झारखंडी संस्कृति का प्रतीक दीनी टुसू मनी
बहादुरपुर : टुसुक सेवा करा भालो करी अन्नै-धन्नै देतो धार भरी। आसछे मकर दो दिन सबुर कर
बहादुरपुर : टुसुक सेवा करा भालो करी अन्नै-धन्नै देतो धार भरी। आसछे मकर दो दिन सबुर कर तोरा साया-साड़ी जोगाड़ कर। जैसे पारंपरिक टुसू गीतों से कसमार प्रखंड का ग्रामीण क्षेत्र गुंजायमान होने लगा है। कुंवारी कन्याएं हाट बाजारों में टुसू दीनी मनी के चौड़ल की खरीदारी करने लगी हैं। मकर संक्राति का इंतजार बच्चे से लेकर बूढ़े तक कर रहे हैं। पिछले एक सप्ताह से लोग इसकी तैयारी में जुट गए हैं। प्रखंड के खैराचातर बाजार, कसमार बाजार, मधुकरपुर बाजार में शनिवार को टुसू लेने के लिए युवतियों की काफी भीड़ जुटी रही। 700 से लेकर 1500 सौ रुपये तक के टुसू दीनी चौड़ल की खरीदारी युवतियों ने की।
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कौन थी टुसू मनी : टुसू पर्व प्रेमगाथा से जुड़ा हुआ पर्व है। वास्तव में दीनी टुसू मनी एक साहसी लड़की थी। टुसू के पिता काशी राज नामक राजा थे। टुसू देखने में काफी सुंदर थी। वह सागर नामक लड़का से प्रेम करती थी। वह काशी राज के यहां सैनिक था, सागर रथ चलाने में निपुण था। उसका काम टुसू को रथ पर चढ़ाकर भ्रमण कराना था। इसी दौरान दोनों को प्रेम हो गया। इसकी जानकारी मिलने पर राजा से सागर को कैद कर लिया और मारपीट कर उसे समुद्र में फेंक दिया। इसकी जानकारी मिलने पर टुसू उदास रहने लगी और खाना पीना छोड़ दी। कुछ दिन के बाद सागर पुन: लौट कर आया और फिर राजा ने उसकी पिटाई करते हुए बोरा में डालकर समुद्र में फेंक दिया। इस बार टुसू को सपना आया कि सागर उसका इंतजार समुद्र में कर रहा है। टुसू ने इसकी जानकारी अपनी सहेलियों को दी। तो सहेलियों ने उसे मकर संक्रांति के दिन मकर स्नान करने के नाम पर पालकी में चढ़ाकर समुद्र पहुंचा दिया। दंतकथा है कि समुद्र में दोनों का मिलन हुआ। इसके बाद से यहां दीनी टुसू मनी की पूजा अर्चना होती है तो कुंवारी कन्याएं टुसू की पालकी को प्रति वर्ष उसकी याद करती हैं।
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रंगीन कागजों से सजाई जाती है पालकी : टुसू की पालकी का निर्माण में अलग अलग तरीके से की जाती है। इसके लिए रंगीन कागजों के माध्यम से पालकी को सजाया जाता है। एक पालकी बनाने में लगभग 500 से 700 रुपये तक खर्च आता है। झारखंड सहित पश्चिम बंगाल के घर-घर में दीनी टुसू मनी की पूजा होती है।
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बांका पीठा का प्रचलन : लोग मकर संक्रांति के दिन बांग्ला पंचाग और वर्ष के मध्यम पोष का अंत होता है। इसके लिए प्रत्येक घर में तिल लड्डू के साथ बांका पीठा बनाया जाता है। इसके अलावा तिलकुट, मूढ़ी, चूड़ा आदि खाने का विधान है।