Terrorism in J&K: राजौरी और पुंछ में आतंकवाद को सींच रहा सरहद पार से आ रहा नशा
Terrorism in JK सरहद पार से आने वाले नशे से लेकर आतंकियों के छिपने वित्तीय मदद जुटाने हथियार पहुंचाने और अन्य तरह की सहायता करने में आतंकी मददगार ही प्रमुख कड़ी बने हुए हैं। यही आतंकी मददगार नशे से आ रही मोटी कमाई को आतंकियों तक भी पहुंचा रहे हैं।
राजौरी,गगन कोहली। राजौरी-पुंछ जिलों में अचानक आतंकी गतिविधियां बढ़ने के पीछे बड़ा कारण स्थानीय समर्थन और सरहद पार से नशे की तस्करी है। अगस्त 2019 के बाद कश्मीर में आतंकियों के पांव डगमगाने के बाद राजौरी व पुंछ जिलों में पाकिस्तान ने आतंक को जिंदा करने के लिए नया षड्यंत्र रचा। पुराने ओवर ग्राउंड वर्करों (ओजीडब्ल्यू) के साथ सीमांत क्षेत्रों के नशेड़ी युवाओं को पैसे का लालच देकर जोड़ा गया। कुछ वर्षों में तेजी से ओजीडब्ल्यू का नेटवर्क तैयार किया गया।
सरहद पार से आने वाले नशे से लेकर आतंकियों के छिपने, वित्तीय मदद जुटाने, हथियार पहुंचाने और अन्य तरह की सहायता करने में आतंकी मददगार ही प्रमुख कड़ी बने हुए हैं। यही आतंकी मददगार नशे से आ रही मोटी कमाई को आतंकियों तक भी पहुंचा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि इन ओजीडब्ल्यू का न तो पुलिस में कोई रिकॉर्ड है और न इनके पास हथियार होते हैं जिससे सुरक्षाबलों के पकड़ में नहीं आते हैं।
20 अप्रैल को पुंछ के भाटाधुलियां क्षेत्र में सेना के वाहन पर हमले से पहले तीन माह तक दोषी आतंकी ओजीडब्ल्यू निसार अहमद के पास रहे। निसार 1990 से ही आतंकी मददगार रहा है। उसने पुंछ हमले के आतंकियों तक खाने-पीने और रहने के प्रबंध करने के अलावा सीमा पार बात भी करवाई और हमला करने के बाद सुरक्षित भी निकाला। निसार के अलावा तीन से चार और ओजीडब्ल्यू भी थे, जिन्होंने पुंछ हमले के आरोपितों की मदद की।
वर्ष 2021 में राजौरी के नौशहरा में एलओसी से सटे सरयाह गांव से मंजूर अहमद के ठिकाने से एक करोड़ 64 लाख बरामद किए थे। मंजूर पैसे का इस्तेमाल आतंक को जिंदा रखने के अलावा युवाओं को आतंकी बनाने पर खर्च करता था। पुंछ के मंडी तहसील के रफीक लाला का जिक्र करें तो पंजाब पुलिस की सूचना पर उसे गिरफ्तार किया था। घर की तलाशी में करीब सवा दो करोड़ की भारतीय मुद्रा के साथ सात किलो हेरोइन, 1500 यूएस डालर, एक पिस्टल भी मिली थी। रफीक ने इस पैसे का कुछ हिस्सा आतंकियों तक पहुंचाना था।
सरहद पार से नशीला पदार्थ कई वर्षों से रफीक तक पहुंच रहा था। रफीक पुलिस में विशेष पुलिस अधिकारी था और क्रॉस एलओसी ट्रेड सेंटर में इसकी तैनाती थी। बाद में पता चलने पर उसे नौकरी से हटा दिया गया। उसके बाद वह आतंकियों के लिए कार्य करने लगा। ऐसे काफी संख्या में ओजीडब्ल्यू राजौरी व पुंछ में सक्रिय हैं। अगर कश्मीर की तरह ओलीडब्ल्यू नेटवर्क ध्वस्त किया जाए तो दोनों जिलों में आतंकियों की कमर टूट जाएगी।
जेल में बंद नशा तस्कर से जुड़े हो सकते हैं आतंकी हमले के तार
पुंछ व राजौरी में हुए हमलों के मामले में जेल में बंद आतंकियों का समर्थक एवं नशा माफिया रफीक लाला की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। राज्य जांच एजेंसी पहले से उससे पूछताछ कर रही थी। शनिवार को जांच एजेंसी के अलावा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घंटों पूछताछ की। रफीक का पुंछ व राजौरी क्षेत्र में गांव-गांव तक नशे का नेटवर्क है और नशे का पैसा ही आतंक के पोषण में इस्तेमाल होता रहा है। पुंछ के भाटाधुलियां हमले के बाद रफीक से सुरक्षा एजेंसियों से लगातार पूछताछ कर रही हैं।
आशंका है कि आतंकी हमलों के तार जेल में बंद रफीक से हो सकते हैं। रफीक पुंछ की मंडी क्षेत्र में नियंत्रण रेखा से सटे गांव डन्न डुईया का निवासी है। मार्च में रफीक के ठिकाने से सात किलो ग्राम हेरोइन, करोड़ों रुपये के साथ हथियार भी बरामद किए गए थे। पुंछ जिले में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश सिंह, डीआईजी डा. हसीब मुगल के अलावा कई अधिकारी जिला जेल पहुंचे और रफीक से पूछताछ की।
आतंक के गढ़ रहे इलाकों को फिर आतंकियों ने बनाया ठिकाना
कश्मीर में अपने एजेंडे को नाकाम होते देख पाकिस्तान ने जम्मू के उन इलाकों में आतंकी हिंसा को शुरू किया जो पहले कभी आतंकी हिंसा से ग्रस्त रहे हैं। राजौरी-पुंछ उसके लिए ज्यादा आसान है,क्योंकि इस क्षेत्र के बहुत से आतंकी गुलाम जम्मू कश्मीर में बैठे हैं जिनका नेटवर्क आज भी इस तरफ है।
पूर्व महानिदेशक पुलिस डा. एसपी वैद ने कहा कि राजौरी-पुंछ में जंगल, पहाड़ और दरिया हैं जो घुसपैठ करने वाले आतंकियों को ठिकाने प्रदान करते हैं। जिन आतंकियों को घुसपैठ कराई गई है, वह पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं। उन्हें राजौरी-पुंछ में कुछ काली भेड़ें हर प्रकार की मदद कर रहे हैं अन्यथा वह यहां जिंदा नहीं रह सकते।
पाक मोबाइल नेटवर्क ओजीडब्ल्यू के लिए वरदान
राजौरी व पुंछ के अधिकतर सीमांत क्षेत्रों में भारतीय कंपनी का मोबाइल नेटवर्क नहीं है। इन क्षेत्रों में पाक का मोबाइल नेटवर्क बड़ी आसानी से आ जाता है। अधिकतर ओजीडब्ल्यू के पास पाक मोबाइल कंपनी की सिम रहती है। यह सीमा पार आतंकी संगठनों के कमांडरों से संपर्क कर लेते हैं। वहां से जो फरमान मिलता है वह आतंकियों तक पहुंचा देते हैं। उसके बाद आतंकी अपनी कार्रवाई की तैयारी में जुट जाते हैं। पाक सिम से सीमा पार बात हो रही है इसे पकड़ा जाना आसान काम नहीं होता।