दस वर्षो के बाद परिजनों को देख सकेंगी नुरेशा
रांची : बोकारो के चंदनकियारी की नुरेशा खातून(60)अब अपनी आंखों से दस वर्षो बाद अपने परिव
रांची : बोकारो के चंदनकियारी की नुरेशा खातून(60)अब अपनी आंखों से दस वर्षो बाद अपने परिवार को देख सकेंगी। पिछले दस वर्ष से उनके आंखों की रोशनी लगभग खत्म हो चुकी थी। लेकिन रांची के मेडिका में कॉर्निया ट्रासप्लांट होने के बाद उन्हें एक नई जिंदगी दी। कल तक रूबीना के आंखों में एक फीसद ही रोशनी थी, वह आज तीन मीटर की दूरी तक अंगुलियों को भी गिन सकती हैं।
मेडिका अस्पताल के चिकित्सकों ने जटिल सर्जरी के बाद इसे संभव किया है। चिकित्सकों ने कॉर्निया ट्रांसप्लांट का सहारा लिया। इसके साथ ही मोतियाबिंद की सर्जरी करनी पड़ी थी। दोनों एक साथ करना डाक्टरों के लिए बड़ी चुनौती थी। कॉर्निया की इस सर्जरी में आंखों का प्रेशर बढ़ने के साथ-साथ हेम्बरेज होने का भी डर बना था। इसलिए चुनौती यही थी कि कम समय में और सही प्रबंधन के बीच ऑपरेशन को अपने अंजाम तक पहुंचाना था।
दिल्ली के कॉर्निया डिस्ट्रीब्यूटर सेंटर, केरल आइ बैंक से संपर्क साधकर नुरेशा खातून को यह आंखे उपलब्ध कराई। सर्जरी व कॉर्निया ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. जाहिद अली सिद्दीकी, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिंद्या अनुराधा, रेटिना सर्जन डॉ. अंशुमन और एनेस्थेटिक डॉ. एस वर्मा और डॉ. प्रियंका की टीम ने किया। सर्जरी करीब ढाई घंटे तक चली। चिकित्सकों की टीम ने डोनर के कॉर्निया से ट्रांसप्लांट किया। इसके लिए मरीज के कॉर्निया को निकालकर, बड़ी सावधानीपूर्वक मोतियाबिंद की सर्जरी की गई। इसके बाद कॉर्निया का ट्रांसप्लांट कर दिया गया। इस सर्जरी में चिकित्सक कॉर्निया को काटकर निकालते हैं, इसके बाद अंदर का लैंस, जो खराब हो चुका होता है। उस लैंस की ऊपरी परत को हटाकर मोतियाबिंद को साफ करते हैं। इसके बाद आर्टिफिशियल लैंस को लगाया जाता है तब जाकर कॉर्निया को मरीज के आंखों में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इसे ऑप्टिकल पेनीट्रेटी क्रिटो प्लास्टी सर्जरी भी कहते हैं।
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