शोपियां में आशंकित रहा पुलिस तंत्र
उमर का गोलियों से छलनी शव मिलने के बाद पूरा शोपियां हिल गया था। पुलिस और सेना के अधिकारी व जवान पूरे जिले में फैल गए थे।
श्रीनगर, [राज्य ब्यूरो]। दक्षिण कश्मीर के शोपियां में लगभग एक सप्ताह बाद मंगलवार को पूरा पुलिस तंत्र हिला हुआ था। जवान ही नहीं अधिकारी भी गंभीरता के साथ इस बात पर मंथन रहे थे कि अपने मंसूबों में नाकाम होने से हताश आतंकी किसी जगह मासूमों की जान न ले लें। पुलिस अधिकारियों की आशंका अकारण नहीं थी, क्योंकि मंगलवार को पुलिस भर्ती थी और एक सप्ताह पहले शोपियां से कुछ ही दूरी पर स्थित हरमेन में आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर में युवाओं के लिए प्रेरणा बने लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को अगवा कर मौत के घाट उतारा था।
उमर का गोलियों से छलनी शव मिलने के बाद पूरा शोपियां हिल गया था। पुलिस और सेना के अधिकारी व जवान पूरे जिले में फैल गए थे। युवक-युवतियों की पुलिस में भर्ती होने की ललक को देखते हुए ही राज्य सरकार ने पुलिस कांस्टेबल के 103 पदों के लिए आवेदन मांगे थे। आतंकियों के फरमान के बावजूद 1638 लड़के -लड़कियों ने आवेदन किया और आज भर्ती की पहली प्रक्रिया फिजिकल टेस्ट में भाग लेने एक हजार आवेदक पहुंचे।
एसपी शोपियां अंबरकर श्रीराम दिनकर ने कहा कि हालात को देखते हुए हमने स्टेडियम के बजाय पुलिस लाइन में भर्ती रैली आयोजित की। हम नहीं चाहते थे कि पुलिस कांस्टेबल बनने के लिए घर से निकले लड़के-लड़कियों को किसी तरह की दिक्कत हो या उनके लिए जान का संकट पैदा हो, लेकिन यहां भर्ती होने आए लोगों का जोश देखने लायक है।
डीआइजी सेंट्रल कश्मीर रेंज गुलाम हसन बट ने कहा कि शोपियां में जमा हुए इन लोगों की तादाद आम कश्मीरियों के दिल की बात बताती है। इस भीड़ को देखकर कौन कहेगा कि इसी जिले में जिला पुलिस लाइन से कुछ किलोमीटर की दूरी पर आतंकियों ने स्थानीय युवकों को पुलिस व सुरक्षाबलों से दूर रखने के लिए एक युवा अफसर की निर्मम हत्या की थी। यह भीड़ आतंकियों की हार है।
भर्ती होने आए मासूम अहमद ने कहा कि मैं लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को मैंने नहीं देखा, लेकिन उसे जिस तरह और जिस मकसद के लिए कत्ल किया गया, वह अत्यंत घिनौना काम है, ऐसा करने वाले न इस्लाम के पैरोकार हो सकते हैं और न कश्मीरियों के हमदर्द।
ऐसे लोगों ने ही कश्मीर को तबाह किया है और इनसे निजात पाने के लिए ही कश्मीरियों का पुलिस और फौज में भर्ती होना बहुत जरूरी है। हां, एक बात यह भी याद रखें कि पुलिस व फौज की नौकरी रोजगार के साथ हमें कौम की खिदमत करने का मौका भी देती है। इसलिए आतंकियों का फरमान सुनने या मानने की जरूरत नहीं है।
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