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कला, साहित्य के गढ़ में आडिटोरियम तक नहीं

अशोक शर्मा, ऊधमपुर सांस्कृतिक एवं साहित्यक गढ़ ऊधमपुर को आजादी के 71 वर्ष बीत जाने के ब

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 06:31 PM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 06:31 PM (IST)
कला, साहित्य के गढ़ में आडिटोरियम तक नहीं
कला, साहित्य के गढ़ में आडिटोरियम तक नहीं

अशोक शर्मा, ऊधमपुर

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सांस्कृतिक एवं साहित्यक गढ़ ऊधमपुर को आजादी के 71 वर्ष बीत जाने के बावजूद आज तक न तो कोई ऑडिटोरियम मिल सका है और न ही कोई रेडियो स्टेशन। प्रतिभा के धनी जिले से कई कलाकार व साहित्यकार निकल चुके हैं। जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। डोगरी साहित्य की सबसे ज्यादा रचना यहां हो रही है लेकिन इन साहित्यकारों, कलाकारों के पास प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए कोई मंच नहीं है।

जिले के पद्मश्री डॉ. जितेंद्र ऊधमपुरी, शिव वत्स विकल, देशबंधु डोगरा नूतन, प्रकाश प्रेमी, डॉ. ओम विद्यार्थी, अभिशाप, बाल कृष्ण भोरा, दीनू भाई पंत आदि साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। दुखद यह है कि साहित्यिक व सांस्कृतिक गढ़ ऊधमपुर में जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी का कोई कार्यालय तक नहीं है। न तो यहां जिला वाíषक नाट्योत्सव का आयोजन होता है और न ही कोई नियमित गतिविधि। प्रतिभा के निखार के लिए जिस तरह के कार्यक्रम होने चाहिए नहीं हो पाते। जिसके चलते बहुत से प्रतिभाशाली कलाकारों को जीवन में मंच तक नहीं मिल पाता।

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जिले में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। लेकिन बच्चों को मंच ही नहीं मिल पाता। आडिटोरियम तक नहीं है। कई बार रेडियो स्टेशन ऊधमपुर शुरू करने की मांग की गई लेकिन आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अकादमी ने जगह-जगह अपने कार्यालय खोले हुए हैं लेकिन ऊधमपुर की हमेशा अनदेखी हुई है। ऊधमपुर डोगरी की गतिविधियों का गढ़ हो सकता है। लेकिन अकादमी ऐसा नहीं चाहती।

-प्रकाश प्रेमी, वरिष्ठ साहित्यकार

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कोई भी गतिविधि करवाने के लिए कालेजों या निजी संस्थानों की ओर देखना पड़ता है। कम से कम एक अच्छा ऑडिटोरियम तो होना ही चाहिए। अगर जम्मू के अभिनव थियेटर जैसा कोई आडिटोरियम ऊधमपुर को मिल जाए तो यहां से राष्ट्रीय स्तर के कलाकार निकल सकते हैं। इस समय तो साहित्यिक गोष्ठी तक करवाना मुश्किल है।

- सुरजीत होश बडसाली, संस्थापक, मेरी मित्र मंडली इक साहित्यिक क्रांति

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कहने को तो विकास के बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं लेकिन जिस जिले में अच्छा ऑडिटोरियम तक नहीं वहां कितना विकास हुआ होगा अंदाजा लगाया जा सकता है। कठुआ राजौरी, जम्मू की तरह ऊधमपुर में भी अकादमी का कार्यालय या कोई कल्चरल सेंटर खुलना चाहिए। नार्थ जोन कल्चरल सेंटर पटियाला भी ऊधमपुर में कार्यक्रम नहीं करवाती। यह ऊधमपुर के साथ भेदभाव है।

-नेहा शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता

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ऊधमपुर में रेडियो स्टेशन हो तो बच्चों को काफी मौके मिल सकते हैं। यहां लिखने वालों की कोई कमी नहीं है। बहुत सी संस्थाएं कार्यक्रम करवाना चाहती हैं लेकिन कोई सरकारी आडिटोरियम न होने के कारण कार्यक्रम नहीं हो पाते। अगर जम्मू के केएल सहगल हाल की तरह ही कोई हाल ऊधमपुर को मिल जाए यहां नियमित गतिविधियां संभव हैं।

-रेखा ठाकुर, कलाकार एवं साहित्यकार

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कार्यक्रमों के लिए ऑडिटोरियम जरूरी : ललित मगोत्रा

डोगरी संस्था के अध्यक्ष प्रो. ललित मगोत्रा ने कहा कि ऊधमपुर ने सबसे ज्यादा डोगरी के साहित्यकार दिये हैं। इस जिले को लोक संस्कृति का भी गढ़ कहा जा सकता है। लेकिन जिस तरह की सुविधाएं दिए जाने की जरूरत है। नहीं मिली हैं। इतने बड़े जिले में तो एक से अधिक आडिटोरियम होने चाहिए। सिर्फ ऊधमपुर ही नहीं सभी तहसीलों में भी सभागार हो तो सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन संभव है। ऊधमपुर में डोगरी संस्था कार्यक्रम करवाती रहती है लेकिन ऑडिटोरियम न होना बहुत बड़ी समस्या है।

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रिजनल कल्चरल सेंटर मिलेगा : सचिव

जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी के सचिव डा. अजीज हाजिनी ने कहा कि राज्य में सात कल्चरल सेंटर खोलने को मंजूरी मिल चुकी है। लेकिन समय-समय पर चेयरमैन बदलते रहे, जिस कारण इस दिशा में कोई काम नहीं हो पाया। अब अगर राज्यपाल का कोई सलाहकार चेयरमैन बनेगा, तो कल्चरल सेंटर बनाने का कार्य शुरू हो जाएगा। ऊधमपुर में भी एक सेंटर बनाने का प्रस्ताव है।

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