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भाजपा-पीडीपी गठजोड़ में शुरू से रहे मतभेद

नवीन नवाज, श्रीनगर : पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठजोड़ पर शुरू से

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 10:32 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 10:32 AM (IST)
भाजपा-पीडीपी गठजोड़ में शुरू से रहे मतभेद
भाजपा-पीडीपी गठजोड़ में शुरू से रहे मतभेद

नवीन नवाज, श्रीनगर :

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पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के गठजोड़ पर शुरू से ही दोनों दलों के नीतिगत मामलों पर वैचारिक मतभेद हावी रहे। कई बार गठबंधन सरकार टूटने के कगार पर पहुंची और बच गई। इन विषयों पर रहे मतभेद :

1. राज्य ध्वज :

जम्मू कश्मीर का अपना ध्वज है। पीडीपी चाहती थी कि सभी संवैधानिक संस्थानों और संवैधानिक पदों पर आसीन लोग राज्य ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज की तरह ही सम्मान दें। इस संदर्भ में मार्च 2015 में एक आदेश भी जारी हो गया, लेकिन भाजपा के विरोध के चलते इस आदेश को वापस लिया गया। 2. बीफ बैन और गौ रक्षक :

राज्य में गौवंश की हत्या के खिलाफ कानून के अनुपालन पर दोनों दलों के सियासी हित टकराए और रियासत में एक तरह से साप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा हो गई। राज्य विधानसभा के भीतर भी सदस्यों में आपस में मारपीट की नौबत पहुंच गई थी, लेकिन किसी तरह यह मामला शात हुआ। 3. मुफ्ती के जनाजे से मोदी का दूर रहना :

पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन पर तमाम अटकलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री का शामिल न होना भी पीडीपी को अखरा और दिवंगत नेता के निधन पर लोगों की भीड़ न जुटने से भी पीडीपी ने भाजपा के प्रति परोक्ष रूप से अपने तेवर कड़े रखे। 4. कश्मीर केंद्रित प्रशासन :

पीडीपी ने सरकार चलाते हुए विभिन्न प्रशासनिक मामलों में भाजपा के हितों की अनदेखी करते हुए सिर्फ कश्मीर और एक वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के लिए कदम उठाए। कश्मीरी नौकरशाहों और पीडीपी के चहेते अधिकारियों को लगातार प्राथमिकता देते हुए उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया। वरिष्ठ नौकरशाहों के तबादलों में भाजपा की पूरी तरह अनदेखी हुई। राज्य के पूर्व मुख्यसचिव बीआर शर्मा को सिर्फ इसलिए हटाया गया क्योंकि वह जम्मू प्रात से थे। इसके अलावा पुलिस के आला पदों पर भी कैबिनेट की मंजूरी के बजाय पीडीपी अपनी मर्जी से फैसले ले रही थीं। रियासत के लगभग हर हिस्से में कश्मीर भाषा के अध्यापक नियुक्त किए गए। राज्य लोकसेवा आयोग के तहत नियुक्तियों में भी सिर्फ कश्मीर घाटी के उम्मीदवारों को ही तरजीह दी जाती रही है। इस पर कई बार आवाज उठी, लेकिन कश्मीर की आहत भावनाओं पर मरहम और कश्मीरियों को मुख्यधारा के साथ जोड़ने के नाम पर इस प्रक्रिया को जारी रखा गया। 5. धारा 370 और 35ए :

