Lok Sabha Polls 2019: कौलेश्वरी से सबको अपेक्षा, फिर भी इसकी उपेक्षा
Lok Sabha Polls 2019. झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी कौलेश्वरी पर्वत देश-विदेश के सैलानियों का पसंदीदा स्थल होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है।
चतरा, [जुलकर नैन]। झारखंड की सांस्कृतिक अस्मिता का साक्षी कौलेश्वरी पर्वत देश-विदेश के सैलानियों का पसंदीदा स्थल होने के बावजूद उपेक्षा का शिकार है। सनातन, बौद्ध और जैन धर्म के इस सांस्कृतिक संगम से प्रतिवर्ष लाखों रुपये के राजस्व प्राप्ति के बावजूद यह पर्यटन स्थल विकास के दृष्टिकोण से अत्यंत पिछड़ा है। लिहाजा आसन्न लोकसभा चुनाव में यह एक बड़े चुनावी मुद्दे के रूप सामने खड़ा है।
यहां यह बताना उचित होगा कि यह सनातन धर्मावलंबियों की मनोकामना शक्तिपीठ है। दुर्गा सप्तशती में भी देवी कौलेश्वरी का उल्लेख है। आस्था के मुताबिक देवी कौलेश्वरी यहां आने वाले याचकों की मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर गाजे-बाजे के साथ यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह और खुशी देखते ही बनती है। अक्सर चहुंओर उत्सवी माहौल रहता है।
अपने मनमोहक सौंदर्य और अनुपम प्राकृतिक छटा के लिए सुविख्यात इस स्थल की महिमा का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र पर दर्शन के लिए वहां दस लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु पहुंचते हैं। वैसे सालों भर मुंडन अथवा वैवाहिक मुहूर्त पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। आश्चर्य यह कि 1550 फीट की दुर्गम पर्वतीय चढ़ाई और अनिवार्य मानवीय सुविधाओं का अभाव भी श्रद्धालुओं के कदम नहीं रोक पाता है।
साल दर साल वहां पर्यटकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की मां कौलेश्वरी से कुछ न कुछ अपेक्षा अवश्य होती है। इसी प्रकार यह स्थल बौद्धधर्मावलंबियों में भगवान गौतम बुद्ध और जैन धर्मावलंबियों में तीर्थंकर पारसनाथ की तपोभूमि के रूप में ख्यात है। पर्वत पर तपस्यालीन एक ऐसी मूर्ति है, जिसे सनातनी भैरवनाथ, बौद्धिस्ट गौतम बुद्ध और जैन धर्मावलंबी पारसनाथ के रूप में प्राचीन काल से पूजते आ रहे हैं।
सांप्रदायिक सद्भाव का यह देश का इकलौता उदाहरण है। कहना न होगा कि अपने अंदर इतिहास का खजाना समेटे यह स्थल अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की असीम संभावनाएं रखता है। यहां विभिन्न देशों के हजारों सैलानी प्रतिवर्ष पहुंचते हैं। उनमें ज्यादातर बौद्धिस्ट होते हैं। खासकर बोद्धगया आने वाले हर श्रद्धालु की दिली इच्छा कौलेश्वरी दर्शन की होती है।
ऐसी बात नहीं कि जनप्रतिनिधि अथवा सरकार इससे अनभिज्ञ हैं। मौजूदा सांसद सुनील कुमार सिंह की मेहनत और सक्रियता से सरकार ने इसे राजकीय पर्यटन स्थल घोषित कर रखा है। प्रत्येक वर्ष कौलेश्वरी महोत्सव भी होता है। राज्य सरकार की कैबिनेट ने पर्वत पर रोप-वे लगाने और पर्यटक परिसर के निर्माण के लिए 25 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं।
पिछले वर्ष कौलेश्वरी महोत्सव का उद्घाटन करने आए राज्य के पर्यटन मंत्री अमर कुमार बाउरी ने कौलेश्वरी के लिए श्राइन बोर्ड गठित करने और दो माह के भीतर रोप-वे का उद्घाटन करने की घोषणा की थी। लेकिन उपेक्षा का आलम यह है कि एक साल बीत जाने के बावजूद रोप-वे का उद्घाटन तो दूर उसके लिए निविदा तक नहीं निकाली गई। वन विभाग की अनापत्ति मिलने में विलंब के बहाने उसे लटका दिया गया है।
श्राइन बोर्ड गठन पर तो सरकारी महकमे में चर्चा तक बंद हो गई है। मौजूदा चुनाव में मतदाता इसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। इस संदर्भ में केदलीकलां निवासी पूर्व प्रखंड प्रमुख कमल कुमार केशरी, मुखिया लालसा देवी, जितेंद्र कुमार समेत दर्जनों लोगों का कहना है कि यदि जन प्रतिनिधि सक्रिय रहते तो जन संवेदना और लोक आस्था से जुड़ा यह सांस्कृतिक सगंम अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो गया होता। बहरहाल कौलेश्वरी पर्वत की उपेक्षा बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रही है।