जम्मू-कश्मीरः तीन साल में आठ पुलिसकर्मी बने आतंकी, सकते में सुरक्षा एजेंसियां
जम्मू कश्मीर में पिछले तीन साल में करीब आठ सुरक्षाकर्मी सरकारी हथियार लेकर आतंकी बने हैं।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विधायक एजाज अहमद मीर के अंगरक्षक आदिल बशीर के आतंकियों से जा मिलने से सभी सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गई हैं। इससे पहले पिछले तीन साल में वर्ष 2015 से लेकर 30 सितंबर, 2018 तक करीब आठ सुरक्षाकर्मी सरकारी हथियार लेकर आतंकी बने हैं।
आदिल गत सप्ताह आठ सरकारी राइफलें, एक पिस्तौल लेकर 12 लाख के ईनामी हिज्ब आतंकी जीनत-उल-इस्लाम उर्फ अबु अल कामा के गुट में शामिल हो गया है। इस पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुनीर अहमद खान ने कहा कि आदिल बशीर की मदद करने वाले शोपियां में सक्रिय आतंकियों के एक ओवरग्राउंड वर्कर को उन्होंने चिन्हित कर लिया है। जल्द पूरे मामले की गुत्थी सुलझा ली जाएगी। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक विशेष कार्य योजना को लागू किया जा रहा है। सभी एसपीओ और संरक्षित व्यक्तियों के सुरक्षा दस्तों में तैनात सुरक्षाकर्मियों की पृष्ठभूमि की जांच भी की जा रही है।
इसके अलावा संबंधित पुलिस उपाधीक्षकों और थाना प्रभारियों को भी निर्देश जारी किए गए हैं कि वे अपने-अपने कार्याधिकारी क्षेत्र में एसपीओ और किसी भी संरक्षित व्यक्ति के सुरक्षा दस्ते में शामिल सुरक्षाकर्मियों से लगातार मिलें। उनकी कार्यप्रणाली की निगरानी करें। उन्हें हालात के प्रति लगातार अवगत कराते हुए सुरक्षा व्यवस्था में किसी तरह की चूक से बचने की जानकारी भी दी जा रही है। इसके साथ ही संरक्षित व्यक्तियों की सुरक्षा गार्द में तैनात पुलिसकर्मियों व एसपीओ को यह भी कहा गया है कि वे अवकाश पर जाने से पूर्व संबंधित पुलिस स्टेशन और संबंधित यूनिट में अपने हथियार जमा कराकर उनकी रसीद लें।
पुलिसकर्मियों के आतंकी बनने के मामले तीन सालों में बढ़े
राज्य पुलिस में डीआईजी रैंक के एक अधिकारी ने बताया कि आतंकी संगठनों में बीते तीन साल में पुलिसकर्मियों के भर्ती होने के मामले तेज हुए हैं। इनकी शुरुआत मार्च 2015 में तत्कालीन आरएंडबी मंत्री सईद अल्ताफ बुखारी के घर तैनात पुलिसकर्मी नसीर पंडित के आतंकी बनने से हुई। इनमें सईद रकीब बशीर, शकूर अहमद, नवीद अहमद, इश्फाक अहमद डार, रईस अहमद मीर, जहूर अहमद डार, इरफान डार और तारिक अहमद बट के नाम उल्लेखनीय हैं। पहले वर्ष 2002 से 2010 के बीच यह सिलसिला लगभग थम चुका था। इस दौरान तीन से चार पुलिसकर्मी ही आतंकी बने थे। लेकिन वर्ष 2010 के बाद इन मामलों में तेजी आने लगी। अब तक करीब 19 पुलिसकर्मी आतंकी बन चुके हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा बीते तीन सालों में ही आतंकी बने हैं।
पुलिसकर्मियों पर आतंकियों की है नजर
