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जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों की बंद की सियासत से आम कश्‍मीरी को मिली आजादी

separatist. कश्मीर को पाकिस्‍तान बनाने का नारा देने वाले अलगाववादी अब गुम हो चुके हैं। भड़काऊ बयान तो दूर हड़ताल और बंद के कैलेंडर भी नहीं जारी हो रहे।

By Sachin MishraEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 06:16 PM (IST)Updated: Tue, 24 Sep 2019 06:16 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों की बंद की सियासत से आम कश्‍मीरी को मिली आजादी
जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों की बंद की सियासत से आम कश्‍मीरी को मिली आजादी

श्रीनगर, नवीन नवाज। कश्मीर में पिछले दो माह में काफी कुछ तेजी से बदला है। कश्मीर को पाकिस्‍तान बनाने का नारा देने वाले अलगाववादी अब गुम हो चुके हैं। भड़काऊ बयान तो दूर हड़ताल और बंद के कैलेंडर भी नहीं जारी हो रहे। इससे आम कश्मीरी खुश है, चूंकि उनकी नजर में अब बंद की सियासत से आजादी का दौर शुरू हो चुका है। पाक परस्‍त सियासी दलों की गीदड़ भभकियां भी अब नहीं सुनाई पड़ती। अगले माह 31 अक्टूबर को यह जम्‍मू-कश्‍मीर और लद्दाख अलग राज्‍यों के तौर पर अस्तित्‍व में आ जाएंगे। पाबंदियां लगभग हट चुकी हैं।

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पांच अगस्‍त से पूर्व हुर्रियत और उससे जुड़े अलगाववादी संगठन अकसर हड़ताली कैलेंडर जारी कर लोगों को बंद और हड़ताल के लिए उकसाते रहते थे, लेकिन केंद्र के राज्‍य के पुनर्गठन के फैसले के बाद हुर्रियत के कट्टरपंथी गुट के चेयरमैन सईद अली शाह गिलानी, उदारवादी गुट के मीरवाईज मौलवी उमर फारूक समेत सभी अलगाववादी नेता चुप्‍पी का आवरण ओढ़े हैं। अनुच्छेद 370 पर टुकड़े-टुकड़े करने की धमकी देने वाले सियासी दलों के समक्ष भी अब वजूद बचाने की चुनौती है।

51 दिनों में एक बयान

बीते 51 दिनों में अलगाववादी खेमे की तरफ से एक ही बयान आया है और वह भी राज्य की संवैधानिक स्थिति में बदलाव से संबधित नहीं था और न हड़ताल के एलान पर था। यह बयान मीरवाईज मौलवी उमर की तरफ से एक स्पष्टीकरण था। साफ है कि इन नेताओं के पास अब बोलने को कुछ नहीं बचा है। श्रीनगर के रीगल चौक के पास पुरानी बेकरी के मालिक ने कहा कि आजादी के नाम पर ढोल पीटने वाले अब चुप हैं। यह बहुत अच्छा है। आधी खुली बेकरी में सामान रहे ले रहे बैंकर नजीर अहमद ने कहा कि हुर्रियत नेता नजरबंद हैं या जेल में हैं। उसकी बात सुनते ही बेकरी मालिक ने कहा कि अगर यही वजह होती तो हुर्रियत की दूसरी-तीसरी पंक्ति के नेता और कार्यकर्ता गली मोहल्लों में बंद कराने के लिए बैठकें करते नजर आते, वह भी नहीं दिख रहे हैं। साफ है कि मौका देखकर उन्होंने अपनी दुकान बंद कर ली है।

अपने बचाव के रास्‍ते तलाश रहे

सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि वर्ष 2008, 2010 और वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों के दौरान हुर्रियत के नित नए हड़ताली कैलेंडर आते थे। खुद को कश्मीरियों का नुमाइंदा कहने वाले किसी भी तरह की बयानबाजी से भी बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह आज अपने बचाव के लिए राह तलाश रहे हैं। वजह जो भी हो, पर सब एक बात कह रहे हैं कि कश्मीरियों का अब हड़ताली कैलेंडर और बंद की सियासत से आजादी का रास्ता साफ हो चुका है।

अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कश्मीर के एक युवा पत्रकार ने कहा कि मीरवाईज ने तो रिहाई का बांड भरा है। बिलाल गनी लोन भी बाहर हैं। अगर इन लोगों को अपने नारे पर यकीन होता तो केंद्र के फैसले का विरोध करते। उधार का नारा था, जो खत्म हो गया, इसलिए अब चुप हैं। अलगाववाद को प्रोत्साहित करने वाले और ऑटोनामी, सेल्फ रूल जैसे नारे उछालने वाले सियासी दल भी अब पूरी तरह शांत हैं। आप कश्मीर में बंद बाजार का जिक्र करेंगे,लेकिन सभी को यह पता है कि यह सिर्फ बंदूक के डर से है।

बंदूक का डर भी जल्‍द समाप्‍त होगा

कश्मीर ट्रेडर्स फेडरेशन के अल्ताफ अहमद वानी ने कहा कि नेकां,पीडीपी या पीपुल्स कांफ्रेंस की खामोशी को समझ आती है। उन्होंने बदलाव को कबूल कर लिया होगा। गिलानी और अन्‍य हुर्रियत नेता नजरबंदी का नाटक करते हुए बचना चाहते हैं। मीरवाईज मौलवी उमर फारूक जामिया मस्जिद से मजहब की आड़ में अपनी सियासी दुकान चलाते थे, अपनी रिहाई पर स्पष्टीकरण देने के लिए निकल आए,लेेकिन अपने मुद्दे भूल गए। काश, इन लोगों ने यह चुप्पी पहले रखी होती तो कश्मीर के हालात सर्वथा जुदा होते। खैर, जिस तरह से हड़ताल की सियासत बंद हुई है, बंदूक के डर से होने वाला बंद भी जल्द बंद हो जाएगा।

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