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Jammu Kashmir : अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के आगे झुके बिना भारत के साथ किया था विलय

पाकिस्तान के दबाव के आगे झुके बिना जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को सुनिश्चित बनाने वाले एकीकृत जम्मू-कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की जयंती पर अवकाश की मांग वर्ष 1961 में उनके निधन के बाद से ही हो रही है। कई बार जन आंदोलन भी हुए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 16 Sep 2022 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 16 Sep 2022 11:30 AM (IST)
Jammu Kashmir : अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के आगे झुके बिना भारत के साथ किया था विलय
महिला सशक्तीकरण के प्रति सजग महाराजा हरि सिंह ने राज्य में विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए कानून बनाया।

श्रीनगर, नवीन नवाज : 23 सितंबर को महाराजा हरि सिंह की 127वीं जयंती पर जम्मू कश्मीर में सरकारी अवकाश होगा। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की ओर से वीरवार को इसका एलान करने के साथ ही पूरे जम्मू कश्मीर में जश्न का माहौल बन गया।

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यह सम्मान महाराजा हरि सिंह की उस राष्ट्रवादी सोच का है जो उन्होंने भारत में जम्मू कश्मीर के विलय के साथ एक देश का सपना देखा था। पाकिस्तान के दबाव के आगे झुके बिना जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को सुनिश्चित बनाने वाले एकीकृत जम्मू कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह की जयंती पर अवकाश की मांग वर्ष 1961 में उनके निधन के बाद से ही हो रही है। कई बार इसके लिए जन आंदोलन भी हुए।

महाराजा हरि सिंह कुशल, प्रगतिशील, न्यायप्रिय शासक थे, जिन्होंने जम्मू कश्मीर को विकसित राज्य बनाने के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए। कई प्रशासनिक सुधार लागू किए, लेकिन जम्मू कश्मीर के भारत विलय के बाद एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनके योगदान को नकारा गया।

जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के खिलाफ अलगाववाद की पोषक ताकतों ने उन्हें हर स्तर नकारने का प्रयास किया। उन्हें कश्मीर में एक खलनायक की तरह पेश करने का प्रयास भी किया गया, लेकिन उनकी लोकप्रियता और योगदान को पूरे जम्मू कश्मीर में लोग स्वीकारते हैं। वह अपने समकालीन राजाओं में सबसे ज्यादा दूरदर्शी, प्रगतिशील व सुधारवादी माने जाते हैं और यह उनके समर्थक ही नहीं, विरोधी भी मानते हैं।

लोकतंत्र और पंचायती राज की नींव रखी : प्रोफेसर हरिओम सिंह का कहना है कि जम्मू कश्मीर में आजादी के बाद पंचायती राज व्यवस्था बेशक बीते तीन साल में पूरी तरह लागू हुई है, लेकिन सच तो यह है लोकतंत्र और पंचायती राज की नींव अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने ही रखी थी। उन्होंने वर्ष 1935 में पंचायत अधिनियम लागू किया था। इससे एक वर्ष पूर्व 1934 में उन्होंने प्रशासकीय मामलों में पारदर्शिता लाने व आम लोगों की विकास व नीतिगत मामलों में भागेदारी सुनिश्चित करने के लिए 75 सदस्यीय प्रजा सभा बनाई थी। इसमें 12 सरकारी अधिकारी, 16 स्टेट काउंसलर और 14 नामांकित प्रतिनिधियों के अलावा 33 जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होते थे। निर्वाचित प्रतिनिधियों में 21 मुस्लिम, 10 हिंद और दो सिख समुदाय से होते थे।

महिला सशक्तीकरण पर सराहनीय कार्य : महिला सशक्तीकरण के प्रति सजग महाराजा हरि सिंह ने राज्य में विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए कानून बनाया। बाल विवाह को प्रतिबंधित किया। लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित किया। कश्मीर में महिलाओं के अपहरण की घटनाओं पर रोकने और उन्हें वैश्यावृति में धकेलने वाले तत्वों की नकेल कसने के लिए उन्होंने 1929 में एक कानून बनाया था। इसके तहत महिलाओं के अपहरण में लिप्त तत्वों के लिए सात वर्ष की कारावास के साथ उन्हें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने का भी प्रविधान किया गया। उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन को इस राजी किया कि अगर कोई जम्मू कश्मीर में किसी महिला को अगवा कर हिंदुस्तान के किसी अन्य शहर में छिप जाता है तो अंग्रेज सरकार उसे पकड़कर जम्मू कश्मीर सरकार के हवाले करेगी।

