केंद्रीय संविधान के संशोधन को विस्तार देने के खिलाफ याचिका
राज्य ब्यूरो श्रीनगर भारतीय संविधान के 77वें और 103वें संशोधन को राष्ट्रपति के आदेश के
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : भारतीय संविधान के 77वें और 103वें संशोधन को राष्ट्रपति के आदेश के जरिये जम्मू कश्मीर में विस्तार देने के खिलाफ उच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर की गई। एडवोकेट मुहम्मद अशरफ बट और एडवोकेट आदिल असीमी ने याचिका दायर की है।
अशरफ बट ने कहा कि हमने अपनी याचिका में राज्य में भारतीय संविधान के 77वें और 103वें संशोधन को विस्तार देने को चुनौती दी है। जम्मू कश्मीर में एक निर्वाचित सरकार और मंत्रिपरिषद की अनुपस्थिति में भारतीय संविधान लागू नहीं होता। हमने अदालत में बताया कि रियासत में गत दिसंबर से राष्ट्रपति शासन लागू है। राज्य में राष्ट्रपति के आदेश के जरिये भारतीय संविधान के प्रावधानों को लागू करने के लिए राज्य सरकार की सलाह और अनुमति नहीं ली गई है। राज्य सरकार को यह सलाह और अनुमति मंत्रिपरिषद की सिफारिश और सलाह पर ही देनी है।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दायर याचिका में कहा है कि जम्मू कश्मीर में केंद्रीय संविधान के 77वें और 103वें संशोधन को लागू करने की कोई ज्यादा जरूरत नहीं थी। जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश 2019 को भी जारी करने की जरूरत नहीं थी। इसके अलावा इन संशोधनों को लागू करने का समय विशेषकर जब राज्य में जंग जैसा माहौल बना हुआ था, पूरी प्रक्रिया को संदेहास्पद बनाता है। ऐसा लगता है कि संवैधानिक (जम्मू कश्मीर में लागू करने के लिए) आदेश, 2019 और जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश 2019 को सिर्फ रियासत को संवैधानिक नुकसान पहुंचाने के लिए ही लागू किया गया है।
उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि सर्वाेच्च न्यायालय में पहले ही धारा 35-ए और धारा 370 से संबंधित कई याचिकाएं लंबित पड़ी हैं। ऐसा लगता है कि जिस तरीके से राष्ट्रपति के आदेश के जरिये दो केंद्रीय संवैधानिक प्रावधानों को राज्य में विस्तार दिया गया है, उसी तरीके से धारा 35-ए को भी समाप्त करने के लिए आदेश जारी किया जा सकता है। इसकी पूरी संभावना है कि राज्य व केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम समेत किसी राज्य के अन्य कानून में भी संशोधन कर सकती है। वह स्थानीय नागरिकता प्रमाणपत्र के कानून को भी समाप्त कर सकती है। इसलिए संवैधानिक (जम्मू कश्मीर में लागू करने के लिए) आदेश, 2019 और जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश 2019 को राज्य की विशिष्ट संवैधानिक पहचान को बनाए रखने के लिए समाप्त किया जाना चाहिए।