शोपियां मुठभेड़ की जांच के लिए डीएनए मिलान कराएगी पुलिस
पुलिस राजौरी से लापता श्रमिकों का पता लगाने के लिए उनके परिजनों के डीएनए के नमूने लेकर मारे गए आतंकियों के डीएनए से मिलान करेगी। इस बीच उपराज्यपाल के सलाहकार फारूक खान ने कहा कि कुछ लोग कश्मीर के हालात बिगाड़ने के लिए विवाद को तूल दे रहे हैं। पुलिस ने इस मामले की जाच शुरू कर दी है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : शोपिया मुठभेड़ पर विवाद का संज्ञान लेते हुए जम्मू कश्मीर पुलिस ने मामले की जाच शुरू कर दी है। पुलिस राजौरी से लापता श्रमिकों का पता लगाने के लिए उनके परिजनों के डीएनए के नमूने लेकर मारे गए आतंकियों के डीएनए से मिलान करेगी। इस बीच, उपराज्यपाल के सलाहकार फारूक खान ने कहा कि कुछ लोग कश्मीर के हालात बिगाड़ने के लिए विवाद को तूल दे रहे हैं। पुलिस ने इस मामले की जाच शुरू कर दी है। लोगों को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जाच के परिणाम का इंतजार करना चाहिए।
इस बीच, शोपियां के अमशीपोरा के निवासियों ने राजौरी के तीन श्रमिकों के गायब होने की पुष्टि तो की है, लेकिन किसी ने यह नहीं माना कि मारे गए आतंकी वही थे। उनके मुताबिक, आतंकियों के चेहरे पूरी तरह बिगड़े थे।
गौरतलब है कि शोपिया के अमशीपोरा में 18 जुलाई को सेना की 62 आरआर के जवानों ने तीन आतंकियों को मार गिराया था। इन आतंकियों के शवों के नमूने लेने के बाद बारामुला में दफनाया गया था। रविवार को राजौरी में कोट्रंका तहसील के तीन परिवारों ने इन आतंकियों की तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि मरने वाले आतंकी नहीं बल्कि उनके परिजन हैं और वे मजदूरी के लिए शोपिया गए थे। लापता श्रमिकों में 20 वर्षीय इम्तियाज अहमद, 18 वर्षीय इबरार अहमद के अलावा 25 वर्षीय मोहम्मद अबरार शामिल हैं।
पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि राजौरी के लापता तीनों के परिजनों के दावों का संज्ञान लेते हुए जांच की जा रही है। मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों की पहचान का हरसंभव प्रयास किया गया था, लेकिन पहचान नहीं हो पाई और नियमों केअनुरूप शव दफना दिए गए। शवों की तस्वीरें भी ली गई हैं और उनके डीएनए नमूने भी लिए गए हैं। श्रमिकों के परिजनों के दावों की जांच के लिए जल्द ही उनके डीएनए के नमूने लिए जाएंगे और इन्हें आतंकियों के डीएनए से मिलाया जाएगा।
इस बीच, बाग के मालिक मोहम्मद युसुफ ने बताया कि उसे सुबह छह बजे के करीब सेना के अधिकारियों ने सूचित किया कि बाग मे मुठभेड़ हुई है। मोहम्मद युसुफ ने कहा कि मैं उसी समय बाग में पहुंचा, कमरा जल रहा था। आतंकियों के शव बाग से कुछ दूर सड़क पर पड़े थे। मैं किसी को नहीं पहचान पाया। लाल दीन खटाना नामक एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि करीब सात बजे होंगे जब एक बड़ा धमाका हुआ था। उसके बाद जब हम यहा पहुंचे तो तीन शव सड़क पर थे। मरने वालों को यहा कोई नहीं पहचान रहा था क्योंकि उनके चेहरे बिगड़े हुए थे।
चौगाम के रहने वाले शकील अहमद के मकान में ही राजौरी के लापता श्रमिकों ने किराये पर कमरा लिया था। उसकी पत्नी फरीदा ने बताया कि वह 17 जुलाई को अचानक ही गायब हो गए और उसके बाद कहीं नहीं मिले।
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सेना से जानकारियां मांगी हैं : एसपी
एसएसपी शोपिया अमृतपाल सिंह ने कहा कि श्रमिकों के परिजनों में से किसी ने भी हमारे साथ संपर्क नहीं किया है। अलबत्ता, उन्होंने राजौरी में एक शिकायत दर्ज कराई है। हम मुठभेड़स्थल के आसपास रहने वाले लोगों से भी बातचीत करेंगे। हमारा मकसद है कि सच सामने आए। सेना से भी कुछ जानकारिया मागी जा रही हैं।