धारा 35ए और 370 पर भी पीडीपी और भाजपा में तल्ख मतभेद रहे हैं। भाजपा इन दोनों धाराओं को हटाने का नारा देती है, जबकि पीडीपी के लिए स्थानीय सियासत में बने रहने के लिए यह दोनों बहुत ही जरूरी हैं। बीते साल पीडीपी और भाजपा में 35ए को लेकर स्थिति उस समय और तनावपूर्ण हो गई, जब भाजपा से संबंधित एक संगठन ने इसे भंग करने के लिए अदालत में याचिका दायर की। काग्रेस और नेशनल काफ्रेंस ने इसे मुद्दा बना लिया और पीडीपी भी इस धारा के समर्थ में काग्रेस व नेका के साथ खड़ी रही। फिलहाल,यह मामला अदालत में विचाराधीन है। 6. गुज्जर-बक्करवाल समुदाय : गुज्जर-बक्करवाल समुदाय जम्मू संभाग में एक बड़ा वोट बैंक है। बीते कुछ सालों में इन्हें सुनियोजित तरीके से जम्मू संभाग के आसपास इलाकों में बसाया जा रहा है। आम लोग इससे नाराज हैं, क्योंकि उनका मानना है कि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय गैरमुमकिन खड्ड, नदी-नालों और जंगलों की जमीन के साथ गावों मे कब्जे कर रहा है। इसके खिलाफ कई बार आवाज उठी और अतिक्रमण को हटाने के लिए कई बार अभियान चलाया, लेकिन जनवरी माह में महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता में हुई जनजातीय मामले विभाग की बैठक में पुलिस को साफ शब्दों में हिदायत दी गई कि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय अगर किसी जमीन पर बैठा है तो उसे नहीं हटाया जाए। अगर हटाने की जरूरत है तो पहले जनजातीय मामले विभाग की अनुमति ली जाए। इससे साफ हो गया कि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को जमीनों पर कब्जे की छूट का फरमान है। इससे भाजपा का परंपरागत वोट बैंक नाराज हुआ। काग्रेस ने इसे जम्मू संभाग में मुद्दा बनाया। भाजपा कहती रही कि बैठक के मिनट्स में छेड़खानी हुई है, लेकिन आला कमान के आग्रह पर प्रदेशभाजपा ने कुछ समय बाद चुप्पी साध ली। 7. रोहिंग्या शरणार्थी :

रोहिंग्या शरणार्थियों को राज्य की शाति और कानून व्यवस्था के लिए खतरा बताए जाने के बावजूद पीडीपी ने इन लोगों को राज्य से बाहर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। जम्मू संभाग में लोग इस मुद्दे पर आदोलनरत रहे, लेकिन कश्मीर में अलगाववादियों और नेका व अन्य दलों द्वारा शुरू की गई सियासत और मुस्लिम कार्ड खेले जाने पर पीडीपी ने रोहिंग्या के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। 8. पत्थरबाजों की रिहाई :

पत्थरबाजों के मुद्दे पर भी दोनों दल एकमत नहीं थे। पीडीपी जहा इन लोगों के प्रति नर्म रवैया अपनाए जाने की वकालत करती है, वहीं भाजपा इन्हें देशद्रोही मानती है। पूर्व वाणिज्य मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा ने पत्थरबाजों को देशद्रोही करार देते हुए गोली मारने की बात की थी। इस पर पीडीपी ने कड़ा एतराज जताया और कहा कि यह कश्मीरी नौजवानों के प्रति नफरत और पूर्वाग्रह दर्शाता है। इसके अलावा बीते साल जब पीडीपी ने पत्थरबाजी में लिप्त युवाओं के खिलाफ मामले वापस लेने का एलान किया तो प्रदेश भाजपा असहमत थी। लेकिन गठबंधन को बनाए रखने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय ने महबूबा के आग्रह का अनुमोदन किया। 9. पनबिजली परियोजनाओं की वापसी :

पीडीपी चाहती थी कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द राज्य में एनएचपीसी द्वारा संचालित दो पनबिजली परियोजनाओं को राज्य सरकार के हवाले करे। इसके साथ ही वह अन्य परियाजनाओं में राज्य के लिए बिजली की रायल्टी को 12 से बढ़ाकर कम से कम 20 प्रतिशत तक कराना चाहती थी। इस पर मामला आगे नहीं बढ़ रहा था। 10. मंत्रीमंडल विस्तार :

