मनरेगा से नहीं मिटी भूख, प्रवासी कर रहें शहर का रुख
जुलकर नैन/दिलीप सिंह चतरा साहब कोरोना से तो बचा जा सकता है लेकिन भूख को कैसे मात दे
जुलकर नैन/दिलीप सिंह, चतरा : साहब कोरोना से तो बचा जा सकता है, लेकिन भूख को कैसे मात दे सकते हैं। पेट को रोटी चाहिए। यहां रहकर भूख की आग मिट नहीं रही है। सरकार के दावों से पेट नहीं भरने को है। मनरेगा से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। अर्थ उपार्जन का दूसरा कोई और जरिया नहीं है। ऐसे में बस एक मात्र विकल्प पलायन है। यह दर्द भरी कहानी जिले के प्रवासी मजदूरों की है। प्रवासी मजदूर अब फिर बड़े शहरों एवं दूसरे प्रदेशों का रुख कर रहे हैं। उन्हें लेने के लिए संबंधित कंपनियों से वातानुकूलित बसें आ रही है। उन बसों पर सवार होकर वे रवाना हो रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि प्राय: मजदूर बगैर निबंधन कराए ही वापस लौट रहे हैं। जबकि सरकार ने यह नियम बना रखा है कि बगैर निबंधन का प्रवासी मजदूर बाहर नहीं जा सकते हैं। परंतु प्रवासी मजदूर इसका अनुपालन नहीं कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान करीब 32 हजार प्रवासी मजदूर वापस आए थे। जिसमें से अब तक आधे से अधिक वापस लौट चुके हैं। लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि इनमें से मात्र 35 ने निबंधन के लिए स्थानीय श्रम कार्यालय में आवेदन किया है। पिछले पांच दिनों में सिर्फ कान्हाचट्टी प्रखंड से करीब चार सौ मजदूर गुजरात के अहमदाबाद एवं दूसरे अन्य शहरों के लिए रवाना हुए हैं। इनमें से कुछ मजदूरों को लेने के लिए वहां से वातानुकूलित बसें आई थीं तथा कुछ ने स्थानीय स्तर पर बसों को सुरक्षित कर रवाना हो रहे हैं। इसी प्रकार प्रतापपुर, हंटरगंज, मयूरहंड, सिमरिया, टंडवा, लावालौंग आदि प्रखंडों से भी हजारों की संख्या में प्रवासी वापस लौटे हैं। कान्हाचट्टी प्रखंड के हेमरा गांव निवासी हरिलाल भोक्ता, झूमन भोक्ता एवं अनिल भोक्ता दो दिन पहले गुजरात के लिए रवाना हुए। उनके साथ करीब तीन सौ प्रवासी थे। हरिलाल भोक्ता ने बताया कि गांव में रोजगार की संभावना नहीं है। लॉक डाउन में आने के बाद से बेरोजगार बैठा हुआ था। मनरेगा से जाबकार्ड बनाया गया। लेकिन काम नहीं मिला। ऐसे में एक मात्र विकल्प शहर की ओर वापस लौटना ही रह गया है। इसी गांव के अनिल भोक्ता ने बताया कि गुजरात के अहमदाबाद एवं भाऊनगर की एक कंपनी में काम करते हैं। कंपनी का बुलावा आया और वे वहां के लिए रवाना हो गए। वाहन यात्रा व्यय कंपनी वहन करेगी। कोल्हैया गांव निवासी बासुदेव विश्वर्मा एवं कैलाश सिंह ने बताया कि गांव में रहकर दो जून की रोटी को जुगाड़ करना अब संभव नहीं है। इसलिए वापस लौट रहे हैं। ::::::::::::::::
अधिकारी वर्जन
वापस जाने के लिए अब तक मात्र 35 प्रवासी मजदूरों ने निबंधन कराया है। प्रवासियों के लौटने की जानकारी नहीं है। जब तक राज्यों की सीमा पर सख्ती नहीं बरती जाएगी, तब तक प्रवासियों को वापस जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
अरविद कुमार, श्रम अधीक्षक, चतरा।