न घर के अंदर और न ही घर के बाहर हैं महफूज
अरनिया में जिंदगी तो है पर रफ्तार नहीं पकड़ पा रही। हर समय भय के साये में जिंदगी जी रहे ग्रामीण । राहत शिविर या रिश्तेदारों के घर कट रही रातें।
अरनिया, [नीरज आजाद] । ऐसा विश्वास होता है कि घर में सुरक्षित हैं.. लेकिन अब तो आशियाना भी महफूज नहीं है। न घर के अंदर और न ही घर के बाहर सुरक्षित हैं। पता नहीं कब गोला किसी के घर को तहस-नहस कर दे। नापाक पड़ोसी के गोले किसी की जिंदगी लील कर परिवार को कभी न भूलने वाले जख्म दे जाए।
यह एक दिन की बात नहीं बल्कि इनके जीवन का नियमित किस्सा है। हर समय भय के साये में जिंदगी जी रहे हैं। अब स्थिति यह है कि रात को लोगों को नजदीक के राहत शिविर या रिश्तेदारों के घर जाना पड़ता है। यह दर्द है पाकिस्तान से सटे अरनिया सेक्टर के लोगों का। यहां जिंदगी तो है, लेकिन रफ्तार नहीं पकड़ पा रही। लोग सिर्फ जीने के लिए ही जी रहे हैं और केंद्र व राज्य सरकारों से टकटकी लगाकर राहत की आस में हैं।
सरकारों से उम्मीदें तो बहुत हैं लेकिन आज तक किसी ने उनका दर्द दूर करने के लिए कुछ ऐसा नहीं किया, जिससे बद से बदतर होती जिंदगी को नया आयाम हासिल हो पाया हो। यह दंश सीमा के पास बसे हर गांव का है। संघर्ष विराम के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच किए समझौते लोगों का मुंह चिढ़ा रहे हैं। पाकिस्तान हर बार संघर्ष विराम के समझौतों को ठेंगा दिखाकर जब मन चाहे गोलाबारी शुरू कर देता है। हर वर्ष इसी माह उन्हें घर-बार छोडऩा पड़ता है।अब तो आशियाना भी महफूज नहीं है..।
जम्मू के अरनिया में पाक रेंजर्स की ओर से दागे गए गोलों ने एक घर की छत ही उड़ा दी। बच्चे अपने घर की छत न होने पर आसमान पर टकटकी लगाए अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अरनिया में जिंदगी तो है पर रफ्तार नहीं पकड़ पा रही। हर समय भय के साये में जिंदगी जी रहे ग्रामीण । राहत शिविर या रिश्तेदारों के घर कट रही रातें।
घर भगवान भरोसे, बच्चों के भविष्य की चिंता
रात होते ही गोलीबारी शुरू हो रही है। लोग डर से रात होने से पहले ही सुरक्षित स्थानों को निकल रहे हैं। गोलीबारी प्रभावित क्षेत्रों के स्कूल भी बंद हो गए हैं, बच्चों को छुट्टी कर दी गई है। यह स्थिति कब तक बनी रहे इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए थे कि सीमा से सटे क्षेत्रों में बंकर बनाकर दिए जाएंगे, लेकिन आज तक बंकर बनाने की योजना पर अमल नहीं हुआ। लोगों को अपनी जान की चिंता के साथ बच्चों के भविष्य की चिंता भी सता रही है। इतने साधन संपन्न भी नहीं हैं कि बच्चों को दूर पढ़ा सकें।
अलसुबह लौटते हैं घर
घरों में बंधे पशु भी लोगों के लिए बड़ी चिंता हैं। पशुओं को न तो खुला छोड़ा जा सकता है और न ही अपने साथ ले जा सकते हैं। इन्हें भगवान भरोसे घर में बांध कर सुरक्षित स्थान पर रात काटने के बाद सुबह घर पहुंचना पड़ता है। यहां कई पशु पाक गोलीबारी में मारे जा चुके हैं तो कई घायल हुए हैं।
फसलें हैं पर फल की उम्मीद नहीं
फसलें बीजी जाती हैं..मेहनत भी जी तोड़कर करते हैं..लेकिन हासिल कुछ हो ऐसी उम्मीद भी नहीं की जा सकती। फसल के लिए जान को दाव पर लगाने की हिम्मत कोई कहां से लेकर आए। अब यहां पर धान की भरपूर फसल लहलहा रही है लेकिन कटाई कर पाएंगे, इसकी उम्मीद नहीं है।
राहत की आस
नापाक पाक से आग बरसाते गोलों से राहत की आस तो नहीं की जा सकती लेकिन अपनी सरकारों से राहत की आस अवश्य है। कुछ लोगों का दर्द है कि यदि कोई घायल हो जाए तो उसे तत्काल इलाज की सुविधा मिल जाती लेकिन इसके बाद के इलाज की सुविधा नहीं है। कमजोर आर्थिक स्थिति की हालत में उन्हें भारी खर्च कर इलाज करवाना पड़ता है।