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बेटे के इलाज की ¨चता में अपना गम भूल गई निश्शक्त मां

मधुपुर (देवघर) : हौसले की उड़ान से दिव्यांग व्यक्ति जहां जीत लेता है। उसका जज्बा सामने वाले क

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Oct 2018 11:06 PM (IST)Updated: Mon, 22 Oct 2018 11:06 PM (IST)
बेटे के इलाज की ¨चता में अपना गम भूल गई निश्शक्त मां
बेटे के इलाज की ¨चता में अपना गम भूल गई निश्शक्त मां

मधुपुर (देवघर) : हौसले की उड़ान से दिव्यांग व्यक्ति जहां जीत लेता है। उसका जज्बा सामने वाले को सलाम करने को मजबूर कर देता है। लेकिन हालात जब अनुकूल नहीं हो तो उससे लड़ने में वक्त लग जाता है। कुछ ऐसा ही ¨पकी के साथ हो रहा है। एक तो वह निश्शक्त है, दूसरा बेटा बीमार है। पति का साथ भी नहीं मिल रहा। शहर के वार्ड नंबर 6 भैरवा मोहल्ला की रहने वाली 26 वर्षीय ¨पकी देवी पिछले दो दिनों से अनुमंडल अस्पताल के कुपोषण उपचार केंद्र में ढाई साल के पुत्र अभिषेक का इलाज कराने के लिए किसी मसीहा का इंतजार कर रही है। हालांकि अभिषेक का इलाज कुपोषण उपचार केंद्र में चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन वह वास्तविक मायने में कुपोषण से पीड़ित नहीं बल्कि अन्य बीमारी से ग्रसित है। दोनों पैरों से लाचार और विवश ¨पकी देवी की पीड़ा ऐसी है कि किसी की भी आंखे भर जाएगी। ¨पकी बताती है कि उसकी शादी 10 साल पूर्व राजेश महतो के साथ हुई। उसका पति बिहार के बाढ़ का रहने वाला है। वह दिल्ली में काम करता है। पिछले 6 माह से अधिक समय से उसका पति दिल्ली से नहीं आया है और नहीं उससे किसी तरह का संपर्क हो पा रहा है। उसके पास पति का मोबाइल नंबर भी नहीं है। उसने बताया कि वह मोहल्ले वासियों के रहमोंकरम पर अपने बच्चे के साथ जीवन यापन कर रही है। चूंकि शरीर से इस तरह लाचार है कि वह कोई काम भी नहीं कर सकती है। उसने बताया कि शंकर महतो के घर में रहती है और उसके घर का जूठन बर्तन मांजने का काम करती है। जिससे घर का किराया नहीं देना पड़ता है। ¨पकी की सबसे दुख भरी कहानी यह है कि 5 साल पहले दिव्यांग प्रमाण पत्र तो सरकारी स्तर से निर्गत कर दिया गया। लेकिन उसके पास इतनी राशि नहीं है कि वह बैंक में खाता खुलवा सके। बताया कि खाता खुलवाने में 900 रुपए बैंक अधिकारी मांगते हैं। क्योंकि चार सौ रुपए हमेशा खाता में रखने की बात कहते हैं। लेकिन उसके पास भोजन तक के जब पैसे नहीं है तो खाता कहां से खुलवा पाएगी। यही वजह है कि आज तक दिव्यांगता पेंशन से वह वंचित रही है। उसने बताया कि उसके बच्चे की हालत खराब देखकर पड़ोसी ने अनुमंडल अस्पताल के कुपोषण उपचार केंद्र में भर्ती करा दिया। उसने बताया कि उसके पास आधा कट्ठा जमीन है। लेकिन प्रधानमंत्री आवास तभी बनेगा जब बैंक में खाता खुलेगा। बताया कि उसका बेटा बचपन से ही बीमार रहता है। उसके आंखों से पानी हमेशा गिरता रहता है। उसके पास इलाज के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं है। वह चाहती है कि उसका बेटा स्वस्थ हो जाए और जीने का सहारा बने। उसने शहर के तमाम राजनीतिक दलों, विधायक, मंत्री, समाजसेवियों से अपने इकलौते बच्चे के बेहतर इलाज के लिए आर्थिक सहयोग करने का आग्रह किया है।

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