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कश्मीरी पंडितों ने मां राघेन्या के आगे झुकाए शीश, मेले में लौटी रौनक

आतंकियों के कारण कश्मीर से पलायन कर चुके हजारों लोगों ने की क्षीर भवानी मेले में शिरकत

By Monika MinalEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 03:07 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 03:08 PM (IST)
कश्मीरी पंडितों ने मां राघेन्या के आगे झुकाए शीश, मेले में लौटी रौनक
कश्मीरी पंडितों ने मां राघेन्या के आगे झुकाए शीश, मेले में लौटी रौनक

गांदरबल (नवीन नवाज)। तेरे अपने हैं, हम तो पराये नहीं। इस तरह से सितम हम पे ढाए गए मुद्दतें हो गई मुस्कुराए नहीं। मेरे पुरखों की जागीरदारी है ये मत समझिएगा हम लोग मेहमान हैं, शुबन जी लाल ने कहा। इसके साथ ही उसने कहा कि ये पंक्तियां मेरी नहीं हैं, लेकिन भाव मेरे हैं। मुझ पर जो गुजरी है, वह इन चंद लाइनों में सिमट जाती है। बीते कल को भुलाने और अच्छे दिनों की उम्मीद में, फिर से अपने पुरखों की जमीन में रचने-बसने के लिए हर साल सिर्फ मैं ही नहीं मेरे जैसे सैकड़ों लोग तुलमुला (गांदरबल, जम्मू कश्मीर) में मां राघेन्या के आगे शीश झुकाने के लिए आते हैं। यह मंदिर और ज्येष्ठ अष्टमी का मेला ही अब हमारी सनातन, धाíमक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।

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पहुंचे विदेश पलायन कर गए श्रद्धालु

दिल्ली से आए शुबन जी लाल और उन जैसे हजारों श्रद्धालु जिनमें अधिकांश आतंकियों के कारण कश्मीर से पलायन कर देश- विदेश में जा बसे हैं, बुधवार को यहां वार्षिक क्षीर भवानी मेले में जमा हुए। मां क्षीर भवानी को देवी राघेन्या भी कहा जाता है। जलकुंड में स्थित सफेद संगमरमर से बने मां भवानी के मंदिर के समक्ष पूजा की थाली लिए, जलकुंड में दूध और क्षीर का प्रसाद चढ़ा रहे कश्मीरी पंडितों के चेहरों पर फिर अपनी जड़ों और जमीन से जुड़ने की उम्मीद और रोमांच साफ नजर आ रहा था। पूजा करने के बाद मंदिर परिसर के विभिन्न हिस्सों में चक्कर लगाते श्रद्धालु वहां भीड़ में अपने परिचितों और पुराने जानने वालों को तलाशते नजर आए। कई लोगों की उम्मीद पूरी हुई तो कई अपनों को न पाकर निराश भी हुए।

सदियों से हर साल शुक्ल पक्ष की ज्येष्ठ अष्टमी को यहां मां क्षीर भवानी का वार्षिक पूजन होता आ रहा है। मां क्षीर भवानी को कश्मीरी पंडितों की आराध्य देवी माना जाता है और उनका वार्षिक मेला कश्मीरी पंडितों का प्रमुख धार्मिक समागम होता है।

खत्‍म हो रहा था मां क्षीर भवानी मेला

आतंकवाद के शुरू होने के साथ ही 1990 में कश्मीरी पंडितों के वादी से पलायन के साथ ही मां क्षीर भवानी मेला भी समाप्त होता नजर आया। लेकिन हालात बदलने के साथ मेले की रौनक भी साल-दर साल बढ़ने लगी और यह मेला सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान न रहकर कश्मीरी पंडितों के लिए अपनी जड़ों से जुड़ने और पुराने दोस्तों से मिलने का एक जरिया भी बन गया है। कश्मीरी हिंदू वेलफेयर सोसाइटी के प्रेस सचिव चुन्नी लाल ने कहा कि मैंने कश्मीर से पलायन नहीं किया। मैं हर साल यहां आता हूं ताकि मेरे जो दोस्त कश्मीर से चले गए हैं, वे आएंगे और उनसे मुलाकात भी होगी।

सुरक्षा का रहा पुख्ता प्रबंध

मां क्षीर भवानी के मेले को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध कर रखे थे। जिला मुख्यालय गांदरबल से तुलमुला की तरफ जाने वाली सड़क पर पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों की नाका पाíटयां तैनात थीं। मां क्षीर भवानी परिसर के भीतर और बाहर भी पुलिस व सीआरपीएफ के जवानों ने सुरक्षा का जिम्मा संभाल रखा था।

केंद्रीय वार्ताकार भी पहुंचे तुलमुला

केंद्रीय वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीए मीर भी तुलमुला में मां क्षीर भवानी के दर्शनों के लिए अलग-अलग पहुंचे। केंद्रीय वार्ताकार ने कश्मीर में अमन बहाली की प्रार्थना करने के बाद वहां मौजूद श्रद्धालुओं से भी बातचीत की और श्रीनगर लौट गए। कांग्रेस नेता जीए मीर ने मंदिर में माथा टेका और कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों के साथ बातचीत कर उन्हें उपलब्ध कराई गई सुविधाओं का जायजा लिया।


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