कश्मीर: पिछले साल के मुकाबले 60 फीसद कम हुई हिंसा, पैलेट गन के इस्तेमाल में भी आई कमी
पिछले साल के मुकाबले कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों में 60 फीसद की कमी देखी गई है। पत्थरबाजों पर इस्तेमाल की जाने वाली पैलेट गन पर भी 10 फीसदी की कमी आई है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। पिछले साल के मुकाबले इस साल वादी में हिंसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत की कमी आई है। इसकी वजह से सुरक्षाबलों की तरफ से पैलेट गन का इस्तेमाल भी कम किया गया है। इस साल अब तक उपलब्ध पैलेट स्टॉक का 10 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। हालांकि इसकी वजह मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों और विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से पैलेट गन के मुद्दे पर मचाया जाने वाला सियासी शोर कदापि नहीं है। इसके बजाय पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी के पीछे कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षाबलों द्वारा अपनाए जाने वाले स्टैंडर्ड आपरेशनल प्रोसीजर (एसओपी) में बदलाव के अलावा हिंसक प्रदर्शनों में कमी जिम्मेदार हैं।
गौरतलब है कि कश्मीर घाटी में 2010 में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों की तथाकथित फायरिंग में 116 लोगों की मौत के बाद राज्य सरकार ने कम घातक हथियारों पैलेट गन, मिर्ची बम, रबर बुलेट इत्यादि के विकल्प को अपनाया था। लेकिन 2016 में वादी में हिंसक प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के दौरान सुरक्षाबलों द्वारा पैलेट दागे जाने से कई लोगों की मौत हुई, कइयों की आंखों में पैलेट लगे और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। इसके बाद अलगाववादियों, मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग शुरूकर दी।
लगातार कम हुए हिंसक प्रदर्शन
कश्मीर घाटी में आतंकरोधी अभियानों से लेकर हिंसक प्रदर्शनकारियों से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा रहे सीआरपीएफ के आइजी रविदीप सिंह साही के मुताबिक, पैलेट गन के इस्तेमाल को लेकर सबसे ज्यादा निशाना हमारे जवानों पर साधा गया है, लेकिन इस साल हमने बहुत ही कम जगहों पर हिंसक प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पैलेट का इस्तेमाल किया है।
2016 और 2017 के हालात से अगर तुलना करें तो हम कह सकते हैं कि इस साल अभी तक पैलेट नहीं चलाए गए हैं। 2017 के अंतिम दिनों में पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी आना शुरू हुई थी।
इस साल सिर्फ 10 फीसद स्टॉक हुआ इस्तेमाल
राज्य पुलिस में एसएसपी रैंक के एक अधिकारी और सीआरपीएफ के एक डीआइजी रैंक के अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि 2016 में पैलेट का जो भी स्टॉक था, वह साल खत्म होने से पहले खत्म हुआ था। 2017 में कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए अपनाए जाने वाले एसओपी में सुधार के चलते, पैलेट भी कम इस्तेमाल हुए और कुल भंडार का सिर्फ 70 प्रतिशत ही इस्तेमाल हुआ और बीते साल मात्र 55 प्रतिशत ही पैलेट इस्तेमाल करने पड़े। वहीं, 2019 में अभी तक सिर्फ स्टॉक का 10 फीसद ही इस्तेमाल किया गया है।
पैलेट से सिर्फ टांगों को बनाया निशाना
आइजी सीआरपीएफ ने बताया कि कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए वे अपने अधिकारियों और जवानों की ट्रेनिंग में लगातार बदलते परिवेश के मुताबिक सुधार ला रहे हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि वह पैलेट का इस्तेमाल अत्यधिक आवश्यकता होने पर सिर्फ अंतिम विकल्प की स्थिति में ही करें, अन्यथा नहीं। इसके अलावा उन्हें बताया गया है कि वह पैलेट जब भी दागें तो जमीन से दो से ढाई फुट की ऊंचाई पर ही दागे, किसी भी सूरत में प्रदर्शनकारियों की टांगों से ऊपर इन्हें नहीं दागा जाए।
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