J&K: आतंक के खिलाफ कड़ी लड़ाई जारी रखने का मिला अवसर
राज्य प्रशासन ने आतंकवाद से लडऩे के लिए हथियार मुहैया करवाए। अलगाववादी संगठनों के करीब 71 बैंक खातों को सील कर दिया गया। जमात-ए-इस्लामी के करीब 600 दफ्तरों को सील कर दिया गया।
जम्म, अवधेश चौहान। राज्य में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव न कराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले पर कश्मीर केंद्रित सियासी दल भले ही सवाल उठा रहे हों लेकिन राष्ट्रवादी सोच रखने वाले इसे राष्ट्रहित में बता रहे हैं। हाल ही में केंद्र सरकार व राज्य शासन ने कड़े कदम उठाकर अलगाववादी ताकतों को कमजोर करने का प्रयास किया है। ऐसे में चिंता थी कि नई सरकार के सत्ता में आते ही यह तमाम उपाय वापस न ले लिए जाएं। एनसी व पीडीपी जमात जैसे अलगाववादी संगठनों पर रोक के खिलाफ हैं।
राज्य शासन ने रोशनी एक्ट को समाप्त कर बड़ा कदम उठाया है। ग्राम सुरक्षा समितियों से हथियार वापस लेने के फैसले को बदल दिया गया। उन्हें राज्य प्रशासन ने आतंकवाद से लडऩे के लिए हथियार मुहैया करवाए। अलगाववादी संगठनों के करीब 71 बैंक खातों को सील कर दिया गया। जमात-ए-इस्लामी के करीब 600 दफ्तरों को सील कर दिया गया। हुर्रियत कांफ्रेंस के अलगाववादी मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक सहित बड़े नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली गई। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने मीरवाइज के घर पर छापा मार कर कई आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए। यासीन मलिक और अन्य अलगाववादी नेताओं को श्रीनगर से जम्मू के कोट भलवाल जेल भेज दिया गया।
महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी कश्मीरी अलगाववादियों के समर्थन में दिखती है। उमर अब्दुल्ला भी जमात पर रोक का विरोध जता चुके हैं। ऐसे में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव होने से कुछ दल अलगाववादियों के एजेंडे को हवा दे सकते थे और इसका लाभ वह चुनावों में भी लेना चाहते। ऐसे में कई दल नहीं चाहते कि राज्य शासन के कठोर कदम वापस ले लिए जाए। विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ न करवाए जाने के फैसले पर सोशल मीडिया पर भी बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया है। अलग-अलग चुनाव करवाना चुनाव आयोग के लिए भी आसान रहेगा और सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जा सकेंगे।
राज्य में चुनाव प्रबंधों पर निगरानी रखेंगे तीन पर्यवेक्षक
चुनाव आयोग ने जम्मू कश्मीर के चुनाव प्रबंधों पर नजर रखने के लिए तीन सदस्यीय सेवानिवृत्त आइएएस और आइपीएस अधिकारियों का पैनल बनाया है। यह पैनल वहां के हालात पर नजर रखेगा। इसके अलावा इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए विशेष पर्यवेक्षक तैनात किए जाएंगे। जम्मू कश्मीर के लिए नियुक्त पर्यवेक्षकों में 1977 बैच के सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी नूर मोहम्मद, 1982 बैच के सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी विनोद जुत्सी और प्रख्यात सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी अमरजीत सिंह गिल को शामिल किया गया है।
1972 बैच के आइपीएस रहे एएस गिल के पास सुरक्षा प्रबंधों को बड़ा अनुभव है। वह सीआरपीएफ के महानिदेशक रह चुके हैं। वह अपने सेवाकाल के दौरान कश्मीर में आइजी रह चुके हैं। नूर मोहम्मद केंद्र सरकार में सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए थे और उनके पास चुनाव प्रबंधन का एक दशक से अधिक का अनुभव है। वह अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं और अफगानिस्तान के सलाहकार रह चुके हैं।
