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रमजान युद्धविराम से सिर्फ महबूबा को मिली राहत

नवीन नवाज, श्रीनगर : रमजान माह के अंत में ईद-उल-फितर का त्योहार संपन्न होने के बाद रविव

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Jun 2018 06:55 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jun 2018 06:55 PM (IST)
रमजान युद्धविराम से सिर्फ 
महबूबा को मिली राहत
रमजान युद्धविराम से सिर्फ महबूबा को मिली राहत

नवीन नवाज, श्रीनगर : रमजान माह के अंत में ईद-उल-फितर का त्योहार संपन्न होने के बाद रविवार को गृहमंत्री राजनाथ ¨सह ने जम्मू कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ घोषित एकतरफा युद्धविराम को समाप्त करने का एलान कर दिया। इस फैसले से किसी को हैरानी नहीं हुई है, क्योंकि कश्मीर के सियासी मंच पर युद्धविराम से केंद्र को लाभ नहीं हुआ। सिर्फ महबूबा मुफ्ती को किसी हद तक सियासी राहत मिली है, जबकि गठबंधन में सहयोगी भाजपा के लिए यह गले की फांस था। हुíरयत कांफ्रेंस ने बीते 30 दिनों में कहीं भी अपनी शर्तो की तार पार कर बातचीत के लिए आगे आने को कोई संकेत नहीं दिया।

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रमजान युद्धविराम जो अब समाप्त हो चुका है, बिना किसी ग्राउंडवर्क के कश्मीर में सियासी बदलाव और शांति की उम्मीद में घोषित किया गया था। इसकी घोषणा से चंद दिन पहले जम्मू कश्मीर में सत्तासीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार की मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने वादी के हालात सामान्य बनाने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इसमें उन्होंने सभी से सहयोग की अपील करते हुए कहा था कि हम केंद्र से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा वर्ष 2000 में घोषित रमजान युद्धविराम की तरह एक बार कश्मीर में शांति के लिए इसका एलान के लिए कहेंगे। हालांकि, प्रदेश भाजपा ने इस पर एतराज जताया था। केंद्रीय रक्षा मंत्री और थलसेना प्रमुख ने भी इसका विरोध किया था। लेकिन केंद्र ने महबूबा की मानी।

स्थानीय राजनीतिक परिदृश्य में महबूबा मुफ्ती के लिए हालात बहुत ज्यादा विकट हो चुके थे। दक्षिण कश्मीर जो उनका सियासी गढ़ है, आतंकियों का मजबूत किला बन चुका है। वादी में अन्यत्र भी आतंकियों की गतिविधियां लगातार बढ़ने और रोज रोज की हड़ताल से मुख्यधारा की सियासी जमीन सिकुड़ने के लिए सभी उन्हें जिम्मेदार ठहरा रहे थे। कश्मीर मुद्दे पर बातचीत के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे और न हैं, दिनेश्वर शर्मा मिशन भी कहीं प्रभावकारी साबित नहीं हो रहा था। उनके पास सरकारी विकास योजनाओं के अलावा उपलब्धियों के नाम पर बताने के लिए कुछ भी नहीं था। ऐसे में रमजान युद्धविराम उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि है जिसकी सफलता-विफलता का उन्हें किसी हद तक लाभ मिलना तय है। अब वह अपने विरोधियों को जवाब देते हुए आम लोगों में कहेंगी कि देखो हमने तो हालात सामान्य बनाने के लिए, बातचीत की प्रक्रिया बहाल करने के लिए रमजान में जंगबंदी कराई। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस सत्ता में रहते हुए ऐसा नहीं कर पाई। अलगाववादियों को हमने बातचीत का न्योता दिया, लेकिन वह नहीं आए।

दूसरी तरफ हुíरयत कांफ्रेंस समेत अन्य अलगाववादी दलों के लिए भी इस रमजान सीजफायर में पाने या गंवाने के लिए कुछ नहीं था। कश्मीर की सियासत को समझने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि हुíरयत बातचीत के लिए तभी आगे बढ़ेगी, जब पाकिस्तान की तरफ से उसे हरी झंडी मिलेगी। कश्मीर की आजादी का नारा देने वाली हुíरयत विशुद्ध रूप से कश्मीर में पाकिस्तानी एजेंडे की आवाज है। रमजान सीजफायर में जो लोग हुíरयत के बातचीत के लिए राजी होने के ढोल पीट रहे थे, वह यह भूल गए कि हुíरयत ने कभी भी बातचीत से इन्कार नहीं किया और उसने हमेशा अफास्पा, भारतीय सेना की वापसी, कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानने और त्रिपक्षीय बातचीत का जिक्र करते हुए ही नई दिल्ली से वार्ता की प्रक्रिया में शामिल होने का एलान किया है। यही शर्तें वह रमजान युद्धविराम के दौरान भी रखती आयी है,मतलब कि वह बातचीत से पीछे हटती रही है। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि हुíरयत सशर्त वार्ता की वकालत करती रही।

इन सभी के बीच, भाजपा की प्रदेश इकाई जो आलाकमान और पीडीपी के आगे नतमस्तक नजर आ रही है, के लिए भी रमजान युद्धविराम गले की फांस बना हुआ था। भाजपा की सियासी जमीन पूरी तरह से जम्मू संभाग में हैं और स्थानीय भाजपा नेता इसके खिलाफ थे। उन्होंने मुख्यमंत्री के सुझाव का पहले ही दिन विरोध किया था। लेकिन गृहमंत्री के बयान केबाद उन्होंने मौन धारण कर लिया या फिर अनमने भाव से इसका समर्थन करते हुए इसके कथित लाभ गिना रहे थे। लगातार बढ़ते आतंकी हमलों पर उन्हें जवाब देना मुश्किल हो रहा था और अब वह जोर गला खंगारते हुए कहेंगे कि आतंकियों को मौका दिया था वह नहीं मानें, अब जोरदार कार्रवाई होगी।


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