प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य की, जबरी स्कूलों से निकले कई नेता : महाराजा हरि ङ्क्षसह ने शिक्षा को बढ़ावा देते हुए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य किया। उनके शासनकाल में कश्मीर में बच्चों को पकड़-पकड़ कर स्कूल ले जाया जाता रहा। वजीफा भी दिया गया। महाराजा के इस प्रयास को जबरी स्कूल भी कहा जाता है। कश्मीर के कई वरिष्ठ नेता और नौकरशाह इन जबरी स्कूलों से ही निकले हैं।

दलितों के लिए नए रास्ते खोले : महाराजा हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर में छुआ-छूत को समाप्त करने के लिए 1931 में एक कानून बनाया और दलितों के लिए सभी स्कूल, कालेज, कुएं व अन्य संस्थान भी खोल दिए। उन्होंने मंदिरों में दलितों के प्रवेश को भी यकीनी बनाया।

इन कामों को नहीं भूलेगा कोई

  • महाराजा ने एक कानून बनाकर कृषि भूमि को गैर कृषिकों को या उन लोगों को बेचने पर रोक लगाई थी जो जमींदार नहीं थे।
  • किसानों को साहूकारों से बचाने के लिए एग्रील्चरलिस्ट रिलीफ एक्ट बनाने के अलावा बेगारी पर भी रोक लगाई थी। काचराई अधिनियम भी लागू किया था।
  • जम्मू कश्मीर बैंक की स्थापना की थी।
  • जम्मू कश्मीर एंपोरियम भी स्थापित किया था।
  • श्रीनगर और जम्मू में दो बड़े अस्पताल एसएमजीएस व एसएमएचएस भी उनकी ही देन हैं।
  • राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के अलावा सड़कों का जाल बिछाने में भी रुचि ली।
  • खाद्य आपूर्ति विभाग, बाढ़ नियंत्रण विभाग भी बनाए।
  • जम्मू कश्मीर देश के उन गिने चुने राज्यों में एक है, जहां स्वतंत्रता से पूर्व बिजली घर थे और यह भी महाराजा के दौर में बने थे।

यह इतिहास न भूलें कभी : कई लोग दावा करते हैं कि महाराजा हरि ङ्क्षसह ने पाकिस्तानी हमले के कारण भारत में विलय का फैसला लिया था। सच तो यह है कि उन्होंने 1930 में लंदन में ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलन में महाराजा हरि ङ्क्षसह ने कहा था कि आल इंडिया फेडरेशन बनने पर उसमें शामिल होने वाली जम्मू कश्मीर पहली रियासत होगी। इसके साथ ही इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जार्ज पंचम के सामने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारतीयों को समान नागरिक अधिकारों पर जोर दिया था। यह सम्मेलन तत्कालीन भारत के भविष्य पर चर्चा के लिए बुलाया गया था। महाराजा हरि सिंह ने कहा कि एक भारतीय और अपनी मातृभूमि जहां हमने जन्म लिया और पले हैं, उसके प्रति वफादार होने के नाते हम अपने अन्य देशवासियों के साथ ही खड़े हैं और हम सभी एक समान सम्मान के अधिकारी हैं। इस गोलमेज सम्मेलन के बाद अंग्रेजों ने जम्मू कश्मीर की सियासत में दखलंदाजी बढ़ा दी और उसके बाद सुनियोजित तरीके से कश्मीर में महाराजा के खिलाफ जन भावनाओं को भड़काने के लिए इस्लाम का भी सहारा लिया जाने लगा। कुछ लोगों के मुताबिक, शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को महाराजा के खिलाफ अंग्रेजों का पूरा समर्थन प्राप्त था और इन्हीं साजिश के चलते 1931 में महाराज के खिलाफ विद्रोह कराया गया था। इसके बाद पैदा हुए हालात के चलते महाराजा को गिलगित बालटीस्तान का इलाका 50 साल की लीज पर 1935 में अंग्रेजों को देना पड़ा था।


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