हर कश्मीरी का एक सवाल: आखिर बाजार खुलने से क्यों घबराते हैं अलगाववादी और आतंकी
कश्मीर में अलगाववादी अब छोटे दुकानदारों और कामगारों को परेशान करने में लगे हैं। इस वजह से इस बदले माहौल में भी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
श्रीनगर [नवीन नवाज]। बदले माहौल में घाटी में ज्यों-ज्यों आतंकियों और अलगाववादियों का समर्थन खिसकता जा रहा है वैसे-वैसे उनके उकसावे पर उनके समर्थक आम दुकानदारों और कामगारों को निशाना बना रहे हैं। इसकी वजह से यहां के आम आदमी को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हर कोई अलगाववादियों और आतंकियों को राज्य की हालत खराब करने के लिए कोस रहा है। हर कोई इन अलगाववादियों से पूछ रहा है कि बाजारों के गुलजार होने से इन्हें दिक्कत क्या है। ये लोग राज्य में शांति होने से इतना डरे हुए क्यों हैं।
काम की तलाश और आतंकियों का डर
इरशाद अहमद, अब अपने बेटे को दोपहर का खाना लेकर गैराज में आने को नहीं कहता। वह सुबह घर से खाना लेकर ही निकलता है क्योंकि उसे नहीं पता कि उसे दिनभर काम मिलेगा या नहीं। अगर मिलेगा भी तो कहां। वहीं कभी गैराज में कार मेकेनिक का काम करने वाला इरशाद, अब एक राज मिस्त्री का हेल्पर है जो रामबाग में काम की तलाश में सुबह ही खड़ा हो जाता है। लेकिन काम की कमी और अलगाववादियों और आतंकवादियों के डर की वजह से इरशाद जैसे हजारों लोगों के समक्ष रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
अलगाववादी और आतंकी हताश
अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद अलगाववादी और आतंकी हताश हैं। इतना ही नहीं अब ये लोग कश्मीर में हालात बिगाड़ने के लिए लोगों को दुकान खोलने नहीं दे रहे हैं। कई जगह दुकान खोल रहे दुकानदारों पर शरारती तत्वों ने हमला भी किया है। एक दुकान के भीतर जलता टायर फेंक दिया गया तो एक दुकानदार की हत्या कर दी गई। ऐसे में उन लोगों के लिए बड़ी समस्या हो गई है जो रोज कमाते और खाते हैं। इन्हें काम तलाश करने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। हालात यह है कि प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाला पकौड़े का ठेला लगा रहा है, पर्यटकों को झील की सैर कराने वाला फुटपाथ पर सब्जी बेच रहा है। इन सभी का एक ही सवाल है कि आखिर अलगाववादियों को बाजार खुलने से डर क्यों लग रहा है?
इन्हें है आतंकवादियों का डर
कार मेकेनिक इरशाद अहमद बताते हैं कि एक सप्ताह तक मालिक ने चोरी-छिपे गैराज खोला था, लोग भी आ रहे थे। एक दिन कुछ लड़कों ने उन पर हमला कर दिया और गैराज में खड़ी गाडि़यों में आग लगाने की धमकी दी थी। इसके बाद मालिक ने गैराज बंद कर दिया और गैराज में काम करने वाले सभी लोग बेकार हो गए। इरशाद के दो साथी अब प्लंबर का काम कर रहे हैं। इरशाद का कहना है कि जब उसने अपनी परेशानी एक राज मिस्त्री को बताई तो उसने उसे अपने साथ बतौर हेल्पर रख लिया। लेकिन रोज काम न मिलने से उनका संकट और परेशानी कम नहीं हुई है।
भीख मांगने से बेहतर तो यह ठेला है
खनयार इलाके में एक निजी अस्पताल के बाहर पकौड़ों का ठेला लगा रहा नजीर(बदला हुआ नाम) अपने परिचित को जब देखता है तो कहता है कि भीख मांगने से बेहतर तो यह ठेला है। बटमालू में उसकी अपनी प्रिंटिंग प्रेस बंद पड़ी है। उसने कहा कि नया काम नहीं मिल रहा है। ऐसे में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। ईद पर एक दोस्त से छह हजार रुपये उधार लिए थे। यहां अस्पताल के पास कोई छेड़ेगा नहीं, यही सोचकर पकौड़े बेच रहा हूं। दिन में दो-तीन सौ रुपये बच जाते हैं। उसने कहा कि मुझ जैसे बहुत से लोग रोजगार न मिलने से परेशानी में हैं। पास ही गली के मुहाने पर खड़े एक युवक की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा कि यह दो टैक्सियों का मालिक है लेकिन आज यहां चोरी-छिपे पेट्रोल बेच रहा है।
चोरी-छिपे बेच रहा पेट्रोल
नजीर के संकेत पर वह युवक पास आया। अपना नाम इलियास बताते हुए उसने कहा कि मैने टूरिस्ट सीजन को ध्यान में रख नई टैक्सी खरीदी थी। बैंक से कर्ज लिया और हर महीने 12 हजार रुपये किस्त भरनी है। यहां तो रोटी पूरी नहीं हो रही है। एक दिन टैक्सी लेकर बाहर निकला था, कि बदमाशों ने उसकी कार के शीशे तोड़ दिए गए। इस दौरान वो खुद भी घायल हो गया। इस घटना के बाद इलियास ने अपनी टैक्सियां बेचने तक का मन बनाया लेकिन उसका भी ग्राहक न मिलने से वह परेशान है। घर का खर्च चलाने के लिए वह रोजाना शाम को 15-20 लीटर पेट्रोल एक पंप से लाता है और फिर इसे अलग-अलग बोतलों में एक-एक लीटर कर बेचता है। उसके मुताबिक इसमें उसे एक बोतल पर 15-20 रुपये बच जाते हैं। लेकिन वो ये सोचकर भी परेशान है कि जिस दिन पुलिस पकड़ेगी, उस दिन क्या होगा।
सभी चाहते हैं दुकान खोलना
कश्मीर शॉप कीपर्स, ट्रेडर्स एंड मैन्युफेक्चर्स एसोसिएशन के संयोजक हिलाल अहमद ने कहा कि सभी दुकानें खोलना चाहते हैं, कारोबार पर लौटना चाहते हैं लेकिन अलगाववादियों और आतंकियों से डरते हैं। उनकी मानें तो सिर्फ श्रीनगर में ही होटल और रेस्तरां इंडस्ट्रीज से जुड़े करीब 40 हजार लोग बेकार हुए हैं। विभिन्न शोरूम में बतौर सेल्समैन काम करने वाले हजारों लोग अब बेकार बैठे हैं। डल झील के किनारे कई हाउसबोट मालिक और शिकारा वाले फुटपाथ पर सब्जी बेच रहे हैं। यहां रोजाना 250-300 करोड़ का घाटा हो रहा है। अगर यूं ही चलता रहा तो आम आदमी या असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के समक्ष रोटी का संकट हो जाएगा।