निर्भया के दोषियों की फांसी देर से लेकिन सही फैसला
निर्भया के चारों दोषियों को फांसी मिलने पर महिलाओं ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि देर से ही सही मगर इंसाफ हुआ है। महिलाओं का कहना है कि महिलाओं से संबंधित इस तरह के जघन्य अपराध ही नहीं नहीं बल्कि सभी तरह के अपराधों के मामलों में सुनवाई फास्ट ट्रैक आधार पर होना चाहिए
जागरण संवाददाता, ऊधमपुर : निर्भया के चारों दोषियों को फांसी मिलने पर महिलाओं ने खुशी जताई है। उन्होंने कहा कि देर से ही सही मगर इंसाफ हुआ है। महिलाओं का कहना है कि महिलाओं से संबंधित इस तरह के जघन्य अपराध ही नहीं नहीं बल्कि सभी तरह के अपराधों के मामलों में सुनवाई फास्ट ट्रैक आधार पर होना चाहिए, ताकि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिल सके। इससे महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझ कर मनमानी करने वालों के मन में डर और इज्जत पैदा हो। इसके लिए उन्होंने न्यायिक प्रणाली को और बेहतर, कठोर करने के लिए इसमें और संशोधनों की मांग की है।
निर्भया के गुनहगारों को सजा मिलना संतोष जनक है, लेकिन इसमें ज्यादा विलंब होने से आहत भी हैं। महिलाओं के साथ ऐसे मामले रोकने के लिए देश की कानून व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। जिससे महिलाओं के साथ कुछ भी गलत करने वालों के मन में डर पैदा हो सके। चारों ने जो किया था, वह फांसी के हकदार थे और यही न्याय भी था।
डॉ. संतोष शर्मा, असिस्टेंट डायरेक्टर, फैमिली वेलफेयर
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-निर्भया के दोषियों को सजा से देश में एक कड़ा संदेश गया है। भारतीय न्याय प्रक्रिया लंबी होने के कारण न्याय होने में सात साल लग गए। मगर धनंजय के मामले से तुलना करने में इस बार फैसला काफी जल्दी आया है। उस मामले में तो सजा में 20 साल लगे थे। न्यायिक व्यवस्था बदल रही है। निर्भया के साथ जो दरिदगी हुई थी, इससे कम सजा के दोषी हकदार भी नहीं थे। भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में सबके मानवाधिकार का ध्यान रखा जाता है, इसलिए सजा में विलंब हुआ। मगर देर से ही सही फैसला हुआ है।
-रचना शर्मा, एआरटीओ
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निर्भया के चारों दोषियों को फांसी ने साबित कर दिया है कि महिलाओं से होने वाले अपराधों के प्रति देश कितना गंभीर है। फैसला भले ही देर से हुआ है, लेकिन एक दम सही फैसला हुआ है। अदालत ने दोषियों को उनके अधिकारों का प्रयोग करने का हर मौका और विकल्प दिया। मगर निर्भया के साथ जिस बर्बरता के साथ जघन्य अपराध हुआ था, उसके लिए फांसी से कम कोई सजा थी भी नहीं।
-सना खान, जिला समाज कल्याण अधिकारी
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निर्भया के दोषियों को फांसी देने का फैसला एक दम सही था। फैसला भले ही देर से हुआ है और बार बार डेथ वारंट पर रोक लगी। मगर पहली बार फांसी की सजा सुनाने के बाद से चारों दोषी तिल-तिल कर मरते रहे। ऐसे मामलों में ऐसे ही होना चाहिए, दोषी को हर दिन अपनी मौत नजर आनी चाहिए। ऐसे फैसले और जल्दी आने चाहिए, जिससे महिलाओं के खिलाफ अपराध करने की मानसिकता रखने वालों के मन में खौफ पैदा हो सके।
प्रीति खजूरिया, पार्षद चारों दोषियों को फांसी से उनको नहीं बल्कि देश की हल महिला को संतोष मिला है। निर्भया के साथ इंसाफ में काफी देरी हुई, मगर आखिर कार दोषी अपने अंजाम तक पहुंचे। बार बार फांसी की सजा का टाला जाना निर्भया के माता पिता के लिए काफी दर्दनाक और दुखद रहा होगा। मगर न्याय प्रक्रिया ने साबित कर दिया कि देर से ही सही मगर न्याय किया जाता है। कोई भी अपराधी अपराध करने के बाद बच नहीं सकता। महिलाओं से संबंधित अपराधों के मामलों को लंबा खींचने के बजाए इनका निपटारा फास्ट ट्रैक आधार पर छह माह से एक साल के बीच करने की जरूरत है। ऐसा होने से महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकेंगे।
कुसुम लता, शिक्षक, ऊधमपुर