विनोद जुत्सी भी केंद्र में सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनका भी चुनाव प्रबंधन में लंबा अनुभव है। वह राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और केंद्रीय चुनाव आयोग में उप चुनाव आयुक्त रह चुके हैं। वह फिलहाल चुनाव आयोग को प्रशिक्षक के तौर पर सहयोग करते हैं। इन अधिकारियों के पास विपरीत परिस्थितियों में भी चुनाव प्रबंधन का बेहतर अनुभव है। ऐसे में जम्मू कश्मीर विशेष तौर पर दक्षिण कश्मीर में चुनाव निष्पक्ष व शांतिपूर्ण करवाना चुनौती से कम नहीं है। आतंक के गढ़ के तौर पर विकसित हो चुके इस क्षेत्र में निष्पक्ष चुनाव के लिए आयोग ने भी कड़े प्रबंध किए हैं। इसीलिए अनंतनाग सीट पर तीन चरणों में चुनाव करवाने का निर्णय लिया गया है।
राज्य शासन और गृह मंत्रलय से मिल रिपोर्ट के आधार पर लिया निर्णय
मुख्य चुनाव आयुक्त ने जम्मू कश्मीर के चुनाव पर विशेष फोकस किया। उन्होंने कहा कि राज्य शासन और केंद्रीय गृह मंत्रलय ने वहां के सुरक्षा हालात पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी। उस रिपोर्ट का अध्ययन कर और अन्य सुरक्षा एजेंसियों से चर्चा के बाद सुरक्षा बलों की उपलब्धि व अन्य बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव साथ न करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जम्मू कश्मीर की स्थिति पर निरंतर नजर रखे हुए है और जल्द वहां के हालात को देखते विधानसभा चुनाव पर निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल केवल लोकसभा के चुनाव ही करवाने का निर्णय लिया गया है।
फिर से 1996 जैसी स्थिति नहीं चाहते
राज्य में वर्ष 1990 के दौर में राज्यपाल शासन के दौरान आतंकवाद पर काबू पा लिया गया था, लेकिन जम्मू के लोग नहीं चाहते कि राज्य में फिर से 1996 जैसी स्थिति दोहराया जाए। 19 जनवरी 1990 से लेकर नौ अक्टूबर 1996 तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन रहा था।
सीमा पार से खलल न पड़े, होंगे पुख्ता प्रबंध
लोकतंत्र के सबसे बड़े यज्ञ लोकसभा चुनाव में पाकिस्तान की गोलाबारी से कोई खलल न पड़े, इसके लिए पुख्ता प्रबंध किए जाएंगे। मुख्य चुनाव कार्यालय ने राज्य प्रशासन से मिलकर इस चुनौती से निपटने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है। पाकिस्तान इस समय राज्य में नियंत्रण रेखा पर लगातार गोले दाग रहा है। कोई बड़ी बात नहीं है कि चुनाव के दिन भी गोले गिरें, ऐसे में सीमांत क्षेत्रों में मतदान केंद्रों को बनाने को लेकर पूरी एहतियात बरती जा रही है। इस बारे में राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी ने बताया कि सीमा पार से होने वाली गोलाबारी पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। पड़ोसी देश जब चाहे गोले दागने लगता है। ऐसे हालात को देखते हुए हमने पूरी तैयारी कर रखी है। सीमांत क्षेत्रों में लोकसभा चुनाव को कामयाब बनाने के लिए पुख्ता प्रबंध रहेंगे। राज्य में इस समय पाकिस्तान की गोलाबारी से सीमांत क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण हालात बने हुए हैं। पिछले करीब पंद्रह दिनों से नियंत्रण रेखा पर हो रही गोलाबारी में चार लोगों की मौत हुई है, वहीं करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हैं। जम्मू के केरी बट्टल, राजौरी व पुंछ जिलों के साथ कश्मीर के उड़ी में पाकिस्तान लगातार गोले दाग रहा है।
कश्मीर में किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षा बल तैयार
अनंतनाग लोकसभा सीट के पुलवामा, कुलगाम व शोपियां में चुनाव में खलल डालने के लिए देश विरोधी तत्वों की ओर से सबसे अधिक कार्रवाई की आशंका है। पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर आत्मघाती हमले के बाद क्षेत्र में सक्रिय आतंकी फिर कोई वारदात करने की फिराक में हैं। अनंतनाग पूर्व मुख्यमंत्री व पीडीपी प्रधान महबूबा मुफ्ती का संसदीय क्षेत्र रहा है। वह वर्ष 2014 में 200429 वोट लेकर सांसद बनी थीं। उनके मुख्यमंत्री बन जाने से खाली हुई इस लोकसभा सीट पर खराब हालात के कारण मतदान नहीं हो पाया था। अब यहां चुनाव हो सके, इसके लिए अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंध किए जा रहे हैं।