आतंकवादियों के जनाजे में नहीं जमा हो पाएगी भीड़
राज्य ब्यूरो श्रीनगर घाटी में आतंकियों के जनाजे में भीड़ जमा नहीं हो पाएगी। जनाजे में जेह
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : घाटी में आतंकियों के जनाजे में भीड़ जमा नहीं हो पाएगी। जनाजे में जेहादी भाषण भी नहीं होंगे और आतंकी जनाजे की तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल नहीं हो पाएंगे। यह सब यकीनी बनाने की एक योजना केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है। यह योजना आतंकियों के जनाजे को नए जेहादियों की भर्ती का जरिया बनने से रोकने के मकसद से प्रस्तावित है।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में उधमपुर हमले के मास्टरमाइंड अबु कासिम के जनाजे में बरसों बाद कश्मीर में किसी आतंकी के जनाजे में हजारों की तादाद में लोग देखे गए थे। इसके बाद यह सिलसिला चल निकला और आतंकियों का जनाजा नए आतंकियों की भर्ती का जरिया भी बन गया। प्रशासन ने इस प्रवृत्ति पर काबू पाने के लिए विदेशी आतंकियों का शव स्थानीय लोगों के हवाले के करने बजाय खुद ही उसे किसी गुमनाम जगह पर दफनाने की प्रक्रिया शुरु कर दी। लेकिन स्थानीय आतंकियों के शव उनके परिजनों के हवाले किए जाते है और उनके जनाजों में भीड़ भीखूब उमड़ती है। कई आतंकी आकर हवा में गोलियां दाग अपने मृत साथियों को सलामी देते हैं, कई उलेमा और मौलवी व आतंकियों के ओवरग्राउंड वर्कर जेहादी भाषण देते हैं, जिससे जनाजे में मौजूद कई किशोर आतंकी संगठनों में भर्ती होने के लिए निकल पड़ते हैं। इसके अलावा राष्ट्रविरोधी और विघटनकारी तत्व आतंकियों के जनाजे की भीड़ को कश्मीर में भारत के खिलाफ रेफरेंडम के तौर पर दिखाने की कोशिश करते हैं। वह आतंकियों को कश्मीर का हीरो बताने का कुत्सित प्रयास भी करते हैं।
आतंकरोधी अभियानों से जुड़े राज्य पुलिस में एसएसपी रैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हमने दक्षिण कश्मीर में एक सर्वे कराया था। उसमें पता चला कि आतंकियों के जनाजे और उनका महिमामंडन, नए जेहादियों की पौध के लिए खाद का काम करता है। कई लड़के आतंकियों के जनाजे में भीड़ देखकर, जेहादी भाषण सुनकर ही आतंकी बनने के लिए प्रेरित हुए हैं। मारे गए आतंकियों का जनाजा भी आतंकियों की भर्ती का जरिया है। अधिकारी ने बताया कि इसलिए आतंकियों के जनाजे पर भीड़ रोकने का एक प्रस्ताव कुछ समय पहले कथित तौर पर तैयार हुआ था। उनके मुताबिक, मुठभेड़ में मारे जाने वाले किसी भी आतंकी का शव उसके परिजनों को सौंपने के बजाय सुरक्षाबल ही उसे स्थानीय ओकॉफ कमेटी की मदद से दफन करें। इसमें कई तरह की मुश्किलें थी, इसलिए यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा था।
इस बीच, एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया कि गत वीरवार को यहां एसकेआईसीसी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई राज्य एकीकृत मुख्यालय की बैठक में भी यह मुददा चर्चा में आया है। इस दौरान कथित तौर पर तय किया गया कि स्थानीय आतंकियों के जनाजे में भीड़ को पूरी तरह सीमित किया जाए। इस सिलसिले में एक प्रस्ताव भी केंद्रीय गृहमंत्री को सौंपा गया है। उस पर अभी गृहमंत्रालय अपने स्तर पर चर्चा करेगा और उसके बाद ही इस पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्रस्तावित योजना के मुताबिक, किसी भी मुठभेड़ में स्थानीय आतंकी की मौत होने पर यथासंभव उसकी पहचान को तब तक पूरी तरह गुप्त रखा जाएगा, जब तक उसके पैतृक इलाके में किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षाबल तैनात नहीं कर दिए जाते। इसके बाद ही उसके परिजनों को सूचित करते हुए उन्हें शव सौंपा जाएगा, लेकिन जनाजे को जुलूस में बदलने की इजाजत नहीं दी जाएगी। आतंकी को जिस कब्रिस्तान में दफनाया जाना होगा, वहां अन्य लोगों की आवाजाही रोक दी जाएगी और सिर्फ मारे गए आतंकी के परिजन व चंद रिश्तेदार ही जनाजा लेकर आएंगे। मौके पर एक मजिस्ट्रेट और मजहबी नेता व ओकॉफ कमेटी के सदस्य भी रहेंगे। मजहबी रस्मों के साथ आतंकी को दफनाया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकाíडंग भी की जाएगी। उन्होंने बताया कि हमारा अनुभव रहा है कि जहां आतंकियों के जनाजे में भीड़ कम थी या जेहादी भाषण नहीं हुए, वहां से कोई नया आतंकी तैयार नहीं हुआ है। अभी यह योजना केंद्रीय गृहमंत्रालय के पास ही है। उसकी हरी झंडी मिलने के बाद इसको कार्यान्वित करने की रणनीति को तैयार किया जाएगा।