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J&K : अब मिली है जिहादी नारों से आजादी, बस बरकरार रहे

अब न मस्जिदों में जिहादी तराने बजते हैं। खुदा की इबादत होती है। सामाजिक बुराइयों पर चर्चा होती है पर कोई जिहादी पाठ पढ़ाता नजर नहीं आता। सबसे बड़ी बात यह वहां दुकानें बंद रखने का न

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sun, 25 Aug 2019 10:27 AM (IST)Updated: Sun, 25 Aug 2019 10:27 AM (IST)
J&K : अब मिली है जिहादी नारों से आजादी, बस बरकरार रहे
J&K : अब मिली है जिहादी नारों से आजादी, बस बरकरार रहे

श्रीनगर, नवीन नवाज । वादी में सुबह और शाम को चलने वाली ठंडी हवाएं, गर्म हवाओं के दौर बीतने का एलान कर रही हैं। हवा के साथ-साथ माहौल भी बदल रहा है। अब न मस्जिदों में जिहादी तराने बजते हैं। खुदा की इबादत होती है। सामाजिक बुराइयों पर चर्चा होती है पर कोई जिहादी पाठ पढ़ाता नजर नहीं आता। सबसे बड़ी बात यह वहां दुकानें बंद रखने का नहीं, पथराव न करने का एलान हो रहा है। मस्जिद के लाउड स्पीकर का इस्तेमाल भड़काऊ एजेंडे के लिए करने के इक्का-दुक्का प्रयास हुए भी लेकिन वहां मौजूद अन्य नमाजियों ने ऐसे तत्वों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। सभी हैरान हैं कि अचानक यह बदलाव कैसे आ गया। कश्मीर के धुरंधर विशेषज्ञ भी समझ नहीं पा रहे हैं।

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अलगाववादी खेमे ने अपनी सियासत को आगे बढ़ाने के लिए सदा मस्जिदों का सहारा लिया। उनके कई प्रमुख नेता मजहबी संगठनों से जुड़े होने के कारण अकसर मस्जिदों से मजहब के नाम पर आम लोगों में राष्ट्रविरोधी भावनाओं भड़काने का प्रयास करते थे। आतंकी भी धर्मस्थलों में भाषण के माध्यम से लोगों को जिहाद के प्रति उकसाते रहे। कट्टरपंथी गिलानी हों या उदारवादी मीरवाईज मौलवी उमर फारुक या फिर यासीन मलिक, सभी अपनी मस्जिदों से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्रयास करते रहे। कश्मीर केंद्रित सियासत करने वाली नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं को हजरतबल दरगाह ने हमेशा मजहबी मंच उपलब्ध कराया। पीडीपी ने भी मजहब का सहारा लेकर अपने एजेंडे को आगे ले जाने का प्रयास किया। जमात ए इस्लामी के साथ उसके रिश्ते जगजाहिर हैं।

मस्जिदों के दुरुपयोग की थी आशंका  

केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के फैसले के बाद आशंका थी अलगाववादी मजहबी स्थलों से माहौल बिगाड़ने की साजिश रच सकते हैं। अतीत के अनुभव इस आशंका को मजबूत बना रहे थे। 1990 में कश्मीर में आतंकी हिंसा के शुरुआती दौर में राष्ट्रविरोधी तत्वों ने यूं ही अपना एजेंडा चलाया। वर्ष 2008, वर्ष 2009, वर्ष 2010 और वर्ष 2016 में वादी में हुए हिंसक प्रदर्शनों में भी मस्जिदों का दुरुपयोग सामने आया था। वहां दिनरात जिहादी तराने बजते थे। मस्जिदों में होने वाले एलान के आधार पर ही लोग राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों के लिए जमा हो जाते थे। कई मौलवी व इमाम इस मामले में सीधे आरोपों से घिरे और गिरफ्तार हो गए और कई को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। तमाम आशंकाओं के विपरीत अब किसी भी मस्जिद में जिहादी तराने नहीं सुनाई दे रहे हैं। 5 अगस्त के बाद सौरा व कुछ अन्य इलाकों में दो से तीन मस्जिदों में कुछ लोगों ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया लेकिन स्थानीय लोगों ने इन्हें बंद करा दिया।

मस्जिदों से अब सिर्फ इबादत की बातें

आइजी कश्मीर रेंज रह चुके पूर्व पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमने आतंकवाद की शुरुआत भी देखी और 2016 के हिंसक प्रदर्शन भी लेकिन अबकी बार मस्जिदों के लाउड स्पीकर जहर फैलाने का काम नहीं कर रहे हैं। शहर के अलावा दक्षिण कश्मीर में मस्जिदों के लाउड स्पीकर पर लोगों से कहा जा रहा है कि वह शांति बनाए रखें, सुबह-शाम अगर कोई रोजमर्रा के सामान की दुकान खोलता है तो उसे तंग न करें। बटमालू स्थित मस्जिद के बाहर खड़े मोहम्मद युसुफ ने कहा कि अब यहां सिर्फ मजहब की बातें और इबादत होती है। पहले भी लोग मस्जिद में सियासत और हिंसा की बातें पसंद नहीं करते थे। आजादी और जिहाद का नारा देने वालों ने लोगों को डराकर रखा हुआ था, पर अब वही डरे हुए हैं। आतंक की क्यारी कहलाने वाले त्रल में मस्जिद के बाहर खड़े मोहउददीन वानी ने कहा कि एक दिन यहां कुछ लोगों ने जिहादी तराने बजाने का प्रयास किया था, लेकिन वहां मौजूद लोगों ने ऐसा होने नहीं दिया। अब दिल्ली ने हमें जिहादी जच्बात से आजादी दिलाई है। यह आजादी बरकरार रहनी चाहिए।

राष्ट्रविरोधी तत्वों पर है नजर

खुफिया एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसी सभी मजहबी नेताओं की सूची तैयार की गई है जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करते हैं। इन सभी की निगरानी की जा रही है। कुछ को हिरासत में लिया गया है। इसके अलावा मजहबी संगठनों, प्रमुख मौलवियों व उलेमाओं से प्रशासनिक स्तर पर लगातार संवाद की प्रक्रिया अपनाई गई है। इन लोगों का कहना था कि वह शरारती तत्वों के दबदबे के चलते उन्हें नहीं रोक पाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब मौलवी और मजहबी नेता शरारती तत्वों को मस्जिदों से दूर रखने के लिए स्थानीय मोहल्ला कमेटियों की भी मदद ले रहे हैं।


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