पंचाक्षरी मंत्र जाप से शिवलोक की प्राप्ति
देवघर : बाबाधाम आने वाले शिवभक्त कांवर के साथ पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हैं। इससे उन्हे अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है। सचमुच में पंचाक्षरी मंत्र अत्यंत श्रेष्ठ है। इस मंत्र के जाप से सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है तथा पाप नष्ट हो जाते हैं।
विद्वानों का कहना है कि सच्चिदानंद स्वरूप भगवान सदाशिव सदैव इस मंत्र में विराजमान रहते हैं। जो मनुष्य सांसारिक सुखों में लिप्त होकर अपने जीवन को कष्ट दे रहे हैं, उनके कल्याण के लिए भगवान सदाशिव ने इस मंत्र को प्रकट किया।
इस मंत्र के संबंध में एक कथा प्रचलित है- यदुवंश में दार्शाह नामक एक अत्यंत प्रतापी राजा थे। वह सभी शास्त्रों के ज्ञाता, महान योद्धा, परमवीर, संतोषी तथा चतुर थे। काशी के राजा की पुत्री कलावती के साथ उनका विवाह हुआ था। वह स्त्री परम सुंदरी एवं पतिव्रता थी। एक दिन राजा दार्शाह ने अपनी पत्नी के साथ मैथुन करना चाहा लेकिन कलावती ने ऐसा करने से मना कर दिया। इस प्रकार राजा के बलपूर्वक भोग करने की लिप्सा के मद्देनजर कलावती ने कहा- हे राजन आप मुझे स्पर्श न करे क्योंकि मैं इस समय व्रत में हूं। शास्त्रों के अनुसार व्रत धारण की हुई स्त्री से सहवास वर्जित है। पत्नी द्वारा बहुत समझाने पर भी नहीं मानकर राजा ने बलपूर्वक भोग किया। भोग के उपरांत अकस्मात राजा का हृदय जलने लगा और वे घबराकर रानी से बोले कि उसके संपूर्ण शरीर में जलन हो रहा है। तब रानी ने कहा कि दुर्वासा जी ने मुझे पंचाक्षरी मंत्र का उपदेश दिया था। इस मंत्र के जाप से शरीर निष्पाप हो जाता है। रानी ने कहा कि आप राजमद में दूसरे स्त्रियों के साथ भोगकर मेरे पास आये हैं इसलिए मेरे स्पर्श से आपका शरीर जल रहा है।
पत्नी की बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गये और पंचाक्षरी मंत्र को जानना चाहा। पत्नी के कहने पर राजा ने गर्ग मुनि से पंचाक्षरी मंत्र का उपदेश लिया तथा इनके जपने से उनके सभी पाप नष्ट हो गए। गर्ग मुनि ने कहा कि हे राजन यह मंत्र अन्य सभी मंत्रों का सम्राट है तथा शिवजी को परमप्रिय है। इस मंत्र के जप करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है और राजा ने मुनि के बताए मंत्र का जाप कर मुक्ति पाई।
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