मौत पर भारी पड़ी छठ महापर्व की आस्था
छठ महापर्व की महिमा के आगे सब कुछ छोटा हो जाता है। लोक आस्था के इस महापर्व को मौत भी डिगा नहीं पाती है। एक बार छठ महापर्व का अनुष्ठान शुरू हुआ तो फिर लाख संकट आने के बाद भी उसे टाला नहीं जाता है। छठ महापर्व के प्रति ऐसी आस्था इस वर्ष इटखोरी में देखने को मिली। पति की मौत के बाद भी पत्नी ने छठ का अनुष्ठान पूर्ण किया। हालांकि पति की मौत की वजह से त्योहार की रौनक फीकी रही। लेकिन छठ का अनुष्ठान बीच में रोका नहीं गया
संजय शर्मा, इटखोरी: छठ महापर्व की महिमा के आगे सब कुछ छोटा हो जाता है। लोक आस्था के इस महापर्व को मौत भी डिगा नहीं पाती है। एक बार छठ महापर्व का अनुष्ठान शुरू हुआ तो फिर लाख संकट आने के बाद भी उसे टाला नहीं जाता है। छठ महापर्व के प्रति ऐसी आस्था इस वर्ष इटखोरी में देखने को मिली। पति की मौत के बाद भी पत्नी ने छठ का अनुष्ठान पूर्ण किया। हालांकि पति की मौत की वजह से त्योहार की रौनक फीकी रही। लेकिन छठ का अनुष्ठान बीच में रोका नहीं गया। दरअसल इटखोरी के जीवलाल साव की पत्नी सुदामा देवी ने इटखोरी में तथा बहू लीला देवी ने पैतृक गांव कनौदी में रविवार को नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का अनुष्ठान शुरू किया था। सोमवार को पूरे विधि-विधान के साथ खरना का अनुष्ठान हुआ। मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्ध्य अर्पण करने की तैयारी घर में चल रही थी। उसी वक्त हजारीबाग के एक अस्पताल में इलाजरत छठव्रती सुदामा देवी के पति जीवलाल साव के निधन की खबर घर में पहुंची। घर के मुखिया की खबर सुनकर पूरा परिवार सदमे में चला गया। एक तरफ घर के मुखिया की मौत की खबर से त्योहार का उत्साह गम में तब्दील हो गया था, तो दूसरी तरफ अस्ताचल की ओर बढ़ते सूर्यदेव को प्रथम अर्ध्य अर्पण करने की घड़ी धीरे-धीरे निकट आ रही थी। पूरा परिवार इस कशमकश में फंसा हुआ था कि ऐसी घड़ी में क्या किया जाए। अंतत: छठ महापर्व की परंपरा के अनुसार तय किया गया कि पहले छठ महापर्व का अनुष्ठान पूरा किया जाए, फिर घर के मुखिया के शव का अग्नि संस्कार हो। हुआ भी ऐसा ही। छठ महापर्व के अनुष्ठान के नियम के तहत मंगलवार की शाम को अस्ताचलगामी तथा बुधवार की सुबह में उदीयमान सूर्यदेव को अर्ध्य अर्पण किया गया। इसके बाद पैतृक गांव कनौदी के शमशान घाट पर मृतक जीवलाल साव के शव का अंतिम संस्कार किया गया।