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महिलाओं का दुख-दर्द देख इनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया

इंग्लैंड की लिंडसे ने रिसर्च के दौरान जब चंदनकियारी प्रखंड की महिलाओं का दुखदर्द देखा तो उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 02:41 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 02:41 PM (IST)
महिलाओं का दुख-दर्द देख इनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया

बोकारो, राममूर्ति प्रसाद। इंग्लैंड के लंकाशायर की रहने वाली लिंडसे बार्न्स तालीम के लिए 1982 में भारत आई थीं। रिसर्च के दौरान उन्होंने जब चंदनकियारी प्रखंड की महिलाओं का दुखदर्द देखा तो उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया। उनके लिए लिंडसे ने उच्च शिक्षा के साथ अपना वतन छोड़ दिया। भारत में रहने का निर्णय लिया। चंदनकियारी प्रखंड के चमड़ाबाद में ग्रामीण महिलाओं व बच्चों के लिए स्वास्थ्य केंद्र की नींव रखी। उनकी सेहत दुरुस्त रखने के लिए आयुर्वेदिक दवाओं की व्यवस्था की। फूड प्रोसेसिंग यूनिट बनाई, ताकि इससे महिलाओं को रोजगार मिले। आज वे गांव में रहकर ग्रामीण महिलाओं की सेवा में जुटी हैं।

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चंदनकियारी व चास प्रखंड के करीब सौ गांवों की महिलाओं व बच्चों को बेहद कम कीमत पर चिकित्सकीय सुविधाएं वे दिलवा रहीं हैं। कई महिलाओं को रोजगार से भी जोड़ा है। लिंडसे ने 1982 में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान विषय से स्नातकोत्तर में प्रवेश लिया था। तभी उनकी मुलाकात रंजन घोष से हुई। रंजन को इस बीच चंदनकियारी के चंद्रा कॉलेज में प्राचार्य के तौर पर नियुक्ति मिल गई। दूसरी ओर लिंडसे भी कोलियरी की महिला कामगारों के जीवन पर शोध कर रहीं थीं। इसके लिए वे भी धनबाद के झरिया व बोकारो के भोजूडीह आईं।

इस बीच, उनकी रंजन घोष से फिर मुलाकात हो गई। रंजन ने उनके रहने की व्यवस्था की। इसके बाद लिंडसे गांव-गांव घूमकर क्षेत्र की खदानों में काम करने वाली महिलाओं से मिलने लगीं। उनकी समस्याओं को करीब से जाना। उन्होंने देखा कि पूरे क्षेत्र में चिकित्सकीय व्यवस्था ध्वस्त है। महिलाओं व बच्चों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिलतीं। झोला छाप चिकित्सकों का बोलबाला है। गर्भवती महिलाओं की जान इन चिकित्सकों के कारण खतरे में रहती है। सुरक्षित प्रसव तक की अच्छी व्यवस्था नहीं थी। अधिकतर गर्भवती का घर में ही प्रसव कराया जाता था। कभी कभार जच्चा व बच्चा की जान भी चली जाती थी। जिला मुख्यालय दूर था। रात में प्रसव होने पर गर्भवती महिलाओं की जान पर बन आती थी। तब लिंडसे ने बड़ा फैसला किया। पढ़ाई छोड़ दी। इन महिलाओं के दुखदर्द में जिंदगी का सार तलाश लिया। रंजन घोष से इस बीच नजदीकी बढ़ी तो दोनों विवाह बंधन में बंध गए।

...और चुना खपरैल के घर में ठौर

लिंडसे के पिता जॉन लंकाशायर में बिजनेस करते थे। वहां उनका शानदार मकान है। माता बारबरा गृहिणी थीं। लिंडसे तीन बहनें व एक भाई है। सभी ने इनको वतन वापस बुलाने का काफी प्रयास किया। बावजूद इन्होंने तो इन महिलाओं के लिए जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया था। यहां चमड़ाबाद गांव में ही खपरैल का घर बनाया। तीन चार वर्ष में लिंडसे लंकाशायर जाकर परिजनों से मिल आती हैं।

मिट्टी के कमरों से शुरू स्वास्थ्य केंद्र हुआ आधुनिक

घर के पास ही मिट्टी के तीन कमरे बनवाए। इसे स्वास्थ्य केंद्र का रूप दिया। पहले गांव की महिलाओं को स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी दी। बच्चों की देखभाल के बारे में बताया। बाद में गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिए स्वास्थ्य केंद्र में कुशल नर्स को रखा। उसकी देखरेख में गर्भवती महिलाओं का प्रसव होने लगा। धीरे-धीरे चास व चंदनकियारी प्रखंड की महिलाओं की भीड़ आने लगी। 1994-95 में इन्होंने जन चेतना मंच का गठन किया। स्वास्थ्य केंद्र को आधुनिक रूप दिया। आज यहां दो मंजिला स्वास्थ्य केंद्र बन गया है।

अल्ट्रासाउंड मशीन, एंबुलेंस के अलावा आधुनिक प्रयोगशाला भी है। आज यहां स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शीला नारायण, डॉ. वरुणा शर्मा, डॉ. सरस्वती व डॉ. रीता हांसदा सेवा देती हैं। हर माह 100 महिलाओं को प्रसव कराया जाता है। उनको निश्शुल्क छह किलो किग्रा चना का सत्तू भी दिया जाता है। जांच के लिए 30 रुपये एवं सामान्य प्रसव के लिए 1500 रुपया शुल्क निर्धारित है। इस केंद्र में 44 कर्मचारी व 70 स्वास्थ्य सखी हैं। शुल्क से आई राशि से मानदेय दिया जाता है।

आयुर्वेदिक औषधियों ने दिया रोजगार

स्वास्थ्य केंद्र के निकट फूड प्रोसेसिंग यूनिट व आयुर्वेदिक दवा केंद्र बना है। गांव की महिलाएं जड़ी-बूटी व फूल से कफ सीरप, मालिश का तेल तैयार करती हैं। फूड प्रोसेसिंग यूनिट में चना का सत्तू, दलिया तैयार होता है। इसकी बिक्री से क्षेत्र की अनेक महिलाओं को आय होती है। लिंडसे बतौर काउंसलर रोगियों की सेवा करती हैं।


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