हरी घास का लालच लील रहा जंगलों का हरा सोना
राजेश डोगरा रियासी रियासी इलाके में जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार जारी हैं। अभी तक
राजेश डोगरा रियासी
रियासी इलाके में जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार जारी हैं। अभी तक आग की घटनाओं में बड़े पैमाने पर वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। बरसात शुरू होने से ही आग की घटनाओं पर अंकुश लग सकता है। वीरवार को भी साई लांजन और सलाल कोटली के जंगल आग से सुलगते रहे विशेषकर सियाड़ बाबा और साई लांजन के जंगलों में पिछले लगभग 1 माह के दौरान ऐसा शायद कोई दिन रहा होगा जब आग की घटना न घटी हो। वहीं वन विभाग को भी चाहिए कि वह लोगों को इस बारे में जागरूक करे।
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रियासी डिविजन में लगभग 45,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र है जिनमें 50 प्रतिशत से भी अधिक वन क्षेत्र में चीड़ के पेड़ हैं जो कि काफी तेजी से आग पकड़ लेते हैं। रियासी डिवीजन में प्रति वर्ष लगभग 120 हेक्टर क्षेत्र आग की चपेट में आता है। जिसमें नई पौध ,दुर्लभ जड़ी बूटी और कई वन्य जीव राख हो जाते हैं। आग की घटनाओं के कारण इलाके के तापमान में भी काफी वृद्धि हो जाती है।
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आग की घटनाओं पर काबू पाने में वन विभाग के समक्ष सबसे बड़ी समस्या स्टाफ की कमी है। हर गार्ड के अधीन 1000 हेक्टेयर क्षेत्र आता है। इतने बड़े क्षेत्र में एक गार्ड द्वारा नजर रखना या फिर आग को बुझाना लगभग नामुमकिन है। हालांकि आग की घटना सामने आने पर फॉरेस्ट प्रोटेक्शन फोर्स, वन कर्मी तथा रिजर्व गार्ड सक्रिय हो जाते हैं लेकिन कई बार ऊंचे व दुर्गम स्थानों पर पहुंचने में ही समय की बर्बादी के साथ वन कर्मियों की हालत खराब हो जाती है। उस पर पारंपरिक तरीकों से आग पर काबू पाने तक आग लगाने वालों के मंसूबे कामयाब हो चुके होते हैं।
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वन क्षेत्र में जमीन पर जमा चीड़ के पत्तों को कुदरती तौर पर खत्म होने में लगभग चार-पांच वर्ष लग जाते हैं। नई तथा हरी घास के लालच में लोग चीड़ के पत्तों को जलाने के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं चीड़ के पत्तों की ऐसी ईट बनाने पर शोध हो रहा है जो कि जलावन के काम आएगी। अगर वह शोध कामयाब रहा तो लोग वन क्षेत्र की चरागाह में गिरे पत्तों को जलाने के बजाय आमदनी के स्त्रोत के लिए इकट्ठा करेंगे। जंगलों को आग से बचाने के लिए वह स्थायी समाधान सिद्ध हो सकता है।
अनिल कुमार अत्री, डीएफओ रियासी