Lockdown 4.0: कश्मीरी पंडित की अर्थी को मुस्लिम पड़ोसियों ने दिया कंधा
Lockdown 4.0 गांव के लोगों ने ही कश्मीरी पंडित की अंतिम शवयात्रा का बंदोबस्त किया। सभी ने शारीरिक दूरी के सिद्धांत का ध्यान रखा।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। Lockdown 4.0: कोविड-19 का लॉकडाउन बेशक लोगों को एक-दूसरे के खुशी-गम में शरीक होने से रोक रहा है, लेकिन कश्मीरियत इससे अछूती है। आतंकियों की नर्सरी कहलाने वाले त्राल में एक बुजर्ग कश्मीरी पंडित का निधन हो गया, लेकिन स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने किसी भी तरह से शोक संतप्त परिवार को अकेला होने का आभास तक नहीं होने दिया। दिवंगत की अर्थी को कंधा देने से लेकर उसके अंतिम दाह संस्कार की व्यवस्था में उसके मुस्लिम पड़ोसी ही आगे आए।
सहकारिता विभाग में ऑडिटर जगन्नाथ कौल ने 1990 के दशक में धर्मांध जिहादी तत्वों की तमाम धमकियों के बावजूद बुच्छु त्राल स्थित अपने पैतृक घर को नहीं छोड़ा। वह अपने परिजनों के साथ वहीं पर रहे। कुछ समय पहले उनकी पत्नी का निधन हो गया था। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। तीनों बेटियों की शादी हो चुकी है। उसका बेटा मोती कौल भी अपने बीबी बच्चों के साथ बुच्छु में ही रह रहा है।
जीवन के करीब 95 वसंत देख चुके जगन्नाथ कौल को बुच्छु और उसके आसपास के इलाके में रहने वाले लगभग सभी लोग अच्छी तरह जानते थे। बीते कुछ दिनोंं से उनकी तबीयत खराब थी। शुक्रवार को उनकी मौत हो गई। गांव में यह अकेला कश्मीरी पंडित परिवार है। मोती कौल के लिए अपने दिवंगत पिता का दाह संस्कार करना भी मुश्किल हो रहा था। रिश्तेदार कोविड-19 लॉकडाउन के कारण आने में असमर्थ थे। जगन्नाथ की मौत की खबर सुनकर पड़ोसी ही नहीं, आसपास के गांवों में भी जो उन्हें जानता था, उनके घर पहुंचा।
बच्चों की तरह प्यार करते थे सभी को
स्थानीय निवासी अब्दुल गनी राथर ने फोन पर बताया कि जगन्नाथ कौल साहब हमारे बुजुर्ग थे। वह हम सभी को अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे। उन्हें कश्मीर से बहुत लगाव था। उनकी मौत से यहां सभी दुखी हैं। दिवंगत के परिजनों के दुख की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं कि वह अकेले ही यहां हैं, इसलिए यहां गांव में हम लोगों ने ही उनकी अंतिम शवयात्रा का बंदोबस्त किया। सभी ने शारीरिक दूरी के सिद्धांत का ध्यान रखा। दिवंगत के लिए चिता तैयार की और अर्थी को कंधा दिया। खुदा उसकी रूह को सुकून दे।
मुस्लिम पड़ोसियों ने पूरी मदद की : मोती कौल
मौती कौल ने कहा कि हमारे पड़ोसी हमारे साथ हमेशा खड़े रहे हैं। यहां पाक रमजान का महीना चल रहा है। रोजा होने के बावजूद हमारे मुस्लिम पड़ोसियों ने पूरी मदद की। नियाज अहमद ने बताया कि हमने कोई अहसान नहीं किया। हम यहां सभी एक हैं। एक-दूसरे के साथ मोहब्बत और भाईचारे के साथ रहना, एक-दूसरे के खुशी-गम में शरीक होना हमारी कश्मीरियत की रिवायत है, हमने इसे ही आगे बढ़ाया है।