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Jammu Kashmir DDC results: ​​​​​अपना ही बुना जाल और उसमें उलझी महबूबा, कैसे इस चुनौती से निपट पाएगी

डीडीसी चुनाव में महबूबा सीटों के आधार पर पीएजीडी में दूसरे नंबर की पार्टी बन गई हैं पर धरातल की चुनाैतियों से अनजान नहीं हैं। चुनाव के बाद उपजे हालात में पार्टी के भीतर कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस की छाया से निकालने की छटपटाहट महसूस की जा सकती है।

By VikasEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 05:00 AM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 08:21 AM (IST)
Jammu Kashmir DDC results: ​​​​​अपना ही बुना जाल और उसमें उलझी महबूबा, कैसे इस चुनौती से निपट पाएगी
महबूबा पीडीपी को कश्मीर में खड़ा करने के लिए उतावली हैं और यही उतावलापन उनकी चुनौती बढ़ा रहा है।

जम्‍मू, अनिल गक्खड़: जम्मू कश्मीर में जिला विकास परिषद (DDC) चुनाव में पीपुल्स एलायंस के नेता भले ही 110 सीट जीतकर बढ़त बनाने के दावे करें पर गठबंधन के चेहरों पर दिख रहा खिंचाव कुछ और बयां कर रहा है। खासकर 2018 में सत्ता से दूर होने के बाद लगातार झटके झेल रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) और पार्टी अध्यक्ष Mehbooba Mufti को फिलहाल इन चुनाव से कोई नई राह निकलती नहीं दिख रही है। महबूबा पीडीपी को कश्मीर में खड़ा करने के लिए उतावली हैं और यही उतावलापन उनकी चुनौती बढ़ा रहा है।

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डीडीसी चुनाव में महबूबा सीटों के आधार पर पीएजीडी (People Alliance for Gupkar Declaration) में दूसरे नंबर की पार्टी (27 सीट) भले ही बन गई हैं पर धरातल की चुनाैतियों से अनजान नहीं हैं। चुनाव के बाद उपजे हालात में पार्टी के भीतर कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) की छाया से निकालने की छटपटाहट साफ महसूस की जा सकती है।

जम्मू कश्मीर में दो वर्ष पूर्व तक सत्ता में रही पार्टी डीडीसी चुनाव में कुल चार फीसद भी हासिल करने में विफल रही। उसे प्रदेश में कुल एक लाख 13 हजार वोट मिले। जबकि पीडीपी से निकली जेके अपनी पार्टी भले ही सीटों में (12) पिछड़ गई पर वोट शेयर में पीडीपी से आगे खड़ी है। अपनी पार्टी को एक लाख 53 हजार से अधिक वोट मिले और वह 5.3 फीसद वोट हासिल करने में सफल रही।

यहां बता दें कि 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी जम्मू कश्मीर में 87 में से 28 सीट जीतकर करीब 23 फीसद वोट हासिल करने में सफल रही थी। यहां वोट लगभग भाजपा के बराबर थे। साफ है कि महबूबा की 2018 में सत्ता से बाहर होने के बाद की राह काफी दुश्वारियों से भरी रही है। एक के बाद एक बड़े नेताओं के छोडऩे से लगे झटके और निकाय और पंचायत चुनाव से दूरी ने पार्टी के वोट बैंक को खिसका दिया।

वहीं, जम्मू कश्मीर की सियासत में नई उभरी अपनी पार्टी पहले ही चुनाव में जड़ें जमाती दिखी और पीएजीडी व खासकर महबूबा की पार्टी को वह बड़ा झटका देने में सफल रही। यही वजह है कि निर्दलीयों की मदद से वह कई जिलों में डीडीसी चेयरमैन की दौड़ में आगे निकलने को उत्सुक दिख रही हैं। शोपियां में कांग्रेस और निर्दलीयों को शामिल कराकर वह शुरुआत भी कर चुकी है।

वहीं, दक्षिण कश्मीर और मध्य कश्मीर के कुछ जिलों में ही अपनी उपस्थिति दिखा पाई पीडीपी केवल पुलवामा जिले में प्रधान पद के करीब दिख रही है।

