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आजादी का नारा और पत्थरबाजी अब नहीं सुहाती

राज्य ब्यूरो/एजेंसियां श्रीनगर हड़ताल आ गया है यह कोड नाम था 26 साल के आसिफ जरगर का।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 02:45 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 02:45 AM (IST)
आजादी का नारा और पत्थरबाजी अब नहीं सुहाती
आजादी का नारा और पत्थरबाजी अब नहीं सुहाती

राज्य ब्यूरो/एजेंसियां, श्रीनगर : हड़ताल आ गया है, यह कोड नाम था 26 साल के आसिफ जरगर का। अलगाववादियों और पत्थरबाजों के गढ़ डाउन-टाउन में पत्थरबाजी में वह सबसे आगे रहता था। अलगाववादियों का एलान हुआ नहीं कि वह अपने गैंग के साथ हड़ताल कराने सड़क पर होता था। लोग उसे आसिफ हड़ताल के नाम से पुकारने लगे थे, लेकिन अब वह मुख्यधारा की सियासत में शामिल हो चुका है। आजादी का नारा और पत्थरबाजी अब उसे नहीं सुहाती। वह कहता है कि इसी नारे और पत्थरबाजी से आजादी चाहिए।

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आसिफ जरगर उर्फ हड़ताल के मुताबिक करीब 12 साल पहले जब कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी जोर पकड़ रही थी तो उस समय वह भी अपने कुछ दोस्तों संग पत्थरबाजी करने उतर आया। उसने कहा कि मैं कब पत्थरबाजों का रिग लीडर बना, मुझे पता ही नहीं चला। अब यह अतीत की बात हो चुकी है। मैं कश्मीर मसले का हल देखना चाहता हूं, लेकिन बंदूक या पत्थरबाजी से नहीं बल्कि सियासत से। वर्ष 2018 में मैंने निर्दलीय शहरी निकाय चुनाव भी लड़ा। मुझे जीत नहीं मिली, लेकिन एक रास्ता मिला है। दोस्त के मारे जाने के बाद उठाए थे पत्थर

पत्थरबाजी के सवाल पर जरगर बताते हैं कि उन्होंने पुलिस फायरिग में एक दोस्त के मारे जाने के बाद सुरक्षाबलों के खिलाफ पत्थर उठाए थे। मेरे पिता निसार अहमद जरगर आतंकी संगठन अल-उमर मुजाहिद्दीन के सदस्य थे। मैं उस समय अपनी मां की कोख में ही था, जब मेरे पिता की पुलिस से मुठभेड़ में मौत हो गई थी। मेरी मां की किसी ने मदद नहीं की। उसने बहुत मुश्किल से मुझे पाला। फिर एक दोस्त की मौत हो गई और मैं सुरक्षाबलों के खिलाफ पथराव करने लगा। वर्ष 2008 में पहली बार पकड़ा गया

जरगर ने बताया कि वर्ष 2007 में मैंने पत्थरबाजी शुरू की और 2008 में पकड़ा गया। इसके बाद वर्ष 2010 में जन सुरक्षा अधिनियम के तहत जेल में बंद रहा, लेकिन अब मुख्यधारा में आना चाहता हूं। वह एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव भी लड़ना चाहता है। मैं पत्थरबाजों के लिए सही उदाहरण साबित हो सकता हूं। मैं उनको बता सकता हूं कि उनके कदम कितने निरर्थक हैं। कैसे छोड़ा पत्थरबाजी का रास्ता

पत्थरबाजों को पैसे देने के सवाल पर जरगर का कहना है कि लोग क्या कहते हैं इसका उसे अंदाजा नहीं है, लेकिन उसे या उसके गुट में शामिल किसी को भी पत्थर फेंकने के लिए कभी पैसे नहीं दिए गए। जरगर ने बताया कि उसने श्रीनगर इस्लामिया कॉलेज ऑफ साइंस एंड कॉमर्स से बीकॉम की डिग्री हासिल की और अपने रिश्तेदार की मदद से कंस्ट्रक्शन का बिजनेस शुरू किया। इसी समय उसकी मुलाकात एक ऐसे पत्थरबाज से हुई जिसने पत्थरबाजी छोड़ कर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की यूथ विग ज्वाइन की थी, जो मुख्यधारा का राजनीतिक दल है। उसी युवक ने जरगर को किसी मुख्यधारा के राजनीतिक दल के यूथ विग में शामिल होने की सलाह दी। इसके बाद वह नेशनल कांफ्रेंस के नेता अली मोहम्मद सागर से मिला और नेकां में शामिल हो गया. पिछले साल नेकां छोड़ निर्दलीय निकाय चुनाव लड़ने का किया फैसला

जरगर ने बताया कि पिछले साल उसने नेकां छोड़ कर निर्दलीय ही निकाय चुनाव लड़ने का फैसला किया। चुनाव लड़ने के दौरान उसे लगा कि वह आजाद है। पत्थरबाजी छोड़ लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में लगे जरगर का कहना है कि सिर्फ राजनीतिक तरीकों से ही कश्मीर का मसला सुलझाया जा सकता है। पत्थरबाजी के जरिये कुछ भी हासिल नहीं हो सकता।


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