक चिह्न स्थापित कर पूजा करें। इस तरह मां विध्यवासिनी दुर्गा की स्थापना कुकराहा में हुई। कालांतर में मंदिर का निर्माण हुआ। 3 वर्ष पूर्व दक्षिण भारतीय वास्तुकला शैली से मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। पप्पू सिंह, उदय शंकर सिंह कहते हैं कि बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने यहां के ठाकुर को उपहार स्वरूप तलवार भेंट की थी। वह तलवार आज भी मौजूद है और उसका उपयोग दुर्गा पूजा के अवसर पर किया जाता है। इससे यहां के लोगों का अनुमान है कि मुगल काल से ही उनके पूर्वज मां विध्यवासिनी की पूजा कर रहे हैं।
ब्रिटिश जमाने से चितरा में हो रही है दुर्गा पूजा
पूर्व विस अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेंद्र कुमार भोक्ता के पूर्वज ठाकुर हकीम नारायण भोक्ता व उनके पूर्वज हरख लाल भोक्ता व उनकी कई पीढ़ी के पूर्वजों ने सर्वप्रथम यहां दुर्गा माता की स्थापना की। साधारण पत्थरवाले मंदिर कई दशक पूर्व यहां थे। जीर्णोद्धार कर इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप दिया गया है। यहां विशेष पूजा पद्धति से मां की आराधना की जाती है।