कश्मीर में काला दिवस के होर्डिग पाकिस्तान को कर रहे हैं बेनकाब
जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के साथ मिलकर 22 अक्टूबर 1947 पहला बड़ा हमला किया था।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: इस्लाम के नाम पर कश्मीर को आजाद कराने आए पाकिस्तानी फौजियों और कबाइलियों की दरिदगी को याद करते हुए वीरवार यानी आज कश्मीर में काला दिवस मनाया जाएगा। श्रीनगर में ही नहीं, कश्मीर के विभिन्न शहरों व कस्बों में जगह-जगह लगे इसके होर्डिग्स बता रहे हैं, जिहादियों का डर और उनके नाम पर सियासत करने वालों की दुकानदारी पूरी तरह बंद हो चुकी है। बीते 73 सालों में पहली बार 1947 में पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों की कश्मीरियों के साथ की गई बर्बरता को आम कश्मीरी की जुबान से पूरी दुनिया सुनेगी।
ऑपरेशन गुलमर्ग की हकीकत और कश्मीर के भारत में विलय की कहानी पर 22 अक्टूबर 1947 की यादें विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी और एक प्रदर्शनी भी शेरे कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (एसकेआइसीसी) श्रीनगर में होगी। जम्मू कश्मीर यूनिटी फोरम (जेकेयूएफ) और गुलाम कश्मीर के विस्थापित एसओएस इंटरनेशनल शरदकालीन राजधानी जम्मू में अलग-अलग सेमिनार व रैलियां उस दिन के स्याह सच से दुनिया का रूबरू कराएंगे। श्रीनगर में आयोजित कार्यक्रम में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा मुख्य अतिथि होंगे। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल वीडियो कांफ्रेंस से इसमें हिस्सा लेंगे। संगोष्ठी में कई पूर्व सैन्याधिकारी, जम्मू कश्मीर के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी और शिक्षाविद, अंतरराष्ट्रीय स्तर ख्याति प्राप्त भारत-पाक विशेषज्ञ भाग लेंगे।
22 अक्टूबर 1947 का दिन आजाद भारत विशेषकर जम्मू कश्मीर के इतिहास का वह पन्ना है, जिसमें विश्वासघात, षड्यंत्र, धर्माध हिसा, सामूहिक बलात्कार और नरसंहार की दिल दहला देने वाली साजिशों और पाकिस्तानी फौजियों को ललकारते हुए खबरदार-होशियार-हम कश्मीरी हैं तैयार का नारा देकर भारतीय फौज के साथ कंधा मिलाकर आगे बढ़ने वाले आम कश्मीरी की जीवटता और बहादुरी की दास्तां लिखी हुई है। जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के साथ मिलकर 22 अक्टूबर 1947 पहला बड़ा हमला किया था। हालांकि, इससे पहले ही गुलाम कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में पाकिस्तानी फौज व कबाइलियों के छिटपुट हमले शुरू हो चुके थे। पहली बार खुलकर सामने आए कश्मीरी
पिछले साल भी कश्मीर में काला दिवस मनाया गया था, लेकिन इस साल पहली बार आम कश्मीरी इसमें खुलकर भाग ले रहा है। पहली बार पाकिस्तान के ऑपरेशन गुलमर्ग के स्याह सच को याद दिलाते हुए नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट आफ हिस्ट्री ऑफ आर्ट, कंजर्वशन एंड म्यूजियोलाजी (एनएमआइ) द्वारा राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी और प्रदर्शनी लगेगी। यह दिखाया जाएगा प्रदर्शनी में
श्रीनगर में आयोजित प्रदर्शनी में कबाइलियों द्वारा बारामुला में किए गए नरसंहार, आगजनी व लूटमार और भारतीय सेना के आगमन से जुड़ी दुर्लभ तस्वीरें। कबाइलियों के हमले में जिदा बचे लोगों की आपबीती, भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट के जवानों द्वारा पाकिस्तानी फौज को खदेड़े जाने की वीडियो, बारामुला के चर्च पर हमला आदि सबकुछ इसमें नजर आएगा।
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कश्मीर में अब बदलने लगी है सोच
-पाक को बेनकाब करना चाहिए: स्थानीय युवक मुख्तार अहमद होर्डिंग की ओर इशारा करते हुए कहता है कि वह नहीं जानते कि 73 साल पहले क्या हुआ। मुझे इतना ही पता है कि उस समय पाकिस्तानी हमले के बाद जम्मू कश्मीर के दो टुकड़े गए थे। उसने हमारे एक हिस्से को अपना गुलाम बना लिया। अब वह गिलगित बाल्टिस्तान को पूरी तरह पाकिस्तानी हिस्सा बनाने की साजिश रच रहा है। पाकिस्तान की बदनीयती को बेनकाब करना चाहिए। मैं इस सेमिनार में हिस्सा लेने जाऊंगा। होर्डिग्स ने अपना काम कर दिया: सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि 22 अक्टूबर 1947 का सच कश्मीर की युवा पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है। तभी उसे पाकिस्तान और उसके नापाक मंसूबों से बचाया जा सकेगा। सेमिनार में भले ही स्थानीय लोगों की भीड़ न हो, लेकिन गली, बाजारों में जो होर्डिंग लगे हैं, उन्होंने अपना काम कर दिया है। वह काला दिन ही समस्याओं की जड़: संस्कृति सचिव राघवेंद्र के अनुसार, 22 अक्टूबर 1947 को ही पाकिस्तान से पहली जंग की शुरुआत हुई थी। वह इस्लाम के नाम पर कश्मीर और कश्मीरियों को तबाह करने की साजिश में जुटा हुआ है। इसे बेनकाब करने लिए ऐसे कार्यक्रम जरूरी हैं। प्रदेश प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इतिहास के उस काले दिन से ही कश्मीर समस्या की शुरुआत हुई है।