कामधेनु संग महिलाएं बहा रहीं समृद्धि की धार, इस तरह शुरू हुआ सिलसिला Bokaro News
Milk production. झारखंड के इस गांव की 50 महिलाओं ने गो सेवा के जरिये जब स्वावलंबन की राह पकड़ी तो गरीबी इस गांव का रास्ता भूल गई।
बोकारो, अरविंद। झारखंड स्थित बोकारो के पेटरवार ब्लाक का जाराडीह गांव। इस गांव को अब लोग बोकारो के गोकुल के नाम से भी पुकारते हैं। गांव की 50 महिलाओं ने गो सेवा के जरिये जब स्वावलंबन की राह पकड़ी तो गरीबी इस गांव का रास्ता भूल गई। इन महिलाओं ने गो-पालन कर दूध के व्यवसाय को आगे बढ़ाकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति ही बदल दी। इनकी बदौलत आज यहां ढाई हजार लीटर दूध का प्रतिदिन उत्पादन हो रहा है। साथ ही हर महिला प्रतिमाह नौ से 15 हजार रुपये तक आमदनी भी कर रही है।
ऐसे शुरू हुआ सिलसिला
गव्य विकास विभाग ने 90 फीसद सब्सिडी पर बीपीएल परिवार की इन महिलाओं को दो साल पहले दो-दो गायें दी थी। बाद में अन्य महिलाओं ने मिनी डेयरी योजना से 50 फीसद अनुदान पर पांच गायें लीं। फिर इन्होंने अपनी मेहनत दिखाई और देखते ही देखते यहां दूध की गंगा बहने लगी। अब कई महिलाएं और पुरुष दूध के व्यवसाय से जुड़ गए हैं और यह गांव दूध का निर्यातक गांव बन गया है। गोपालन करने वाली हर महिला 20 से 30 लीटर दूध प्रतिदिन डेयरी में भेजती है। दो गाय से काम शुरू करने वाली कई महिलाओं के पास अब पांच-छह गायें हैं।
बना गोकुल विकास भवन
सरकार ने महिलाओं की इच्छा शक्ति देख दूध सुरक्षित रखने वाली दो हजार लीटर क्षमता की बल्क मिल्क कूलर मशीन लगाई है। अधिक दूध उत्पादन के कारण अब पांच हजार लीटर दूध को सुरक्षित रखने वाली मशीन लगाने की तैयारी है। गांव में दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 27 लाख रुपये की लागत से गोकुल ग्राम विकास भवन बनाया गया है। इसमें पांच हजार लीटर क्षमता वाली मिल्क कूलिंग मशीन लगेगी।
चारे के लिए घास की खेती
इन महिलाओं ने गाय के चारे की भी व्यवस्था कर ली है। बाजार से हरा चारा लेना महंगा पड़ता है। इसलिए, महिलाएं पांच एकड़ जमीन पर केवल नेपियर घास की खेती कर रही हैं। एक बार लगाई गई घास पांच वषरें तक चारे की कमी नहीं होने देती।
पलायन कर गए पुरुषों ने की गांव वापसी
रोजी-रोटी कमाने के लिए गांव के कई युवक बाहर चले गए थे। उनमें इन महिलाओं के परिवार के लोग भी थे। अब दूध के व्यवसाय के जरिए गांव में खुशहाली लौटी तो रोजी-रोटी के लिए दूर-दराज के शहरों में गए लोग भी वापस लौट आए। कोशिल देवी के पति सुरेंद्र महतो, सीता के पति राकेश कुमार महतो, पार्वती के पति उदन ठाकुर, गुलाबी देवी के पति लालचंद्र महतो ने बताया कि वे बाहर जाकर मजदूरी कर रहे थे। जब पता चला कि घर में पत्नी ने परिवार का अर्थतंत्र ही बदल दिया तो लौट आए। अब दूध के व्यवसाय में सहयोग कर परिवार चला रहे हैं।
अब बाइक व स्कूटी से भर रहीं फर्राटा
शीला देवी ने बताया कि पति कृष्ण महतो मुंबई में मजदूरी करने गए थे। हमारी सफलता देख लौट आए। मिनी डेयरी योजना के तहत पांच गाय पचास फीसद अनुदान पर लेकर गोपालन शुरू किया था। इससे घर का अर्थ तंत्र सुधर गया। दोनों बेटियां अच्छे स्कूलों में पढ़ रही हैं। बेटियों को डॉक्टर बनाना है। पहले घर में साइकिल नहीं थी, अब बाइक व स्कूटी है। गीता देवी ने बताया कि पति संतोष सहगल की मौत हो गई तो माली हालत खराब हो गई। तीनों बेटे छोटा-मोटा काम करते थे। पांच गाय लोन पर लेकर काम शुरू किया। अब दस गायें हो गई हैं। बेटी पूजा की शादी बैंक अधिकारी से की है। अब अपना घर बनाना है।
जाराडीह गांव की महिलाओं को देख आसपास के गांवों में भी गो-पालन के प्रति रुचि बढ़ी है। ये स्वावलंबी बनकर सभी के लिए मिसाल बन गई हैं। गव्य विकास विभाग दूध उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए हर तरह के प्रयास कर रहा है।
-संजय कुमार, तकनीकी अधिकारी, गव्य विकास विभाग, बोकारो।