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यहां से जाने का दिल नहीं करता, मजबूरी में छोड़ रहे हैं कश्मीर

रोजी रोटी का जुगाड़ के लिए कश्मीर जाने वाले अन्य राज्यों के श्रमिकों और लोगों का दिल नहीं चाहता कि वह घाटी छोड़कर जाएं। वह वर्षों से यहां काम के सिलसिले में आते रहे हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 03 Nov 2019 11:11 AM (IST)Updated: Sun, 03 Nov 2019 11:11 AM (IST)
यहां से जाने का दिल नहीं करता, मजबूरी में छोड़ रहे हैं कश्मीर
यहां से जाने का दिल नहीं करता, मजबूरी में छोड़ रहे हैं कश्मीर

श्रीनगर, रजिया नूर । रोजी रोटी का जुगाड़ के लिए कश्मीर जाने वाले अन्य राज्यों के श्रमिकों और लोगों का दिल नहीं चाहता कि वह घाटी छोड़कर जाएं। वह वर्षों से यहां काम के सिलसिले में आते रहे हैं। इतने वर्षों में अब तो कश्मीर की धरती अपनी जैसी लगने लगी है। इसे छोड़कर जाने का दिल नहीं करता, पर जब जान पर बन आती है तो कसक रह जाती है।

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वर्षों से रह रहे श्रमिकों को अपनी सी लगती है घाटी की फिजां

देश भर के लाखों लोग विभिन्न कामकाज के लिए कश्मीर में वर्षों से हैं। उनके लिए कश्मीर अन्नदाता की तरह है। कुछ तो अकेले और बड़ी संख्या में परिवार के साथ हैं। इनमें श्रमिकों की तादाद सबसे अधिक है। यह श्रमिक मजदूरी से लेकर राजमिस्त्री, फर्नीचर से लेकर सेब तोडऩे तक काम करते हैं। दूसरे राज्यों से बढ़ई का काम करने वालों के हाथ का हुनर अपनी अलग पहचान रखता है। ऐसा ही 32 वर्षीय युवा दिलशेर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का रहने वाला है। वह यहां लकड़ी का काम (बढ़ई) करता है। दिलशेर बताता है कि वह बेरोजगार था। घर पर डांट पड़ती थी। परिवार के लोगों की डांट से बचने के लिए अक्सर घर से भाग जाता था। एक बार ऐसे ही वह जुलाई 2009 में अपने दोस्त के साथ कश्मीर घूमने चला आया। यहां उसने देखा कि दूसरे राज्यों के हजारों लोग कश्मीर में काम कर रहे हैं और अच्छा कमा ले रहे हैं। इस पर उसके मन में भी यहां काम करने की इच्छा जागी। इसके बाद उत्तर प्रदेश के ही एक श्रमिक की मदद से बडग़ाम में लकड़ी का काम करने वाले कारीगर के पास काम सीखने की योजना बनाई। इसके बाद तो उसकी जिंदगी बदल गई।

दोस्त को अकेले ही भेज दिया घर

दिलशेर के अनुसार यहां के माहौल में काम करने उसे ऐसी ललक लगी कि उसने दोस्त को अकेले वापस घर भेज दिया। इसके बाद बडग़ाम में उस कारीगार के पास काम करना शुरू कर दिया। यह उसकी जिंदगी एक नया मोड़ था। उसने काम महारत हासिल की। इसके बाद उसे वेतन पर रख लिया गया। उसके अनुसार जब अपनी पहली तनख्वाह अपने घर भेजी थी तब घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं था।

अब स्थानीय युवाओं को दे रहा रोजगार

दिलशेर 11 वर्षों से घाटी में है। बडग़ाम जिले में ही वह पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता है। वह बताता है कि इलाके के लोग उसे उसके काम से जानते हैं। आज उसका अपना लकड़ी का बड़ा कारखाना है, जहां वह कई स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला है। स्थानीय लोग भी खुश हैं।

आतंकियों के डर को ठेंगा, नहीं जाएगा घर

जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन से हताश आतंकी भले ही दूसरे राज्यों के लोगों की हत्या कर रहे हों, लेकिन वह घाटी छोड़कर नहीं जाएगा। दिलशेर के अनुसार घाटी ने उसे पहचान दी है। यहां के लोगों ने तब उसका साथ दिया जब वह बेसहारा है। इनकी बदौलत वह बीते 11 वर्षों से यहां पर टिका हुआ है और यहीं रहेगा चाहे स्थिति कैसे भी हो। जो श्रमिक कश्मीर छोड़ रहे हैं, वर्तमान में उनकी जान पर बन आई है। विश्वास है कि आतंकियों के सफाये के साथ ही वह जल्द लौट आएंगे।


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