शौचालय तो हम बनवा लें, पानी कहां से लें
संवाद सहयोगी, कालाकोट : प्रशासन द्वारा हर गांव को खुले में शौच मुक्त करने के लिए जहां ग्रामीणों को
संवाद सहयोगी, कालाकोट : प्रशासन द्वारा हर गांव को खुले में शौच मुक्त करने के लिए जहां ग्रामीणों को घरों में शौचालय बनाने के लिए कहा जा रहा है वहीं कई गांवों के लोगों ने इस बात पर आपत्ति जताते कहा है कि ज्यादातर गांवों में लोग पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। ऐसे में घरों में शौचालय बनाकर क्या करेंगे।
गांव गोल के सामाजिक कार्यकर्ता मास्टर केवल शर्मा का कहना है कि गोल में 40 परिवार हैं लेकिन गांव में पानी की कोई योजना नहीं है। गांव के लोग पूरी तरह जल स्त्रोतों पर निर्भर थे, लेकिन वह भी सूख गए हैं। लोगों को दो किलोमीटर दूर चश्मे से पानी लाकर गुजारा करना पड़ रहा है। गांव के लोगों ने फैसला किया है कि जब तक पानी का प्रबंध नहीं किया जाता तब तक कोई शौचालय नहीं बनाएगा। वहीं उन्होंने कहा कि शौचालय बनाने को तो बना लें लेकिन पानी कहां से लाएं।
वहीं गांव केशगढ़ के काका राम ने बताया कि हमारे गांव में भी 40 परिवार हैं, लेकिन जहां भी पानी की कोई व्यवस्था नहीं है और इस समय जब जल स्त्रोत ही सूख गए हैं तो पानी की हाहाकार मची है। उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा शौचालय निर्माण करने की बात की जा रही है लेकिन प्रशासन इस पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा कि गांव में शौचालय से अधिक पानी की आवश्यकता लोगों को कहीं ज्यादा है।
उन्होंने कहा कि गांव के सभी परिवार यही कह रहे हैं कि प्रशासन पहले पानी का प्रबंध करे फिर शौचालय बनाएंगे।
इसी तरह गुलाबगढ़ के राकेश कुमार का कहना है कि हम यह मान रहे है कि प्रशासन द्वारा शौचालय निर्माण करने की
जो बात घरों में की जा रही है वह ठीक है, लेकिन शौचालय के इस्तेमाल को पानी का भी होना जरूरी है और प्रशासन को पहले पानी पर तवज्जो देनी चाहिए। ज्यादातर गांवों में बीस प्रतिशत लोगों के पास ही पानी की व्यवस्था है जिन्हें पीएचई की योजनाओं से पानी मिल रहा है जबकि हकीकत यह है कि अस्सी प्रतिशत लोग आज भी प्राकृतिक जल स्त्रोतों पर निर्भर हैं। ऐसे में शौचालय निर्माण का कोई लाभ नहीं क्योंकि इस पर भी खर्च होने वाले रुपए सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं वह भी जनता के हैं। पहले सरकार पानी का प्रबंध करे फिर शौचालय बनाने को प्रेरित करे।