विभाग ने दिया घटिया किस्म का जीरा
संवाद सूत्र सारवां (देवघर) मत्स्य विभाग की ओर से मनरेगा के तहत डोभा लाभुकों के बीच घटिया किस्म के मछली का जीरा वितरित किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। इससे मत्स्य पालकों में नाराजगी है। किसानों से मिली जानकारी के अनुसार मत्स्य विभाग की ओर से पिछले वर्ष 600 पैकेट मछली का जीरा का वितरण प्रखंड क्षेत्र के लाभुकों के बीच किया गया था लेकिन घटिया किस्म होने के कारण उसमें से एक भी मछली के जीरा में कुछ भी वृद्धि नहीं हुआ।
संवाद सूत्र, सारवां (देवघर) : मत्स्य विभाग की ओर से मनरेगा के तहत डोभा लाभुकों के बीच घटिया किस्म के मछली का जीरा वितरित किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। इससे मत्स्य पालकों में नाराजगी है।
किसानों से मिली जानकारी के अनुसार मत्स्य विभाग की ओर से पिछले वर्ष 600 पैकेट मछली का जीरा का वितरण प्रखंड क्षेत्र के लाभुकों के बीच किया गया था, लेकिन घटिया किस्म होने के कारण उसमें से एक भी मछली के जीरा में कुछ भी वृद्धि नहीं हुआ। हालांकि अधिकांश स्थानों पर कम पानी में जीरा डाल दिया गया लेकिन जहां पर्याप्त पानी रहा, वहां भी 10 से 15 ग्राम से ज्यादा का मछली नहीं हुआ। कुल मिलाकर किसानों की मेहनत पर पानी फिर गया है। जिसकी जानकारी किसानों ने विभाग को दी, लेकिन विभाग ने भी हाथ खड़ा कर दिया गया है। किसी प्रकार का कोई पहल नहीं होने से स्थिति जस का तस बना हुआ है। इसके कारण तीस लाख मछली का जीरा बेकार हो गया है। सरकार की राशि तो खर्च हुई, लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाया। कुछ ऐसा ही नजारा मंगलवार को प्रखंड मुख्यालय परिसर में देखने को मिला, जब मत्स्य विभाग की ओर से मछली का जीरा वितरण किया जा रहा था। हैरत की बात है कि इसकी जानकारी ना तो प्रखंड के प्रमुख और नहीं अन्य अधिकारियों को थी। पूछे जाने पर कोई अधिकारी जानकारी नहीं दे पा रहा था। विभागीय कर्मी भीम वर्मा से इसकी जानकारी लेने की कोशिश की गई तो उन्होंने बताया कि मनरेगा विभाग के डोभा लाभुकों के बीच वितरण किया जा रहा है। क्या कहा मत्स्य पालाकों ने जीरा के अच्छी प्रजाति का नहीं होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। जो भी मिले गुणवत्तापूर्ण मिलना चाहिए, अधिकारियों व जनप्रतिनिधि की देखरेख में इसका वितरण होना चाहिए सिर्फ खानापूर्ति करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। पिटू वर्मा पिछले बार दो पैकेट जीरा ले गए थे, लेकिन दो भाग में कुछ पता नहीं चल पाया की जीरा कहां गया। इस बार डोभा में पानी नहीं रहने के कारण उसे नहीं ले जा रहे हैं और ले जाने का भी कोई फायदा नहीं सिर्फ यह खानापूर्ति है इसे नहीं ले जाने से ही फायदा है। कार्तिक यादव पिछले वर्ष दो पैकेट मछली का जीरा ले गए थे, अधिकांश उसी दिन मर गए। शेष का कुछ पता नहीं चल पाया। कुल मिलाकर यह लाभुकों के साथ छलावा है। किसान मेहनत तो करते हैं लेकिन इसका कोई फायदा नहीं मिलता इसकी विभागीय जांच होनी चाहिए। पंकज ठाकुर अधिकांश पैकेट में मछली का जीरा छोटा रहने के कारण मर जाता है। जीरा सरकार की ओर से अच्छे किस्म का देना चाहिए, सिर्फ खानापूर्ति करने से कोई फायदा नहीं होने वाला है। यह सरकार की राशि का यह दुरुपयोग है, जब भी हो अच्छा नस्ल का जीरा मिलना चाहिए। मो. कासिम अंसारी पिछले वर्ष एक लाख मछली का जिला विभाग की ओर से मिला था, जिसको ले जाकर दो भाग में डाला, अधिकांश मर गए तो शेष में वृद्धि नहीं हुई। घटिया किस्म का जीरा दिया जाता है, जिसके कारण उसे डालने या ना डालने से कोई फायदा नहीं है। बालकृष्ण सिंह निश्शुल्क मिलने के कारण ले लेते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं है। इस बार कहा गया है कि अच्छा नस्ल है, लेकिन देखने से लगता है पिछला वाला ही जीरा दिया जा रहा है। विकास यादव जनप्रतिनिधियों को इसकी जानकारी नहीं दी गई है, इसकी जानकारी होनी चाहिए। सबसे पहले तो इसका प्रशिक्षण होना चाहिए कि मछली पालन कैसे करें।अच्छी नस्ल का जीरा किसानों के बीच वितरित होना चाहिए। आज तक प्रखंड क्षेत्र के एक भी किसानों के जीरा का वृद्धि नहीं हुआ है। इसकी जांच होनी चाहिए। बालक हांसदा, पंचायत समिति सदस्य, बनवारी एक भी किसान ने पिछले वर्ष के जीरा के बारे में सकारात्मक बात नहीं कही है। जीरा घटिया रहने के कारण वृद्धि नहीं हो पाई। मत्स्य विभाग चतुर्थ वर्गीय कर्मी से जीरा का वितरण कराता है, एक भी पदाधिकारी उपस्थित नहीं रहता है। किसानों द्वारा लगातार इसकी शिकायत की जा रही है। इसकी जांच की मांग की जाएगी। क्षेत्र में एक भी किसानों को इसका फायदा नहीं मिला सिर्फ सरकारी राशि का बंदरबांट किया जा रहा है। मुकेश कुमार, प्रमुख, सारवां