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इलेक्ट्रोस्टील चलेगी या बंद होगी, दिल्ली में होगा फैसला

यदि कंपनी को संचालन अनुमति मिल जाती है तो वेदांता समूह नीलामी के शर्त के मुताबिक इसका विस्तार करते हुए 1.5 मिलियन टन के इस संयंत्र को 5 मिलियन टन कर करेगा।

By Edited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 10:09 AM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 03:17 PM (IST)
इलेक्ट्रोस्टील चलेगी या बंद होगी, दिल्ली में होगा फैसला
इलेक्ट्रोस्टील चलेगी या बंद होगी, दिल्ली में होगा फैसला

जागरण संवाददाता, बोकारो। वेदांता समूह की कंपनी इलेक्ट्रोस्टील चलेगी या बंद होगी इस पर आगामी 10 सितंबर को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को फैसला लेना है। कंपनी को संचालन अनुमति देने के मामले को लेकर चल रही सुनवाई में यह अहम पड़ाव साबित होगा। यदि कंपनी को संचालन अनुमति मिल जाती है तो वेदांता समूह नीलामी के शर्त के मुताबिक इसका विस्तार करते हुए 1.5 मिलियन टन के इस संयंत्र को 5 मिलियन टन कर करेगा। यदि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय संचालन अनुमति (सीटीओ) नहीं निर्गत करता है तो तत्काल कंपनी प्रबंधन की विस्तारीकरण की योजना लटक जाएगी और कंपनी को बंद करना होगा। चूंकि पहले ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले ही आदेश पारित करते हुए कंपनी का सीटीओ रद करने के लिए नोटिस दिया है। इस मामले में झारखंड उच्च न्यायालय ने 27 सितंबर तक रोक लगा दिया है।

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विदित हो कि इलेक्ट्रोस्टील से वर्तमान में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 25 हजार लोग जुड़े हुए हैं। कंपनी सूत्रों की माने तो वेदांता समूह इस मामले को लेकर सरकार से भूमि के नियमितीकरण को लेकर भी बात कर रहा है। यदि सरकार चाहे तो वन भूमि के उपभोग के लिए कंपनी से क्षतिपूरक भूमि एवं जुर्माना के साथ कंपनी नियमित कर सकती है। ताकि लोगों का रोजगार भी न जाए और वन भूमि की भी क्षति नहीं हो। वेदांता ने 5300 करोड़ में खरीदा है संयंत्र : बैंकों का ऋण नहीं चुकाने के कारण गत वर्ष ऋणदेयता बैंक समूह ने इलेक्ट्रोस्टील को नीलाम करने का निर्णय लिया था। लंबी प्रक्रिया के बाद कंपनी को वेदांता समूह ने 5300 करोड़ में खरीदा। इसके बाद कंपनी का विस्तार करने की योजना है। इसके लिए कंपनी को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सीटीओ की आवश्यकता है । इसके बाद ही कंपनी के विस्तारीकरण का काम हो पाएगा।

जानें, क्या है समस्या : इलेक्ट्रोस्टील के पूर्व के प्रबंधन ने जिस जमीन पर संयंत्र का निर्माण किया है। उसमें से 220 एकड़ भूमि पर वन विभाग का दावा है कि वह भूमि उसकी है। इसका विवाद संयंत्र की स्थापना के समय से चल रहा है। खास कर भागाबांध के 147 एकड़ भूमि को लेकर कंपनी व वन विभाग दोनों का दावा अलग-अलग है। कंपनी का कहना है कि वन विभाग के दावे को उच्च न्यायालय खारिज कर चुका है। वहीं वन विभाग का कहना था कि मात्र 17 एकड़ भूमि का विवाद न्यायालय में शेष भूमि पर कंपनी ने कोई दावा नहीं किया और पूरी जमीन उनकी है। ऐसे में वन भूमि पर संचालित संयंत्र के लिए सीटीओ नहीं दिया जा सकता है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में 10 सितंबर को सुनवाई है। वन विभाग के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं सभी संबंधित पक्ष अपना-अपना पक्ष रखेंगे। निर्णय सरकार को लेना है जो आदेश होगा उसका पालन किया जाएगा।
-पीआर नायडू, जिला वन पदाधिकारी।


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