बेरमो के हथियापत्थर मेला से वचन निभाने का संदेश
बेरमो बेरमो के हथियापत्थर मेला से वचन निभाने का संदेश मिलता है। किवदंती है कि वचन से
बेरमो : बेरमो के हथियापत्थर मेला से वचन निभाने का संदेश मिलता है। किवदंती है कि वचन से विमुख एक राजा के बराती नदी में डूबकर यहां पत्थर बन गए। मकर संक्राति के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष यहां एकदिवसीय भव्य मेला लगता है। हथियापत्थर मेला में बेरमो कोयलांचल व आसपास के लोग शिरकत न करें, ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि इस मेला के प्रति लोगों में मात्र मनोरंजन ही नहीं, बल्कि अगाध श्रद्धा भी है। यहां लगने वाले मेले में जहां तरह-तरह के स्टॉल सहित खेल-तमाशे व झूले आदि मनोरंजन के साधन उपलब्ध रहते हैं, वहीं दामोदर नदी की जलधारा में अवस्थित हाथी के पथरीले स्वरूप समेत उसके निकट स्थित अनगिनत पत्थर के टीले भी लोगों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। उसके बारे में प्रचलित किवदंती के आलोक में उत्सुकतावश लोग उसे देखने को यहां आएदिन तो पहुंचते ही रहते हैं, जबकि मकर संक्रांति पर लगने वाले मेले के दौरान तो यहां जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मेले का आनंद लेने सहित लोग यहां अवस्थित हथियापत्थर धाम मंदिर व हथियापत्थर के दर्शन कर पूजा-अर्चना करने के अलावा मन्नतें भी मांगते हैं।
----------------------------- कृतघ्न राजा की बरात डूबने की याद :
हथियापत्थर के संबंध में प्रचलित किवदंती के अनुसार किसी जमाने में एक राजा की बरात को फुसरो स्थित दामोदर नदी के उस पार जाना था, लेकिन नदी में अचानक बाढ़ आ जाने के कारण बरात का उस पार जाना संभव नहीं हो पा रहा था। तब राजा ने मन्नत मानी थी कि यदि नदी के बाढ़ का उफान थम जाएगा और घोड़े-हाथी समेत तमाम बराती व सेना उस पार सकुशल पहुंच जाएंगे, तो पूजा कराएंगे। कहते हैं कि राजा द्वारा उक्त मन्नत के मानने के कुछ क्षण बाद ही नदी में बाढ़ का उफान थम गया और राजा की बरात नदी को पार करके सकुशल उस पार चली गई। जबकि उस पार पहुंचते ही राजा अपनी मन्नत से मुकर गया और कह दिया कि भाड़ में जाए ऐसी मन्नत। कहा जाता है कि उसके बाद जब उस बरात की वापसी होने लगी तब तो नदी की जलधारा बिल्कुल शांत थी, लेकिन ज्योंही हाथी-घोड़े पर सवार बराती व दूल्हा बना राजा नदी को पार करने को जलधारा में उतरे, अचानक नदी में जोरदार बाढ़ आ गई और देखते ही देखते राजा सहित उनके तमाम बराती व सैनिक डूब गए। बाद में जब नदी का बाढ़ शांत हुआ, तो लोग यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि राजा व उनके हाथी सहित घोड़े, बराती व तमाम सैनिक पत्थर की चट्टानों में परिणत हो गए थे। हथियापत्थर के संबंध में उक्त किवदंती आज भी प्रचलित है और उस कृतघ्न राजा की बरात डूबने की याद में मकर संक्रांति के अवसर पर यहां लगने वाले मेले में लोग काफी संख्या में जुटकर पूजा-अर्चना करने सहित मन्नतें भी मांगते हैं।