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी के मुताबिक अब आतंकी पहले की तरह ट्रेनिंग लेने सरहद पार आसानी से नहीं जा सकते। नए लड़के आज इंटरनेट पर हथियार चलाना सीख लें लेकिन उन्हें प्रैक्टिकल टेनिंग देने के लिए कोई प्रशिक्षित आदमी चाहिए। इसके लिए पुलिसकर्मियों से बेहतर और कौन होगा। आतंकी संगठन कभी पोस्टर लगाकर तो कभी सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर पुलिसकर्मियों व एसपीओ को धमकाते हैं। उन्हें जिहाद के नाम पर उकसाते हैं। आदिल बशीर जैसे कुछ गुमराह हो भी जाते हैं। यह पुलिसकर्मी न सिर्फ हथियार लेकर आते हैं बल्कि आतंकी संगठन में पहले से मौजूद आतंकियों को ट्रेनिंग भी देते हैं। पुलिस की पृष्ठभूमि होने के कारण इन्हें पुलिस की कार्यप्रणाली और नेटवर्क का भी पता रहता है। इससे आतंकी संगठन को फायदा होता है। यही कारण है कि बीते तीन सालों में आतंकी बनने वाले अधिकांश पुलिसकर्मी हिज्बुल मुजाहिदीन में ही शामिल हुए हैं।
स्थानीय हालात का है असर
बीते तीन साल के दौरान जो भी पुलिसकर्मी या सैन्यकर्मी आतंकी बने हैं, उनमें से शायद ही कोई उत्तरी कश्मीर से होगा। वे श्रीनगर या फिर गांदरबल का रहने वाला है। बड़गाम का एकाध जरूर है। अन्य सभी दक्षिण कश्मीर में जिला शोपियां, पुलवामा और कुलगाम के ही रहने वाले हैं। अनंतनाग से भी एक एसपीओ आतंकी बना है। इन सभी इलाकों में वर्ष 2014 से आतंकी लगातार अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं। इस समय कश्मीर में सबसे ज्यादा आतंकी दक्षिण कश्मीर में ही सक्रिय हैं। इसलिए स्थानीय गतिविधियों का असर संबंधित पुलिसकर्मियों पर किसी न किसी तरीके से रहता है। क्योंकि पुलिसकर्मी भी समाज का हिस्सा रहते हैं। जिस तरह से बीते कुछ सालों से आतंकियों के जनाजे में लोगों की भीड़ जमा हो रही है, उससे भी कई पुलिसकर्मी या एसपीओ प्रभावित हो सकते हैं। कई एसपीओ और पुलिसकर्मियों को पथराव व अन्य गैर कानूनी गतिविधियों से भी संबंध रहा है।
पुलिस की निष्ठा पर सवाल उठाना गलत
आतंकरोधी अभियानों में उल्लेखनीय भूमिका निभा चुके राज्य पुलिस के पूर्व महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि जम्मू कश्मीर पुलिस देश के बड़े पुलिस संगठनों में एक है। करीब सवा लाख जवान और अधिकारी हैं। आतंकियों को मार गिराने और राज्य में कानून व्यवस्था बहाल रखने में राज्य पुलिस की भूमिका ही सबसे अहम रही है। इस साल भी 40 पुलिसकर्मी आतंकियों को मार गिराने के अभियान में शहीद हुए हैं। इतने बड़े संगठन में कभी कभार कोई पुलिसकर्मी अगर भगौड़ा हो जाए या आतंकी बन जाए तो उस घटना को ज्यादा तूल देने की जरुरत नहीं है। हमें उन कारणों का निदान करना चाहिए जिनके कारण इस तरह की घटनाएं होती हैं। काली भेड़ें आपको हर जगह मिलेंगी। हमें इनकी निशानदेही कर कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा कई बार पुलिसकर्मी किसी राष्टृ विरोधी तत्व के दुष्प्रचार से गुमराह हो सकते हैं। जरूरी है कि जवानों की लगातार ब्रीफिंग करते हुए उन्हें सही गलत की पहचान कराते हुए उनके मनोबल को बनाए रखा जाए।