तिरंगे और देश के संविधान पर विवादित बयान देकर पहले ही महबूबा जम्मू संभाग में अपना समर्थन लगभग खो चुकी हैं। वजह साफ है कि महबूबा की पार्टी पूरे जम्मू क्षेत्र में मात्र एक सीट जीत पाई।

राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि महबूबा के लिए यह चुनाव और इससे पहले का दौर एक के बाद एक बड़े झटके लेकर आया पर अभी से चुका हुआ मान लेना जल्दबाजी होगी। वह सबसे पहले नेकां की छाया से बाहर आना चाहेंगी। शायद इसके लिए वह प्रयास भी कर रही हैं और चुनाव बाद गुपकार एलायंस की पहली बैठक से महबूबा की दूरी संभवत: यही संदेश देने का प्रयास है। इसके बाद विधानसभा चुनाव न लडऩे की घोषणा कर वह अपने एजेंडे को फिर जिंदा करना चाहती हैं, ताकि कश्मीर में किनारे लग चुके अलगाववादियों और कट्टरवादियों का समर्थन फिर से उसे संजीवनी दे सके।

विश्लेषकों का तर्क है कि एक बार फिर वह आतंकियों के लिए आंसू बहाना और कट्टरवादी विचारधारा के निकट जाना चाहेंगी। पूर्व में भी यही मंत्र उन्हें सत्ता तक पहुंचाने की सीढ़ी रहा है। पर इस बार यह इतना सरल नहीं दिख रहा।

अनुच्छेद 370 के बाद कश्मीर भी तेजी से बदला है और आवाम विकास की राह पर आगे बढऩे को उत्सुक है। युवा और निर्दलीय चेहरों पर मतदाताओं का दांव यह साबित कर रहा है कि अब कश्मीरी आवाम पुराने चेहरों और पुराने नारों पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। कश्मीरियत और जम्हूरियत की अपनी पुरातन परंपरा को थाम कश्मीर विकास की सीढ़ीयां चढ़ने को उत्‍सुक दिख रहा है। कश्मीर का यह बदला रूप ही इन नेताओं के लिए बड़ी चुनौती है।

आंकड़ों से समझें पूरी कहानी

डीडीसी चुनाव में कश्‍मीर केंद्रित दल

       पार्टी              सीटें      वोट         फीसद             चुनौतियां

  • नेकां             67    4,70016     16.46  -- साथी दलों की  महत्‍वाकांक्षा से निपटना चुनौती
  • पीडीपी         27    1,13,078       3.96 -- गिरता वोट शेयर और बड़े नेताओं का किनारा
  • कांग्रेस          26    3,94,631      13.82 -- जम्‍मू के बड़े हिस्‍से से पार्टी का लगभग सफाया  
  • अपनी पार्टी   12     1,51,341        5.3  -- पहला चुनाव, अब आगे स्थिति को मजबूत करना होगा

भाजपा बनाम गुपकार एलायंस

भाजपा :: भाजपा सात लाख से अधिक वोट लेकर 75 सीटें जीतने में सफल रही। उसे करीब 24.82 फीसद वोट मिले। कश्‍मीर में खाता खोलने में सफल रही।

गुपकार :: गुपकार एलायंस 110 सीटें जीतने में सफल रहा पर उनके वोट लगभग साढ़े छह लाख ही रहे। उन्हें करीब साढ़े तेइस फीसद वोट मिले।

2014 विधानसभा चुनाव

पीडीपी को 28 सीट मिली और करीब 22.7 फीसद वोट भी मिले। भाजपा को 25 सीटें मिलीं और उसे 23 फीसद वोट मिले। नेशनल कांफ्रेंस 20.8 फीसद वोट लेकर 15 सीटें जीतने में सफल रही। साफ है कि नेशनल कांफ्रेंस को ज्‍यादा नुकसान नहीं है पर पीडीपी बड़े नुकसान में दिख रही है।


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