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1965 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाक को सिखाया था सबक

पाकिस्तान जिस सियालकोट सेक्टर से आतंकवाद को शह दे रहा है, उसी इलाके में भारतीय सेना ने ठीक 52 साल पहले इन दिनों दुश्मन को चुन-चुन कर मारा था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 06 Sep 2017 12:54 PM (IST)Updated: Wed, 06 Sep 2017 12:54 PM (IST)
1965 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाक को सिखाया था सबक

जम्मू, [राज्य ब्यूरो] ।  पाकिस्तान जिस सियालकोट सेक्टर से आतंकवाद को शह दे रहा है, उसी इलाके में भारतीय सेना ने ठीक 52 साल पहले इन दिनों दुश्मन को चुन-चुन कर मारा था। भारतीय सेना ने सियालकोट में ऑपरेशन रिडल, चारवा की लड़ाई में पाकिस्तान की सेना को करारी शिकस्त देकर उसके कब्जे से कई इलाके छीन लिए थे।

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युद्ध में जम्मू-कश्मीर के कई नागरिकों ने भी बतौर सैन्य अधिकारी हिस्सा लेकर राज्य का नाम रोशन किया था। सत्रह दिन की लड़ाई में पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया गया। वर्ष 1965 में सेना की तीन मद्रास रेजीमेंट को दुश्मन के कब्जे से महराजके गांव को छुड़ाने का जिम्मा मिला था। उत्तर प्रदेश में तिब्बत सीमा से जम्मू के अरनिया में दुश्मन का सामना करने के लिए दो सितंबर को पठानकोट पहुंची थी। लेफ्टिनेंट कर्नल बीके भट्टाचार्य के नेतृत्व में सात सितंबर को दुश्मन पर धावा बोला गया था। कैप्टन एमएस ओबराय, मेजर पी चौधरी, कैप्टन बीआर मल्होत्रा च मेजर एसकेएच रूबन दास के नेतृत्व में बटालियन की कंपनियों ने महराजके को आठ सितंबर को जीत लिया था।

दुश्मन के टैंक के हमले को विफल बनाया गया। इसके बाद जोइया व कोक्कर गांवों को 10 सितंबर व क्लाई गांव को 11 सितंबर को कब्जे में ले लिया। मेजर पी चौधरी समेत सात वीरों ने शहादत दी तो 38 घायल हो गए। कई पाकिस्तानी कैदियों को कब्जे में लेने के साथ भारी मात्रा में दुश्मन का साजोसामान बरामद हुआ। वहीं, जम्मू के अखनूर की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाली सेना की सोलह कोर की क्रॉस्ड स्वार्डस डिवीजन की आर्टिलरी यूनिट ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के सियालकोट में चारवा की लड़ाई में दुश्मन को क रारी शिकस्त दी थी।राज्य के सेवानिवृत सैनिकों को वे दिन याद हैं जब पाकिस्तानी सेना को कड़ा सबक सिखाया गया था।

इस युद्ध में 92 साल के सेवानिवृत मेजर जनरल गोवर्धन सिंह जम्वाल ने पंजाब के खेमकरन सेक्टर में 9 जैक राइफल्स की कमान संभाली थी। इसी इलाके में पाकिस्तान को करारी शिकस्त मिली थी।उनका कहना है कि यह युद्ध बहुत अहम है।

इससे भारतीय सेना को नया विश्वास मिला और 1971 की यादगार जीत के लिए स्टेज भी तैयार हुई। हमारी सेना ने पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया। युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए वीर चक्र से सम्मानित किए गए कर्नल वीरेन साही ने बतौर मेजर, छंब क्षेत्र में लड़ाई में हिस्सा लिया था। इस इलाके में भारतीय सेना ने अत्यंत बहादुरी का परिचय देते हुए पाकिस्तान के पुंछ जिले पर कब्जा करने की साजिश को नाकाम बना दिया था।

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