अप्रैल माह के अंत में महबूबा मुफ्ती द्वारा किए गए मंत्रीमंडल फेरबदल ने भी दोनों दलों के बीच तल्खिया बढ़ाई हालाकि भाजपा ने पीडीपी के दबाव के आगे झ़ुकते हुए गठबंधन को बनाए रखने के लिए अपने दो मंत्रियों चंद्रप्रकाश गंगा और चौधरी लाल सिंह से इसतीफा ले लिया था, लेकिन राजीव जसरोटिया को मंत्री बनवाया। इससे पीडीपी के अंदर जबरदस्त गुस्सा था, क्योंकि राजीव जसरोटिया भी कठुआ काड में कथित आरोपितों के पक्ष में हुई रैलियों में शामिल रहे थे। जसरोटिया को मंत्री बनाने के बाद पीडीपी को कश्मीर में नेका व अन्य दलों के सवालों का जवाब देते नहीं बन रहा था। 11. अलगाववादियों से बातचीत : पीडीपी चाहती थी कि पाकिस्तान और अलगाववादी खेमे से जल्द से जल्द बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो, ताकि वर्ष 2016 के हिंसक प्रदर्शनों से उसे जो नुकसान हुआ है, उसकी किसी तरह से भरपाई हो। लेकिन केंद्र सरकार और प्रदेश भाजपा इसके खिलाफ थी। भाजपा ने बंदूक उठाने वालों से किसी तरह की बातचीत से इन्कार करते हुए कहा कि अलगाववादियों से बातचीत सिर्फ संविधान के दायरे में होगी। इसके अलावा पाकिस्तान से बातचीत भी तभी होगी जब वह आतंकवाद को शह देना बंद करने के अलावा एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जंगबंदी का यकीनी बनाएगा। 12. कठुआ काड : कठुआ मामले ने भी दोनों दलों के बीच दूरिया बढ़ाई। हालाकि भाजपा कहीं भी दोषियों को बचाती नजर नहीं आ रही थी, वह सिर्फ स्थानीय लोगों की माग के अनुरूप पूरे मामले की सीबीआइ जाच के समर्थन में थी। सरकार के निर्देश पर ही भाजपा के दो मंत्री कठुआ में आयोजित एक रैली में शामिल हुए थे। लेकिन जब मामला पूरी तरह साप्रदायिक रंग पकड़ गया तो महबूबा भी भाजपा के खिलाफ खड़ी हो गई। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था कि दुष्कर्मियों के समर्थन में रैली से हैरान और चिंतित हूं। रैली में राष्ट्रध्वज का इस्तेमाल हो रहा है, जो उसकी मर्यादा पर किसी हमले से कम नहीं है। मामले की सीबीआइ जाच को महबूबा ने दो टूक शब्दों में खारिज कर दिया और भाजपा भी बाद में शात हो गई। लेकिन इस मामले में भाजपा को जम्मू में भारी नुकसान हुआ और लाल सिंह की रैलियों से नाराज पीडीपी को उम्मीद थी कि आला कमान उन्हें रोकेगी, लेकिन अमित शाह ने लाल सिंह की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा कि सीबीआइ जाच की माग करना कोई बुरी बात नहीं है। 13. रमजान सीजफायर :

रमजान संघर्ष विराम जिसका फैसला केंद्र सरकार ने प्रदेश भाजपा की नाराजगी के बावजूद महबूबा के कहने प लिया था, पूरी तरह नाकाम रहा। महबूबा रमजान संघर्षविराम के दौरान कश्मीर में विभिन्न वगरें के साथ संवाद बनाने, जनता तक पहुंच बनाने में पूरी तरह नाकाम रहीं और उल्टा आतंकी हिंसा में बढ़ोतरी हुई। विभिन्न हल्कों में हो रहे विरोध और आलोचना को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इसे ईद के संपन्न होते ही समाप्त कर दिया। इससे पीडीपी निराश थी, वह चाहती थी कि इसे कुछ और समय के लिए विस्तार दिया जाए।


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