पुलिस बेरूखी से बना नक्सली, हिसा से आहत होकर राह बदली
कोई शौक से हिसा की राह नहीं अपनाता है। कुछ न कुछ मजबूरी होती है। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें गुलाम पालने ख्वाहिश होती है और उनकी चाहत पूरी नहीं होती है
चतरा : कोई शौक से हिसा की राह नहीं अपनाता है। कुछ न कुछ मजबूरी होती है। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें गुलाम पालने ख्वाहिश होती है और उनकी चाहत पूरी नहीं होती है, तो वे जुल्म पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ लखन यादव उर्फ मेघनाथ यादव के साथ। जिले के प्रतापपुर थाना क्षेत्र के अदौरिया गांव निवासी स्वर्गीय भूषण यादव का पुत्र लखन एक साधारण युवक था। गांव में रहकर भैंस चराता था। हिसा से दूर-दूर तक का रिश्ता नहीं था। मारपीट के नाम से भय खाता था। गांव के ही रामाशीष यादव एवं कुछ अन्य लोगों के साथ भूमि का विवाद था। 3.64 एकड़ के भू-खंड पर रामाशीष एवं उनके लोगों ने जबरन कब्जा कर लिया। लखन के चचेरा भाई ईश्वर यादव ने विरोध किया, तो रामाशीष ने उसकी हत्या करा दी। उस समय रामाशीष संगठन (एमसीसी) में था। लखन के परिवार वालों ने इसकी प्राथमिकी दर्ज कराई। मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस गिरफ्तारी के लिए सार्थक प्रयास नहीं कर ही थी। लखन ने आपत्ति दर्ज करते हुए थानेदार से शिकायत की। थानेदार ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया। हालांकि चार दिनों के बाद पुलिस ने रामाशीष को गिरफ्तार कर लिया लेकिन उसके ऊपर धारा इतना कमजोर लगाया गया था कि जल्द ही उसे बेल मिल गया। बेल मिलते ही रामाशीष गांव पहुंचा और लखन एवं उसके परिजनों पर जुल्म ढाने लगा। लखन यादव पुलिस के शरण में गया लेकिन पुलिसवालों ने उसके साथ बेहतर व्यवस्था नहीं किया। पुलिस की बेरूखी से ही वह उग्रवाद की राह को अपना लिया। लखन यादव आप बीती दैनिक जागरण से शेयर करते हुए बताते हैं कि चचेरे भाई की हत्या 1994 में हुई थी। हत्या के बाद वह पूरे डेढ़ वर्ष तक इंसाफ के लिए संघर्ष करते रहा। लेकिन जब इंसाफ मिलने की उम्मीदें पूरी तरह से धूमिल हो गई, तो उन्होंने 1996 में हथियार उठा लिया। कहते हैं कि उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। ऐसे में उसने पूरी तरह से मन बना लिया कि लोहे को लोहा से ही काटा जा सकता है। पार्टी में शामिल होकर बदले की भावना में जलते रहा। लेकिन वह आशीष से बदला नहीं ले सका। इधर वह संगठन के दलदल में फंसता चला गया। इस प्रकार 1996 से लेकर 2013 तक वह माओवादी संगठन में सक्रिय भूमिका में रहा। एरिया कमांडर के पद पर रहते हुए उसने पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। वह कहते हैं कि हिसा से पूरी तरह से आहत हो चुके थे। संगठन में रहकर वह नरक की जिदगी जी रहा था। लखन का तीन लड़का और पांच लड़की है। गांव एवं परिवार के लोग उसे बढि़या नजरों से नहीं देखते थे। हित नाता वाले सभी कोई दूरी बनाए रखते थे। लेकिन जब से वह सामान्य जीवन में प्रवेश किया है, घर-परिवार व हित नाता के लोग मिलना जुलना करने लगे हैं। कहते हैं कि सरकार ने वादा के मुताबिक सुविधाएं नहीं दी है। अब तक उन्हें मात्र ढाई लाख रुपये ही मिला है।