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पाकिस्तान में चुनाव जायज तो कश्मीर में हराम कैसे : इमरान

राज्य ब्यूरो श्रीनगर पीपुल्स कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और श्रीनगर नगर निगम के डिप्टी मेयर श्

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Jul 2019 06:14 AM (IST)Updated: Mon, 08 Jul 2019 06:42 AM (IST)
पाकिस्तान में चुनाव जायज तो कश्मीर में हराम कैसे : इमरान
पाकिस्तान में चुनाव जायज तो कश्मीर में हराम कैसे : इमरान

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: पीपुल्स कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और श्रीनगर नगर निगम के डिप्टी मेयर शेख इमरान ने इस्लाम में चुनावी सियासत को हराम बताने वालों को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम के नाम पर बने पाकिस्तान में चुनाव हो सकता है, पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर में भी चुनाव जायज हैं फिर हमारी रियासत में इस्लाम के पैरोकार और जिहाद का नारा देने वाले पाकिस्तान समर्थक चुनावों को किस आधार पर हराम बताते हैं।

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डिप्टी मेयर शेख इमरान ने कहा कि यहां जब भी चुनाव होते हैं, या चुनावी सियासत में जो लोग हिस्सा लेते हैं, तो कई तत्व उनके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। यह लोग कहते हैं कि इस्लाम में चुनाव हराम हैं। हमारा दीन इसकी इजाजत नहीं देता, लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि फलस्तीन में हमास और पीएलओ जैसे संगठन अपने लोगों के मसलों के हल के लिए चुनाव लड़ते हैं। पूरी दुनिया में पाकिस्तान एकमात्र ऐसा मुल्क है जो इस्लाम के नाम पर बना है। पाकिस्तान में भी चुनाव होते हैं। वहां भी लोग वोट डालते हैं और अपनी मर्जी की सरकार चुनते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी रियासत का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है। एलओसी के पार जो पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर है, वहां कोई चुनावी सियासत का विरोध नहीं करता, कोई नहीं कहता कि यह इस्लाम के खिलाफ है।

शेख इमरान ने कहा कि हम यहां सिर्फ अपने लोगों की मुश्किलात को दूर करने के लिए, कश्मीरी अवाम की बेहतरी और खुशहाली के लिए ही सियासत में आए हैं। हम चाहते हैं कि प्रशासनिक स्तर पर आम लोगों के जो मसले हैं, वह हल हों, इसलिए चुनाव जरूरी हैं। हम यहां बदलाव लाना चाहते हैं और इसलिए आम कश्मीरी अवाम से आग्रह करते हैं कि वह ज्यादा से ज्यादा तादाद में हमारे साथ जुड़कर कश्मीर में एक सुखद बदलाव का जरिया बनें।

चुनाव का विरोध करने वाले कश्मीरियों के हमदर्द नहीं

लोगों से चुनावी सियासत में शामिल होने और पीपुल्स कांफ्रेंस के साथ जुड़ने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी रियासत में 1989 तक किसी ने चुनावों का विरोध नहीं किया। जब यहां बंदूक की संस्कृति शुरू हुई तो कुछ लोग चुनावी सियासत के खिलाफ हो गए। चुनाव में हिस्सा लेना, वोट डालना इस्लाम में हराम बताने लगे। जो लोग इस्लाम में चुनाव और वोट को हराम बता रहे हैं, वह किसी भी तरह से इस्लाम के मानने वाले या कश्मीरियों के हमदर्द नहीं हो सकते।


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